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Author: GIGL

(Hindi) Khuchad

(Hindi) Khuchad

“बाबू कुन्दनलाल अदालत से लौटे, तो देखा कि उनकी पत्नी जी एक सब्जी वाली से कुछ साग-भाजी ले रही हैं। सब्जी वाली पालक टके सेर कहती है, वह डेढ़ पैसे दे रही हैं। इस पर कई मिनट तक बहस होती रही। आखिर सब्जी वाली डेढ़ ही पैसे पर राजी हो गई। अब तराजू और बाट का सवाल छिड़ा। दोनों पल्ले बराबर न थे। एक में वजन ज्यादा था। बाट भी पूरे न उतरते थे। पड़ोसिन के घर से सेर आया। साग तुल जाने के बाद अब थोड़ा ज्यादा का सवाल उठा। पत्नीजी और माँगती थीं, सब्जी वाली कहती थी- “”अब क्या सेर-दो-सेर ज्यादा ले लोगी बहूजी।””

खैर, आधे घंटे में वह सौदा पूरा हुआ, और सब्जी वाली फिर कभी न आने की धमकी देकर बिदा हुई। कुन्दनलाल खड़े-खड़े यह तमाशा देखते रहे। सब्जी वाली के जाने के बाद पत्नी जी लोटे में  पानी लाईं तो उन्होंने कहा- “”आज तो तुमने जरा-सी सब्ज़ी लेने में पूरा आधा घंटे लगा दिये। इतनी देर में तो हजार-पाँच का सौदा हो जाता। जरा-जरा से साग के लिए इतनी ठाँय-ठाँय करने से तुम्हारा सिर भी नहीं दुखता?””

रामेश्वरी ने कुछ शर्मिंदा होकर कहा- “”पैसे मुफ्त में तो नहीं आते!””

“”ठीक है लेकिन समय की भी कुछ कीमत है। इतनी देर में तुमने बड़ी मुश्किल से एक धेले की बचत की। सब्जी वाली ने भी दिल में कहा होगा, कहाँ की गँवारिन है। अब शायद भूलकर भी इधर न आये।””

“”तो, फिर मुझसे तो यह नहीं हो सकता कि पैसे की जगह धेले का सौदा लेकर बैठ जाऊँ।””

“”इतनी देर में तो तुमने कम-से-कम 10 पन्ने पढ़ लिए  होते। कल कामवाली से घंटों माथा पच्ची की । परसों दूधवाले के साथ घंटों बहस की। जिन्दगी क्या इन्हीं बातों में खर्च करने को दी गई है?””

कुन्दनलाल अक्सर ही पत्नी को उपदेश देते रहते थे। यह उनकी दूसरी शादी थी। रामेश्वरी को आये अभी दो तीन महीने ही हुए थे। अब तक तो बड़ी ननद जी ऊपर के काम किया करती थीं। रामेश्वरी की उनसे न बनती थी ।

उसको मालूम होता था, यह मेरा सब कुछ ही लुटाये देती हैं। आखिर वह चली गईं। तब से रामेश्वरी घर की मालकिन है; वह बहुत चाहती है कि पति को खुश रखे। उनके इशारों पर चलती है; एक बार जो बात सुन लेती है, गाँठ बाँध लेती है। पर रोज ही कोई नई बात हो जाती है, और कुन्दनलाल को उसे उपदेश देने का मौका मिल जाता है। एक दिन बिल्ली दूध पी गई। रामेश्वरी दूध गर्म करके लाई और पति के सिरहाने रखकर पान बना रही थी कि बिल्ली ने दूध पर अपना भगवान का दिया हुआ हक साबित कर दिया। रामेश्वरी यह सहन न कर सकी। डंडा लेकर बिल्ली को इतनी  जोर से मारा कि वह दो-तीन लुढ़कियाँ खा गई। कुन्दनलाल लेटे-लेटे अखबार पढ़ रहे थे। बोले- “”और जो मर जाती तो ?””

रामेश्वरी ने ढिठाई के साथ कहा- “”तो मेरा दूध क्यों पी गई?””

“”उसे मारने से दूध मिल तो नहीं गया?””

“”जब कोई नुकसान कर देता है, तो उस पर गुस्सा आता ही है।””

“”नहीं  आना चाहिए। जानवर के साथ आदमी भी क्यों जानवर हो जाय? आदमी और जानवर में इसके सिवा और क्या फ़र्क  है?””

कुन्दनलाल कई मिनट तक दया, विवेक और शांति की शिक्षा देते रहे। यहाँ तक कि बेचारी रामेश्वरी मारे ग्लानि के रो पड़ी। इसी तरह एक दिन रामेश्वरी ने एक भिखारी को डाँट दिया, तो बाबू साहब ने फिर उपदेश देना शुरू किया। बोले- “”तुमसे न उठा जाता हो, तो लाओ मैं दे आऊँ। गरीब को यों नहीं  डाँटना चाहिए।””

रामेश्वरी ने त्योरियाँ चढ़ाते हुए कहा- “”दिन भर तो तांता लगा रहता है। कोई कहाँ तक दौड़े। सारा देश भिखमंगों से ही भर गया है शायद।””

कुन्दनलाल ने ताने  के भाव से मुस्कराकर कहा- “”उसी देश में तो तुम भी बसती हो!””

“”इतने भिखमंगे आ कहाँ से जाते हैं? ये सब काम क्यों नहीं करते?””

“”कोई आदमी इतना नीच नहीं होता, जो काम मिलने पर भीख माँगे। हाँ, अपंग हो, तो दूसरी बात है। अपंगों का भीख के सिवा और क्या सहारा हो सकता है?””

“”सरकार इनके लिए अनाथालय क्यों नहीं खुलवाती?””

“”जब आजादी मिल जाएगी, तब शायद खुल जायँ; अभी तो कोई उम्मीद नहीं है मगर आजादी भी धर्म  से ही मिलेगी।””

“”लाखों साधु-संन्यासी, पंडे-पुजारी मुफ्त का माल उड़ाते हैं, क्या इतना धर्म काफी नहीं है? अगर इस धर्म  से आजादी मिलती, तो कब की मिल चुकी होती।””

“”इसी धर्म का प्रसाद है कि हिन्दू-जाति अभी तक जिंदा है, नहीं तो कब की पाताल पहुँच चुकी होती। रोम, यूनान, ईरान, सीरिया किसी का अब निशान भी नहीं है। यह हिन्दू-जाति है, जो अभी तक समय के खतरनाक वारों का सामना करती चली आई है।””

“”आप समझते होंगे; हिन्दू-जाति जिंदा है। मैं तो उसे उसी दिन से मरा हुआ समझती हूँ, जिस दिन से वह गुलाम हो गई थी । जीवन आजादी का नाम है, गुलामी तो मौत है।””

कुन्दनलाल ने अपनी पत्नी  को आश्चर्य भरी आँखों से देखा, ऐसे विद्रोही ख्याल उसमें कहाँ से आ गये? देखने में तो वह बिलकुल भोली लगती थी। समझे, कहीं सुन-सुना लिया होगा। कठोर होकर बोले — “”क्या बेकार की बहस करती हो। शर्म  तो आती नहीं, ऊपर से और बक-बक करती हो।””

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) The Impact Equation: Are You Making Things Happen Or Just Making Noise?

(Hindi) The Impact Equation: Are You Making Things Happen Or Just Making Noise?

“ये समरी आपको क्यों पढ़नी चाहिए ? 
ये समरी आपको सिखाती है कि हम इस दुनिया में किसी मकसद से आये है इसलिए हमे अपनी एक अलग पहचान बनानी चाहिए. तो अब वक्त आ गया है कि हम बेकार की चीजों में अपना टाइम और पोटेंशियल वेस्ट ना करके कुछ क्रिएटिव और प्रोडक्टिव काम करे. जो चीज़ आपको ग्रो करने में मदद करे, उस पर फोकस करना स्टार्ट कर दो आज और अभी से. जिंदगी बहुत छोटी है और हमे एक ही जिदंगी मिली है. क्या आप एक ऐसे  इंसान  के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहते है जो सिर्फ शोर करता है ? या फिर आप वो बनना चाहते हो जिसने लाइफ कुछ अचीव किया हो? तो चलिए, सीखते है कि इस दुनिया में अपना इम्पैक्ट कैसे बनाया जाए और कैसे खुद की छाप छोड़ी जाए. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए? 
•    Blog लिखने वालों को 
•    Youtubers को 
•    Social media influencers को 
•    Millennials को 

ऑथर के बारे में 

 जूलियन स्मिथ एक ऑथर, स्पीकर और कंसलटेंट है जिन्हें ऑनलाइन कम्यूनिटी में रहते हुए 15 साल हो गए हैं . वो उन गिने-चुने  लोगों  में से एक हैं  जिन्होंने 2004 में पॉडकास्टिंग की शुरुवात की थी, इसके अलावा वो एक जाने-माने सेलेब्रिटी भी हैं जो ट्रेडिशनल रेडियो में लंबे टाइम तक एक्टिव रहे हैं . 

क्रिस ब्रोगन भी ऑथर और एक मार्केटिंग एजेंसी ‘न्यू मार्केटिंग लैब्स’ के प्रेजिडेंट हैं. इसके अलावा क्रिस न्यू मिडिया कांफ्रेंस सीरीज PodCamp, के को-फाउंडर भी हैं. क्रिस को एंटरप्राइज टेलीकम्युनिकेशन में 16 सालों का एक्सपीरिएंस है. 
 

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(Hindi) Prem ka Uday

(Hindi) Prem ka Uday

“भोंदू पसीने में तर, लकड़ी का एक गट्ठा सिर पर लिए आया और उसे जमीन पर पटककर बंटी के सामने खड़ा हो गया, मानो पूछ रहा हो, 'क्या अभी तेरी तबीयत ठीक नहीं हुई?'

शाम हो गयी थी, फिर भी लू चलती थी और आकाश पर धूल छायी हुई थी। प्रकृति बिना खून के शरीर की तरह ढीला हो रहा था। भोंदू सुबह घर से निकला था। दोपहर उसने एक पेड़ की छाँह में काटी थी। समझा था इस तपस्या से देवीजी का मुँह सीधा हो जायगा; लेकिन आकर देखा, तो वह अब भी गुस्से से भरी थी।

भोंदू ने बातचीत छेड़ने के इरादे से कहा- “”लो, एक लोटा पानी दे दो, बड़ी प्यास लगी है। मर गया सारे दिन। बाजार में जाऊँगा, तो तीन आने से ज्यादा न मिलेंगे। दो-चार सैंकडे मिल जाते, तो मेहनत सफल हो जाती। बंटी ने झोपड़े के अन्दर बैठे-बैठे कहा- “”धरम भी लूटोगे और पैसे भी। मुँह धो रखो।””

भोंदू ने भँवें सिकोड़कर कहा- “”क्या धरम-धरम बकती है! धरम करना हँसी-खेल नहीं है। धरम वह करता है, जिसे भगवान् ने माना हो। हम क्या खाकर धरम करें। भर-पेट खाना तो मिलता नहीं, धरम करेंगे।”” 

बंटी ने अपना वार छोटा पड़ता देखकर चोट पर चोट की- “”दुनिया में कुछ ऐसे भी महात्मा हैं, जो अपना पेट चाहे न भर सकें, पर पड़ोसियों को नेवता देते फिरते हैं; नहीं तो सारे दिन जंगल जंगल लकड़ी न तोड़ते फिरते। ऐसे धरमात्मा लोगों को पत्नी रखने की क्यों सूझती है, यही मेरी समझ में नहीं आता। धरम की गाड़ी क्या अकेले नहीं खींचते बनती?”” 

भोंदू इस चोट से तिलमिला गया। उसकी नसें तन गयीं; माथे पर बल पड़ गये। इस औरत का मुँह वह एक डपट में बंद कर सकता था; पर डाँट-डपट उसने न सीखी थी। जिसकी ताकत की सारे कंजड़ों में धूम थी, जो अकेला सौ-पचास जवानों का नशा उतार सकता था, वह इस औरत के सामने चूँ तक न कर सका। दबी जबान से बोला- “”पत्नी धरम बेचने के लिए नहीं लायी जाती, धरम पालने के लिए लायी जाती है।””

यह कंजड़ पति पत्नी आज तीन दिन से और कई कंजड़ परिवारों के साथ इस बाग में उतरा हुआ था। सारे बाग में झोपड़े-ही-झोपड़े दिखायी देते थे। उसी तीन हाथ चौड़ी और चार हाथ लम्बी झोपड़े के अन्दर एक-एक पूरा परिवार जीवन के सभी जरुरतों के साथ कुछ दिनों के लिए रह रहा था। एक किनारे चक्की थी, एक किनारे रसोई का जगह, एक किनारे दो-एक अनाज के मटके। दरवाजे पर एक छोटी-सी खटोली बालकों के लिए पड़ी थी।

हरेक परिवार के साथ दो-दो भैंसें या गधे थे। जब डेरा चलता था तो सारा घर का सामान इन जानवरों पर लाद दीया जाती थी। यही इन कंजड़ों का जीवन था। सारी बस्ती एक साथ चलती थी। आपस में ही शादी-ब्याह, लेन-देन, झगड़े-टंटे होते रहते थे। इस दुनिया के बाहर वाली पूरी दुनिया उनके लिए सिर्फ शिकार का मैदान था। उनके किसी इलाके में पहुँचते ही वहाँ की पुलिस तुरंत आकर अपनी निगरानी में ले लेती थी। पड़ाव के चारों तरफ चौकीदार का पहरा हो जाता था। औरत या आदमी किसी गाँव में जाते तो दो-चार चौकीदार उनके साथ हो लेते थे।

रात को भी उनकी हाजिरी ली जाती थी। फिर भी आस-पास के गाँव में आतंक छाया हुआ था; क्योंकि कंजड़ लोग अक्सर घरों में घुसकर जो चीज चाहते, उठा लेते और उनके हाथ में जाकर कोई चीज लौट न सकती थी। रात में ये लोग अक्सर चोरी करने निकल जाते थे। चौकीदारों को उनसे मिले रहने में ही अपनी अच्छाई दिखती थी। कुछ हाथ भी लगता था और जान भी बची रहती थी। सख्ती करने में जान का डर था, कुछ मिलने का तो जिक्र ही क्या; क्योंकि कंजड़ लोग एक सीमा के बाहर किसी का दबाव न मानते थे। बस्ती में अकेला भोंदू अपनी मेहनत की कमाई खाता था; मगर इसलिए नहीं कि वह पुलिसवालों की खुशामद न कर सकता था। उसकी आजाद आत्मा अपनी ताकत से कमाई किसी चीज का हिस्सा देना मंजूर न करती थी; इसलिए वह यह नौबत आने ही न देती थी।

बंटी को पति की यह अच्छाई एक आँख न भाती थी। उसकी और बहनें नयी-नयी साड़ियाँ और नये-नये गहने पहनतीं, तो बंटी उन्हें देख-देखकर पति की नाकामी पर कुढ़ती थी। इस बारे में दोनों में कितने ही लड़ाई हो चुकी थी; लेकिन भोंदू अपना परलोक बिगाड़ने पर राजी न होता था। आज भी सुबह यही परेशानी आ खड़ी हुई थी और भोंदू लकड़ी काटने जंगलों में निकल गया था। सैंकडे मिल जाते, तो आँसू पुंछते, पर आज सैंकडे भी न मिले। बंटी ने कहा- “”ज़िनसे कुछ नहीं हो सकता, वही धरमात्मा बन जाते हैं।””

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) Prerna

(Hindi) Prerna

“मेरी  क्लास में सूर्यप्रकाश से ज्यादा बदमाश कोई लड़का न था, बल्कि यों कहो कि स्कूल के दस सालों में मुझे ऐसी अजीब प्रकृति के  स्टूडेंट  से सामना न पड़ा था। चालबाजी में उसकी जान बसती थी।  टीचरों को बनाने और चिढ़ाने, मेहनती बालकों को छेड़ने और रुलाने में ही उसे मजा आता था। ऐसे-ऐसे चाल चलता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसे-ऐसे जाल बाँधता कि देखकर आश्चर्य होता था। गुटबाजी का आदमी था। बदमाशों की एक फौज बना ली थी और उसके आतंक से स्कूल पर शासन करता था।  

 

चीफ़ डायरेक्टर का आदेश टल जाय, मगर क्या मजाल कि कोई उसके हुक्म को न माने। स्कूल के चपरासी और अर्दली उससे थर-थर काँपते थे। इन्स्पेक्टर का मुआइना होने वाला था,  चीफ़ डायरेक्टर ने हुक्म दिया कि लड़के तय समय से आधा घंटा पहले आ जायँ। मतलब यह था कि लड़कों को मुआइने के बारे में कुछ जरूरी बातें बता दी जायँ, मगर दस बज गये, इन्स्पेक्टर साहब आकर बैठ गये, और मदरसे में एक लड़का भी नहीं। ग्यारह बजे सब  स्टूडेंट  इस तरह निकल पड़े, जैसे कोई पिंजरा खोल दिया गया हो।

 

इन्स्पेक्टर साहब ने रिपोर्ट में लिखा डिसिप्लिन बहुत खराब है। प्रिंसिपल साहब की किरकिरी हुई,  टीचर  बदनाम हुए और यह सारी शरारत सूर्यप्रकाशकी थी, मगर बहुत पूछ-ताछ करने पर भी किसी ने सूर्यप्रकाश का नाम तक न लिया। मुझे अपनी स्कूल चलाने के तरीके पर गर्व था। ट्रेनिंग कालेज में इस बारे में मैं मशहूर था। मगर यहाँ मेरा सारा स्कूल चलाने का तरीका जैसे जंग खा गया था। कुछ अक्ल ही काम न करती कि शैतान को कैसे सही रास्ते पर लायें।

कई बार  टीचरों की बैठक हुई, पर यह मामला न सुलझा। नए पढ़ाने के ढंग के अनुसार मैं सजा देने के खिलाफ था, मगर यहाँ हम इस नीति से सिर्फ इसलिए दूर रहते थे कि कहीं इलाज से भी बीमारी लाइलाज न हो जाय। सूर्यप्रकाश को स्कूल से निकाल देने का सुझाव भी दिया गया, पर इसे अपनी नाकामी का सबूत समझकर हम इस तरीके का इस्तेमाल करने की हिम्मत न कर सके।

 

बीस-बाईस अनुभवी और पढ़ाई लिखाई  के जानकार, एक बारह-तेरह साल के बदमाश बच्चे का सुधार न कर सकें, यह ख्याल बहुत ही निराशाजनक था। यों तो सारा स्कूल उससे बचाओ बचाओ करता था, मगर सबसे ज्यादा मुसीबत में मैं था, क्योंकि वह मेरी  क्लास का  स्टूडेंट  था और उसकी शरारतों का नतीजा मुझे भोगना पड़ता था। मैं स्कूल आता, तो हरदम यही खटका लगा रहता था कि देखें आज क्या मुसीबत आती है।

 

एक दिन मैंने अपनी मेज की दराज खोली, तो उसमें से एक बड़ा-सा मेंढक निकल पड़ा। मैं चौंककर पीछे हटा तो क्लास में एक शोर मच गया। उसकी ओर गुस्से से देखकर रह गया। सारा घंटा उपदेश में बीत गया और वह पट्ठा सिर झुकाये नीचे मुस्करा रहा था। मुझे आश्चर्य होता था कि यह नीचे की क्लास में कैसे पास हुआ था।

एक दिन मैंने गुस्से से कहा- “”तुम इस  क्लास से उम्र भर नहीं पास हो सकते।””

सूर्यप्रकाश ने बेफिक्री से कहा- “”आप मेरे पास होने की चिन्ता न करें। मैं हमेशा पास हुआ हूँ और अबकी बार भी हूँगा।””

“”नामुमकिन !””

“”नामुमकिन मुमकिन हो जायगा !””

मैं आश्चर्य से उसका मुँह देखने लगा। समझदार से समझदार लड़का भी अपने पास होने का दावा इतनी मजबूती से न कर सकता था। मैंने सोचा, वह  question paper उड़ा लेता होगा। मैंने ठान ली, अबकी इसकी एक चाल भी न चलने दूँगा। देखूँ, कितने दिन इस  क्लास में पड़ा रहता है। खुद घबराकर निकल जायगा।

 annual exam के मौके पर मैंने असाधारण देखभाल से काम लिया; मगर जब सूर्यप्रकाश का  answer sheet देखा, तो मेरे आश्चर्य की सीमा न रही। मेरे दो पर्चे थे, दोनों ही में उसके नम्बर  क्लास में सबसे ज्यादा थे। मुझे खूब मालूम था कि वह मेरे किसी पर्चे का कोई  सवाल  भी हल नहीं कर सकता। मैं इसे साबित कर सकता था; मगर उसके answer sheet को क्या करता ! लिखावट में इतना अंतर न था जो कोई शक पैदा हो।

 

मैंने प्रिंसिपल से कहा,तो वह भी चकरा गये; मगर उन्हें भी जान-बूझकर मक्खी निगलनी पड़ी। मैं शायद स्वभाव ही से निराशावादी हूँ। दूसरे  टीचरों को मैं सूर्यप्रकाश के बारे में जरा भी परेशान न पाता था। मानो ऐसे लड़कों का स्कूल में आना कोई नई बात नहीं, मगर मेरे लिए वह एक बड़ा राज था। अगर यही ढंग रहे, तो एक दिन या तो जेल में होगा, या पागलखाने में।

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(Hindi) Sohag ka Shav

(Hindi) Sohag ka Shav

“मध्यप्रदेश के एक पहाड़ी गाँव में एक छोटे-से घर की छत पर एक लड़का  मानो शाम की शांति में लीन बैठा था। सामने चन्द्रमा की धुंधली रोशनी में ऊँची पर्वतमालाऍं, अनन्त के सपने की तरह गहरी राज वाली, संगीत से भरी, सुंदर मालूम होती थीं, उन पहाड़ियों के नीचे नदी की एक सुंदर रेखा ऐसी मालूम होती थी, मानो उन पहाड़ों का सभी संगीत, सभी गम्भीरता, सभी राज इसी उज्जवल धार में गायब हो गया हो।

 लड़के के पहनावे से पता चलता था कि उसकी हालत बहुत अच्छी नहीं है। हाँ, उसके चहरे से तेज और अक्लमंदी झलक रही थी। उसकी आँखो पर चश्मा न था, न मूँछें मुड़ी हुई थीं, न बाल सँवारे हुए थे, कलाई पर घड़ी न थी, यहाँ तक कि कोट की जेब में फाउन्टेन पेन भी न था। या तो वह सिद्धान्तों को पसंद करने वाला था, या दिखावे का दुश्मन।
 
लड़का सोच में मौन.. उसी पर्वतमाला की ओर देख रहा था कि अचानक बादलो के गरजने से भयानक आवाज सुनायी दी। नदी की मीठी आवाज उस भयानक शोर में डूब गई। ऐसा मालूम हुआ, मानो उस भयानक शोर ने पहाड़ों को भी हिला दिया है, मानो पहाड़ों में कोई बड़ी लड़ाई छिड़ गई है। यह रेलगाड़ी थी, जो नदी पर बने हुए पुल से चली आ रही थी। एक  लड़की कमरे से निकल कर छत पर आयी और बोली- “”आज अभी से गाड़ी आ गयी। इसे भी आज ही दुश्मनी निभानी थी।””
 
 
लड़के  ने लड़की  का हाथ पकड़ कर कहा- “”प्रिये ! मेरा जी चाहता है; कहीं न जाऊँ; मैंने तय कर लिया है। मैंने तुम्हारी लिए हामी भर ली थी, पर अब जाने की इच्छा नहीं होती। तीन साल कैसे कटेंगे।””
 
 लड़की ने डरी हुई आवाज में कहा- “”तीन साल की जुदाई के बाद फिर तो जीवन भर कोई बाधा न खड़ी होगी। एक बार जो तय कर लिया है, उसे पूरा ही कर डालो, हमेशा के सुख की उम्मीद में मैं सारी तकलीफ झेल लूँगी।””
 
यह कहते हुए लड़की नाश्ता लाने के बहाने से फिर अंदर चली गई। आँसुओं का बहाव उसके काबू से बाहर हो गया। इन दोनों के शादीशुदा जीवन की यह पहली ही सालगिरह थी। लड़का  बम्बई-विश्वविद्यालय से एम० ए० की डिग्री लेकर नागपुर के एक कालेज में  टीचर था। नए युग की, नयी-नयी शादी की और सामाजिक क्रांतियों ने उसे जरा भी नहीं डगमगाया था। पुरानी प्रथाओं से ऐसी गहरी ममता शायद बूढ़ों को भी कम होगी। प्रोफेसर हो जाने के बाद उसके माता-पिता ने इस बच्ची से उसकी शादी कर दी थी।

प्रथानुसार ही उस आँख मिचौनी के खेल मे उन्हें प्यार हो गया। सिर्फ छुट्टियों में यहाँ पहली गाड़ी से आता और आखिरी गाड़ी से जाता। ये दो-चार दिन मीठे सपने के समान कट जाते थे। दोनों बच्चों की तरह रो-रोकर बिदा होते। इसी कमरे में खड़ी होकर वह उसको देखा करती, जब तक बेरहम पहाड़ियां उसे आड़ में न कर लेतीं। पर अभी साल भी न गुजरने पाया था कि जुदाई ने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी। 

केशव को विदेश जा कर पढ़ाई पूरी करने के लिए एक स्कॉलरशिप मिल गयी। दोस्तों ने बधाइयाँ दी। किसकी ऐसी किस्मत हैं, जिसे बिना माँगे किस्मत बनाने का ऐसा मौका मिला हो। केशव बहुत खुश था। वह इसी दुविधा में पड़ा हुआ घर आया। माता-पिता और बाकी रिशतेदारों ने इस यात्रा का कड़ा विरोध किया। नगर में जितनी बधाइयाँ मिली थीं, यहॉं उससे कहीं ज्यादा बाधाऍं मिलीं। लेकिन सुभद्रा की ऊंची इच्छाओं की सीमा न थी। वह शायद केशव को इन्द्रासन पर बैठा हुआ देखना चाहती थी।

उसके सामने तब भी वही पति सेवा का आदर्श होता था। वह तब भी उसके सिर में तेल डालेगी, उसकी धोती छाँटेगी, उसके पाँव दबायेगी और उसका पंखा झलेगी। भक्त की इच्छाएँ भगवान ही के लिए होती है। वह उसको सोने का मन्दिर बनवायेगा, उसके सिंहासन को रत्नों से सजायेगा, स्वर्ग से फूल लाकर चढ़ाएगा, पर वह खुद वही भक्त रहेगा। उलझे बालों के जगह पर मुकुट या लंगोट की जगह पिताम्बर का लालच उसे कभी नही सताता।

सुभद्रा ने उस समय तक दम न लिया जब तक केशव ने विलायत जाने का वादा न कर लिया, माता-पिता ने उसे कंलकिनी और न जाने क्या-क्या कहा, पर आखिर में मान गए। सब तैयारियां हो गयीं। स्टेशन पास ही था। यहाँ गाड़ी देर तक खड़ी रहती थी। स्टेशनों के पास के गाँव के निवासियों के लिए गाड़ी का आना दुश्मन का धावा नहीं, दोस्त का आना है। गाड़ी आ गयी। सुभद्रा नाश्ता बना कर पति का हाथ धुलाने आयी थी। इस समय केशव के प्यार की दर्द ने उसे एक पल के लिए बेचैन कर दिया। हा ! कौन जानता है, तीन साल मे क्या हो जाय ! मन में एक बेचैनी उठी- “”कह दूँ, प्यारे मत जाओ। थोड़ी ही खायेंगे, मोटा ही पहनेगें, रो-रोकर दिन तो न कटेगें।”” 

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(Hindi) Mark Zuckerberg Facebook

(Hindi) Mark Zuckerberg Facebook

“मार्क ज़करबर्ग की ज़िंदगी पर एक नजर

क्या आपने कभी सोचा है कि वर्ल्ड-फेमस टेक एंट्रेप्रेन्योर मार्क ज़करबर्ग के पास  Facebook  का बिलियन डॉलर आईडिया कैसे आया होगा? सिर्फ 2020 में,  Facebook  का रेवेन्यू लगभग 86 बिलियन डॉलर था. मार्केट में बहुत सारे नए सोशल मीडिया ऐप आने के बाद भी,  Facebook  ने अब भी लगातार सबसे पॉपुलर सोशल मीडिया वेबसाइट का ताज बरकरार रखा है. Facebook हमारी ऑनलाइन पहचान बन गई है.

इमेजिन कीजिए कि आपका बचपन का सपना हार्वर्ड जैसे नामी-गिरामी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का था और, आपका सपना सच हो जाता है. आप दुनिया के सबसे फेमस यूनिवर्सिटी में एक ऐसे सब्जेक्ट को पढ़ने के लिए जाते हैं जो हमेशा से आपका पैशन रहा है. फिर एक दिन ऐसी बात होती हैं जिससे आपको अपने ड्रीम यूनिवर्सिटी को छोड़ना पड़ता हैं. मार्क ज़करबर्ग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था  और तभी मार्क ने  Facebook  बनाने का सफर शुरू किया. आज हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ड्रॉपआउट, मार्क ज़करबर्ग ,  Facebook  के CEO और फाउंडर हैं और उनका नेट वर्थ 114 बिलियन डॉलर है. एक यूनिवर्सिटी ड्रॉपआउट से एक टेक मैग्नेट बनने तक की उनकी मज़ेदार सफर के बारे में जानने के लिए आगे पढ़िए.


शुरुवाती ज़िंदगी 

14 मई 1984 को व्हाइटप्लेन्स,न्यूयॉर्क में मार्क ज़करबर्ग का जन्म हुआ था. उनकी फैमिली पढ़ी-लिखी थी. उनके पिताजी एडवर्ड ज़करबर्ग एक डेंटिस्ट थे और उनकी माँ, केरन, एक साइकिएट्रिस्ट थीं. मार्क और उनकी तीन बहनें रैंडी, डोना और एरियल, न्यूयॉर्क के डाउनटाउन में डॉब्स फेरी नाम के एक छोटे से गाँव में पले-बढ़े थे.

ज़करबर्ग के पिता के शब्दों में, मार्क बचपन से ही स्ट्रांग विल पावर वाले और मज़बूत शख्स थे. वो कहते हैं, “”कुछ बच्चों के लिए, उनके सवालों का जवाब सिर्फ हां या ना में दिया जा सकता है, लेकिन, अगर मार्क ने कुछ मांगा, तो ‘हाँ’ कहना तो काफी था, लेकिन ‘ना’ का मतलब बहुत कुछ होता था. अगर आप उसे ‘ना’ कहना चाहते है, तो बेहतर होगा कि आप अपने ‘ना’ कहने की वजह, उसके पीछे का सच, मतलब, और लॉजिक को अपने साथ तैयार रखिए. हमें लगता था कि एक दिन वो वकील बनेगा और जूरी को 100% सक्सेस रेट से अपनी बातों को मनवाएगा.””

ज़करबर्ग छोटी उम्र से ही कंप्यूटर में इंट्रेस्टेड थे. 12 साल की उम्र में, उन्होंने अटारी बेसिक के इस्तेमाल से ज़कनेट नाम का एक मैसेजिंग प्रोग्राम बनाया. उन्होंने इस मैसेजिंग ऐप को अपने पिताजी के डेंटल क्लिनिक के लिए बनाया ताकि वहाँ की रिसेप्शनिस्ट उनके पिताजी को नए पेशेंट्स के बारे में आसानी से बता सकें. जल्द ही मार्क के फैमिली मेंबर्स ने भी एक दूसरे से बात करने के लिए ज़कनेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. ये बात इंटरेस्टिंग है कि जहां कुछ बच्चे कंप्यूटर गेम खेलते हैं, वहीं ज़करबर्ग ने कम्प्यूटर गेम बनाया. अपने दोस्तों के साथ कंप्यूटर गेम बनाना उनका हॉबी था.

ज़करबर्ग  के शुरुआती सालों से आप क्या सीख सकते हैं?

अपना जुनून, अपना पैशन ढूंढिए और उसमें इन्वेस्ट कीजिए.
दुनिया के सबसे कामयाब लोगों की ही तरह, ज़करबर्ग ने अपने जुनून के दम पर एक बड़ा एम्पायर खड़ी की. जिन हॉबीस में आपका इंटरेस्ट हैं, उसे आगे ले जाने की ज़रूरत हैं, और उसी पर काम करना चाहिए. अगर आपने अपनी ज़िंदगी के शुरुवात में एक जुनून पा ली हैं, तो आपको उस पर काम करना चाहिए और एक एक्सपर्ट बनने तक इसका प्रैक्टिस करना चाहिए. ज़करबर्ग एक ऐसे फैमिली में पले-बड़े जो उनका सपोर्ट करते थे. उनके पेरेंट्स ने कंप्यूटर के लिए उनके जुनून को पहचाना और छोटी उम्र से ही उनकी इस लर्निंग में इन्वेस्ट किया. ज़्यादातर पैरेंटस ग्रेड के पीछे भागते हैं और शायद नहीं चाहते कि उनके बच्चे इतनी कम उम्र में एक्स्ट्रा-कर्रिकुलर एक्टिविटीज़ में बहुत ज़्यादा पार्टिसिपेट करें. पर, ज़करबर्ग के पेरेंट्स ने उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में आगे बढ़ने के लिए एनकरेज किया हालांकि कई लोग सोचते कि वो किसी भी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम बनाने के लिए बहुत छोटे हैं.

Puri Summary Sune..

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(Hindi) Outrageous Advertising That’s Outrageously Successful: Created for the 99% of Small Business Owners Who Are Dissatisfied with the Results They Get from Their Current Advertising

(Hindi) Outrageous Advertising That’s Outrageously Successful: Created for the 99% of Small Business Owners Who Are Dissatisfied with the Results They Get from Their Current Advertising

“क्या आप जानते हैं कि आप हर रोज 3,700 मार्केटिंग और सेल्स के मैसेज देखते हैं ? शायद आप नहीं जानते  क्योंकि ये ऐड ज्यादातर बोरिंग होते हैं जिनका आप पर ज्यादा असर नहीं होता। अगर आप चाहते हैं की आपके ऐड  लोगों  को ज्यादा समय तक याद रहे, तो इस समरी  में आपको अपने हर  सवाल का  जवाब मिलेगा। ये  समरी  आपको सिखाएगी की outrageous कैसे बनें।

ये  समरी  किसे पढ़नी चाहिए?
•    छोटे और मीडियम साइज़ के बिजनेस चलाने वाले  लोगों  को
•    एडवरटाइजमेंट फील्ड के स्टूडेंट्स को 
•    मार्केटिंग इंडस्ट्री में काम करने वाले  लोगों  को

 ऑथर  के बारे में

Bill Glazer (बिल  ग्लेज़र  ) एक राइटर, मार्केटिंग स्ट्रेटेजीस्ट और स्पीकर हैं। 2002 में उन्हें RAC अवार्ड से सम्मानित दिया गया था, जो एडवरटाइजिंग की दुनिया मे बहुत बड़ा इनाम माना जाता है।
फिलहाल Bill कई फेमस बिज़नेस और कम्पनीयों के कंसलटेंट हैं और मार्केटिंग ग्रोथ के लिए आउट-ऑफ़-द-बॉक्स सलाह देते हैं।

 

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(Hindi) THE FOUR STEPS TO THE EPIPHANY -Successful Strategies for Products That Win

(Hindi) THE FOUR STEPS TO THE EPIPHANY -Successful Strategies for Products That Win

“आपको ये समरी क्यों पढ़नी चाहिए?
इमेजिन कीजिए कि आप हर रोज़ उठते हैं और अपना काम शुरू करने के लिए एक्साइटेड फील करते हैं क्योंकि आपकी अपनी कंपनी है जिससे आप बहुत प्यार करते हैं. ये कितना अच्छा फीलिंग हैं, हैं न? प्रॉब्लम ये है कि हममें से ज्यादातर लोग ऐसे जॉब्स में फंस गए हैं जो हमें पसंद ही नहीं हैं क्योंकि हम अपना खुद का बिज़नस शुरू करने का रिस्क नहीं उठा सकते.

जब हम रोज़ उन फ़ैल होते बिज़नस के बारे में सुनते हैं, तो हम मानने लगते हैं कि असली दुनिया में अपना बिज़नस अपने दम पर बनाने का कोई चांस ही नहीं है.
डरिए मत क्योंकि अब हम आपके लिए सबसे अच्छा गाइड लेकर आए हैं जो आज ही आपका बिज़नस शुरू करने में आपकी हेल्प कर सकता है. इस बुक में, सबसे सक्सेसफुल एंट्रेप्रेन्योर्स में से एक, स्टीव ब्लैंक आपको एक ऐसे बिज़नस मॉडल के बारे में सिखाएंगे जो आपके आईडिया को सच बनाएगा. 

आप अपने मार्केट को पहचानना, अपने आईडिया को टेस्ट करना, नए कस्टमर को अट्रैक्ट करना और एक सक्सेसफुल कंपनी बनाना सीखेंगे. 

ये समरी किसे पढ़नी चाहिए?

•    एंट्रेप्रेन्योर 
•    मैनेजर 
•    सीईओ
•    स्टार्ट-अप फाउंडर 

ऑथर के बारे में
स्टीव ब्लैंक एक अवार्ड-विनिंग सिलिकॉन वैली के एंट्रेप्रेन्योर है. उन्हें कस्टमर डेवलपमेंट प्रोसेस की शुरुवात करने के लिए पहचाना जाता है जिसने लीन  स्टार्ट अप  मूवमेंट शुरू किया. इसका मतलब है कि  स्टार्ट अप  बड़ी कंपनियों के छोटे वर्शन नहीं होते हैं बल्कि,  स्टार्ट अप  को कामयाब करने के लिए उसे अपना अलग ही प्रोसेस और टूल्स की ज़रूरत होती हैं. स्टीव ब्लैंक कस्टमर डेवलपमेंट और लीन  स्टार्ट अप  मेथड के बारे में लिखते और सिखाते हैं.

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(Hindi) Everyday Greatness: Inspiration for a Meaningful Life

(Hindi) Everyday Greatness: Inspiration for a Meaningful Life

“यह समरी आपको क्यों पढ़नी चाहिए? 
अगर आप उन  लोगों  में से है जो एक मीनिंगफुल लाइफ जीना चाहते है तो क्यों ना अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में एक ग्रेटनेस लाई जाए? इस किताब को पढने के बाद आप ये सीखोगे कि कैसे हम अपनी डेली लाइफ में ग्रेटनेस की प्रेक्टिस कर सकते है. साथ ही इस किताब में आपको ऐसी इंस्पायरिंग स्टोरीज़ पढने क मिलेंगी जो आपको बेहद अहम वैल्यूज़ सिखाएगी जो एक इंसान  के तौर पर हम सबके अंदर होनी चाहिए. 

यह  समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए? 
–    जो लीडर बनने की इच्छा रखते हैं 
–    लाइफ के हर फील्ड के  लोगों  को 
–    हर उस  इंसान  को जो अपनी जिंदगी को बेहतर और मीनिंगफुल बनाना चाहता है  
–    हर वो  इंसान  जिसे इंस्पिरेशन की तलाश है

ऑथर के बारे में 
   स्टीफ़न   कोवी एक बेस्ट सेलिंग ऑथर, लीडरशिप एक्सपर्ट, टीचर, कंसलटेंट,  बिजनेसमैन  होने के साथ-साथ एक बेहद सक्सेसफुल मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं.  स्टीफ़ेन सेल्फ-हेल्प, लीडरशिप और बिजनेस बुक्स लिखने के लिए जाने जाते है. उनकी सबसे फेमस बुक है “द सेवन हैबिट्स ऑफ़ हाईली इफेक्टिव पीपल” जिसकी तकरीबन 25 मिलियन से भी ज्यादा कॉपी बिक चुकी है. 1996 में    स्टीफ़न   कोवी को टाइम मैगज़ीन के 25 मोस्ट इन्फ्लुएंशल लोगों की लिस्ट में शामिल किया गया था. 
 

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Steve Jobs (Marathi)

Steve Jobs (Marathi)

“पुस्तकाविषयी: 

“”वाल्टर आइज़ैक्सन यांनी स्टीव जॉब्स यांच्या जीवनावर एक कम्पलीट आणि डिटेल बायोग्राफी लिहली आहे. स्टीव जॉब्स बद्दल तुम्हाला या पुस्तकात खूप माहिती मिळेल. तुम्हाला पर्सनल कॉम्प्युटर पासून ॲनिमेशन, म्युझिक आणि मोबाइल डिवाइस बनवण्यात झालेल्या इंनोवेशन्स बद्दलही खूप काही कळणार आहे.

स्टीव्ह जॉब्स यांनी वेगळा विचार करण्याची हिंमत केली होती. त्यांच्या या बायोग्राफी मधून तुम्हाला अनेक लेसन्स शिकायला मिळतील.

 

हे पुस्तक कोणी वाचायला हवे?

टेक्नोलॉजी चा वापर करणाऱ्यांनी, कॉम्प्युटर चा युज करणारे, यंग प्रोफेशनल्स.

 

लेखकाबद्दल: 

वाल्टर आइज़ैक्सन ने सीएनएन मध्ये सीईओ च्या पोस्ट वर काम केले आहे, ते टाइम मैगज़ीन चे मैनेजिंग एडिटर आणि एस्पेन इंस्टिट्यूट चे प्रेजिडेंट देखील होते. ते एक इतिहासाचे प्राध्यापक आणि बायोग्राफी लिहिणारे एक उत्तम ऑथर आहेत, त्यांनी स्टीव जॉब्स सोबतच लिओनार्डो दा विंची आणि अल्बर्ट आईन्स्टाईन यांच्यावर देखील पुस्तके लिहिलेले आहेत.

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Ikigai: The Japanese Secret to a Long and Happy Life (Marathi)

Ikigai: The Japanese Secret to a Long and Happy Life (Marathi)

“या धावपळीच्या आणि गोंगाटाच्या जीवनात तुम्ही तुमच्या मेंटल हेल्थकडे लक्ष देणे महत्वाचे आहे. कधीकधी तुमच्या समोर अशी वेळ येते, जेव्हां तुम्ही ह्या अंधारमय दूनियेत स्वतःला एकटे आणि दु:खी समजता.

मग तुम्ही स्वत:ला प्रश्न विचारता की आयुष्यातील बरीच वेळ निघून गेल्यानंतरही तुम्ही आयुष्यात काहीच मिळवलं नाही. हो ना? चांगली नोकरी असूनही तुम्ही तुमच्या कामाबाबत आनंदी नसता.

तुम्ही तुमच्या आवडीची करिअर निवडण्यास घाबरता,आणि होणाऱ्या बदलाला देखील घाबरता. पण आता घाबरू नका! कारण असा विचार करणारे तूम्ही एकटे नाहीत.

 

पुस्तकाविषयी: 

इकिगाई, या जपानी भाषेतील शब्दाचा मराठी अर्थ 'स्वत:च्या असण्याचे महत्त्व' असा आहे. म्हणजेच रीझन फॉर बिईंग. जेव्हा तुम्ही हे पुस्तक वाचाल तेव्हा तुमच्या लक्षात येईल की ही “”इकिगाई”” काय आहे. हे पुस्तक वाचल्यानंतर आम्हला पूर्ण खात्री आहे की तूम्हालाही तुमच्या जीवनातील इकिगाई म्हणजेच नेहमी आनंदी राहण्याचे कारण लवकरच सापडेल.

 

हे पुस्तक कोणी वाचायला हवे?

या पुस्तकात जीवनातील विविध पैलूंचा समावेश आहे जे तुम्हाला दीर्घ, परिपूर्ण आणि आनंदी आयुष्य जगण्यासाठी मार्गदर्शन करेल, याच कारणामुळे हे पुस्तक प्रत्येक वयोगटाच्या माणसासाठी उपयुक्त आहे. कारण प्रत्येक माणसाला इकिगाई समजणे गरजेचे आहे.

 

लेखकाबद्दल: 

इकिगाई हे पुस्तक हेक्टर गार्सिया आणि फ्रान्सेस्क मिरलेस यांनी लिहिले आहे. हेक्टर गार्सिया हे जपानचे नागरिक आहेत. जपानच्या संस्कृतीवर त्यांनी अनेक पुस्तके लिहिली आहेत. ज्यात “”ए गीक इन जपान आणि इकिगाई”” या दोन बेस्ट सेलर चा समावेश होतो. तर फ्रान्सेस्क मिरलेस कॉन्टीजॉच एक स्पॅनिश लेखक, निबंधकार, अनुवादक आणि संगीतकार आहे.

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(Hindi) Daroga Jii

(Hindi) Daroga Jii

“कल शाम को एक जरूरत से तांगे पर बैठा हुआ जा रहा था कि रास्ते में एक और महाशय तांगे पर आ बैठे। तांगेवाला उन्हें बैठाना तो न चाहता था, पर इनकार भी न कर सकता था। पुलिस के आदमी से झगड़ा कौन मोल ले। यह साहब किसी थाने के दारोगा थे। एक मुकदमे की पैरवी करने सदर आये थे!

मेरी आदत है कि पुलिसवालों से बहुत कम बोलता हूँ। सच पूछिए, तो मुझे उनकी सूरत से नफरत है। उनके हाथों जनता को कितनी तकलीफें उठानी पड़ती हैं, इसका अनुभव इस जीवन में कई बार कर चुका हूँ। मैं जरा एक तरफ खिसक गया और मुँह फेरकर दूसरी ओर देखने लगा कि दारोगाजी बोले- “”ज़नाब, यह आम शिकायत है कि पुलिस वाले बहुत रिश्वत लेते हैं;

लेकिन यह कोई नहीं देखता कि पुलिस वाले रिश्वत लेने के लिए कितने मजबूर किये जाते हैं। अगर पुलिस वाले रिश्वत लेना बन्द कर दें तो मैं कसम से कहता हूँ, ये जो बड़े-बड़े ऊँची पगड़ियोंवाले अमीर नजर आते हैं, सब-के-सब जेलखाने के अन्दर बैठे दिखाई दें। अगर हर एक मामले का चालान करने लगें, तो दुनिया पुलिसवालों को और भी बदनाम करे।

आपको यकीन न आयेगा जनाब, रुपये की थैलियाँ गले लगाई जाती हैं। हम हजार इनकार करें, पर चारों तरफ से ऐसे दबाव पड़ते हैं कि मजबूर होकर लेना ही पड़ता है।””

मैंने मजाक से कहा- “”ज़ो काम रुपये लेकर किया जाता है, वही काम बिना रुपये लिये भी तो किया जा सकता है।””

दारोगाजी हँसकर बोले- “”वह तो गुनाह बेकार होगा, भगवान। पुलिस का आदमी इतना कट्टर भगवान नहीं होता, और मेरा ख्याल है कि शायद कोई इंसान भी इतना सच्चा नहीं हो सकता। और सींगों के लोगों को भी देखता हूँ, मुझे तो कोई सही न मिला …””

मैं अभी इसका कुछ जवाब दे ही रहा था कि एक मियाँ साहब लम्बा कुर्ता पहने, तुर्की टोपी लगाये, तांगे के सामने से निकले। दारोगाजी ने उन्हें देखते ही झुककर सलाम किया और शायद हालचाल पूछना चाहते थे कि उस भले आदमी ने सलाम का जवाब गालियों से देना शुरू किया।

जब तांगा कई कदम आगे निकल आया, तो वह एक पत्थर लेकर तांगे के पीछे दौड़ा। तांगे वाले ने घोड़े को तेज किया। उस भले आदमी ने भी कदम तेज किये और पत्थर फेंका। मेरा सिर बाल-बाल बच गया। उसने दूसरा पत्थर उठाया, वह हमारे सामने आकर गिरा।

तीसरा पत्थर इतनी जोर से आया कि दारोगाजी के घुटने में बड़ी चोट आयी; पर इतनी देर में तांगा इतनी दूर निकल आया था कि हम पत्थरों की मार से दूर हो गये थे। हाँ, गालियों की मार अभी तक जारी थी। जब तक वह आदमी आँखों के सामने से गायब न हो गया, हम उसे एक हाथ में पत्थर उठाये, गालियाँ बकते हुए देखते रहे।

जब जरा मन शान्त हुआ, मैंने दारोगाजी से पूछा- “”यह कौन आदमी है, साहब? कोई पागल तो नहीं है?””

दारोगाजी ने घुटने को सहलाते हुए कहा- “”पागल नहीं है साहब, मेरा पुराना दुश्मन है। मैंने समझा था, जालिम पिछली बातें भूल गया होगा। वरना मुझे क्या पड़ी थी कि सलाम करने जाता।””

मैंने पूछा- “”आपने इसे किसी मुकदमे में सजा दिलाई होगी?””

“”बड़ी लम्बी कहानी है जनाब! बस इतना ही समझ लीजिए कि इसका बस चले, तो मुझे जिन्दा ही निगल जाय।””

“”आप तो शोक की आग को और भड़का रहे हैं। अब तो वह कहानी सुने बगैर शांति न होगी।””

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) Sadgati

(Hindi) Sadgati

“दुखी चमार दरवाजे पर झाड़ू लगा रहा था और उसकी पत्नी झुरिया घर को गोबर से लीप रही थी। दोनों अपने-अपने काम से फुर्सत पा चुके तो चमारिन ने कहा- “”तो जाके पंडित बाबा से कह आओ न! ऐसा न हो, कहीं चले जाएँ।””

दुखी- “”हाँ जाता हूँ; लेकिन यह तो सोच, बैठेंगे किस चीज पर?””

झुरिया- “”कहीं से खटिया न मिल जायेगी? ठाकुर के घर से माँग लाना।””

दुखी- “”तू तो कभी-कभी ऐसी बात कह देती है कि आग लग जाती है। ठाकुर मुझे खटिया देंगे! आग तक तो घर से निकलती नहीं, खटिया देंगे! एक लोटा पानी माँगूँ तो न मिले। भला, खटिया कौन देगा! हमारे उपले, सेंठे, भूसा, लकड़ी थोड़े ही हैं कि जो चाहें उठा ले जाएँ। ला, अपनी खटिया धोकर रख दें। गर्मी के दिन तो हैं। उनके आते-आते सूख जाएगी।””

झुरिया- “”वे हमारी खटिया पर बैठेंगे नहीं। देखते नहीं कितने नियम धर्म से रहते हैं!””

दुखी ने जरा परेशान होकर कहा, “”हाँ, यह बात तो है। महुए के पत्ते तोड़कर एक पत्तल बना लूँ तो ठीक हो जाए। पत्तल में बड़े-बड़े आदमी खाते हैं, वह पवित्र है। ला तो डंडा, पत्ते तोड़ लूँ।””

झुरिया- “”पत्तल मैं बना लूँगी। तुम जाओ, लेकिन हाँ, उन्हें “”सीधा”” भी तो देना होगा। अपनी थाली में रख दूँ?””

दुखी- “”क़हीं ऐसा गजब न करना, नहीं तो सीधा भी जाय और थाली भी फूटे! बाबा थाली उठाकर पटक देंगे। उनको बड़ी जल्दी गुस्सा चढ़ आता है। गुस्से में पंडिताइन तक को छोड़ते नहीं, लड़के को ऐसा पीटा कि आज तक टूटा हाथ लिये फिरता है। पत्तल में सीधा भी देना, हाँ। लेकिन तू छूना मत।””

झूरी- “”कहार की लड़की को लेकर साह की दूकान से सब चीजें ले आना। सीधा भरपूर हो। सेर भर आटा, आधा सेर चावल, पाव भर दाल, आधा पाव घी, नमक, हल्दी और पत्तल में एक किनारे चार आने पैसे रख देना। कहार की लड़की न मिले तो भुर्जिन(आग में अनाज भूनने वाली जाति) के हाथ-पैर जोड़कर ले आना। तू कुछ मत छूना, नहीं गजब हो जायगा।””

इन बातों को समझा करके दुखी ने लकड़ी उठाई और घास का एक बड़ा-सा गट्ठा लेकर पंडितजी से निवेदन करने चला। खाली हाथ बाबाजी की सेवा में कैसे जाता। नजराने के लिए उसके पास घास के सिवाय और क्या था। उसे खाली देखकर तो बाबा दूर ही से दुत्कारते। पं. घासीराम भगवान के परम भक्त थे। नींद खुलते ही भगवान की उपासना में लग जाते।

मुँह-हाथ धोते आठ बजते, तब असली पूजा शुरू होती, जिसका पहला भाग भांग की तैयारी थी। उसके बाद आधा घण्टे तक चन्दन रगड़ते, फिर आईने के सामने एक तिनके से माथे पर तिलक लगाते। चन्दन की दो रेखाओं के बीच में लाल रोली की बिन्दी होती थी।

फिर छाती पर, बाहों पर चन्दन की गोल-गोल मुद्रिकाएं बनाते। फिर ठाकुरजी की मूर्ति निकालकर उसे नहलाते, चन्दन लगाते, फूल चढ़ाते, आरती करते, घंटी बजाते। दस बजते-बजते वह पूजन से उठते और भंग छानकर बाहर आते। तब तक दो-चार जजमान दरवाजे पर आ जाते! भगवान की उपासना का तुरंत फल मिल जाता। वही उनकी खेती थी।

आज वह पूजा घर से निकले, तो देखा दुखी चमार घास का एक गट्ठा लिये बैठा है। दुखी उन्हें देखते ही उठ खड़ा हुआ और उन्हें साष्टांग दंडवत्(जमीन पर लेटकर प्रणाम करना) करके हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। यह तेजस्वी मूर्ति देखकर उसका दिल श्रृद्धा से भर गया! कितनी दिव्य मूर्ति थी। छोटा-सा गोल-मटोल आदमी, चिकना सिर, फूले गाल, ब्रह्म के तेज सी चमकती आँखें। रोली और चंदन देवताओं की प्रतिभा(ब्रिलिएंस) दे रही थी। दुखी को देखकर बोले – “”आज कैसे चला रे दुखिया?””

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) Tagada

(Hindi) Tagada

“सेठ चेतराम ने नहाया, शिवजी को जल चढ़ाया, दो दाने मिर्च चबायी, दो लोटे पानी पिया और छड़ी लेकर तगादे पर चले। सेठजी की उम्र कोई पचास की थी। सिर के बाल झड़ गये थे और खोपड़ी ऐसी साफ-सुथरी निकल आई थी, जैसे बंजर खेत। उनकी आँखें थीं तो छोटी लेकिन बिलकुल गोल। चेहरे के नीचे पेट था और पेट के नीचे टाँगें, मानो किसी ने पीपे में दो डंडे गाड़ दिए गए हों।

लेकिन, यह खाली पीपा न था। इसमें सजीवता और लगन कूट-कूटकर भरी हुई थी। किसी बाकीदार(जिसका कुछ देना बचा हो) असामी के सामने इस पीपे का उछलना-कूदना और पैंतरे बदलना देखकर कोई अभिनेता भी शर्मिंदा हो जाता। ऐसी आँखें लाल-पीली करते, ऐसे गरजते कि देखने वालों की भीड़ लग जाती थी।

उन्हें कंजूस तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जब वह दूकान पर होते, तो हर एक भिखारी के सामने एक कौड़ी फेंक देते। हाँ, उस समय उनके माथे पर कुछ ऐसा बल पड़ जाता, आँखें कुछ ऐसी तेज हो जातीं, नाक कुछ ऐसी सिकुड़ जाती कि भिखारी फिर उनकी दूकान पर न आता। उधार के पैसे वापस निकालने का बाप तगादा है, इस सिद्धान्त के वह पूरे भक्त थे।

नाश्ता करने के बाद शाम तक वह बराबर तगादा करते रहते थे। इसमें एक तो घर का खाना बचता था, दूसरे असामियों के माथे दूध, पूरी, मिठाई आदि चीजें खाने को मिल जाती थीं। एक समय का खाना बच जाना कोई साधारण बात नहीं है! एक खाना का एक आना भी रख लें, तो सिर्फ इसी हिसाब से उन्होंने अपने तीस सालों के महाजनी जीवन में कोई आठ सौ रुपये बचा लिये थे।

फिर लौटते समय दूसरे समय के लिए भी दूध, दही, तेल, तरकारी, उपले, ईंधन मिल जाते थे। अक्सर शाम का खाना भी न बनाना पड़ता था। इसलिए तगादे से न चूकते थे। आसमान फटा पड़ता हो, आग बरस रही हो, आँधी आती हो; पर सेठजी प्रकृति के ना टाले जा सकने वाले नियम की तरह तगादे पर जरूर निकल जाते।

सेठानी ने पूछा, “”खाना?””

सेठजी ने गरजकर कहा, “”नहीं।””

“”शाम का?””

“”आने पर देखी जायगी।””

सेठजी के एक किसान पर पाँच रुपये आते थे। छ: महीने से बदमाश ने सूद-ब्याज कुछ न दिया था और न कभी कोई तोहफा लेकर आया था। उसका घर तीन कोस से कम न था, इसलिये सेठजी टालते आते थे। आज उन्होंने उसी गाँव चलने का तय कर लिया। आज बिना बदमाश से रुपये लिये न मानूँगा, चाहे कितना ही रोये, गिड़गिड़ाए। मगर इतनी लम्बी यात्रा पैदल करना शर्मनाक था।

लोग कहेंगे नाम बड़े दर्शन थोड़े। कहलाते सेठ, चलते हैं पैदल इसलिए धीरे से इधर-उधर ताकते, राहगीरों से बातें करते चले जाते थे कि लोग समझें हवा खाने जा रहे हैं। अचानक एक खाली घोड़ागाड़ी उनकी तरफ जाती हुई मिल गई। गाड़ी वाले ने पूछा, “”क़हाँ लाला, कहाँ जाना है?””

सेठजी ने कहा, “”ज़ाना तो कहीं नहीं है, दो कदम तो और है; लेकिन लाओ बैठ जायँ।””

गाड़ी वाले ने चुभती हुई आँखों से सेठजी को देखा, सेठजी ने भी अपनी लाल आँखों से उसे घूरा। दोनों समझ गये, “”आज लोहे के चने चबाने पड़ेंगे।””

गाड़ी चली। सेठजी ने पहला वार किया, “”क़हाँ घर है मियाँ साहब?””

“”घर कहाँ है हुजूर, जहाँ पड़ा रहूँ, वहीं घर है। जब घर था तब था। अब तो बेघर, बेदर हूँ और सबसे बड़ी बात यह है कि बिना पंख का हूँ। तकदीर ने पंख काट लिये।

लुला बनाकर छोड़ दिया। मेरे दादा नवाबी में तहसीलदार थे हुजूर, सात जिले के मालिक, जिसे चाहें तोप-दम कर दें, फाँसी पर लटका दें। निकलने के पहले लाखों की थैलियाँ नजर चढ़ जाती थीं हुजूर। नवाब साहब भाई की तरह मानते थे। एक दिन वह थे, एक दिन यह है कि हम आप लोगों की गुलामी कर रहे हैं। दिनों का फेर है।””

सेठजी को हाथ मिलाते ही मालूम हो गया, पक्का खिलाड़ी है, अखाड़ेबाज, इससे जीत पाना मुश्किल है, पर अब तो कुश्ती बद गई थी, अखाड़े में उतर पड़े थे ।
बोले- “”तो यह कहो कि बादशाही घराने के हो। यह सूरत ही गवाही दे रही है। दिनों का फेर है भाई, सब दिन बराबर नहीं जाते। हमारे यहाँ लक्ष्मी को चंचला कहते हैं, बराबर चलती रहती हैं, आज मेरे घर, कल तुम्हारे घर। तुम्हारे दादा ने रुपये तो खूब छोड़े होंगे?””

Puri Kahaani Sune..

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See you at the top (Marathi)

See you at the top (Marathi)

“पुस्तकाविषयी: 

जर तुम्हाला वाटतं असेल की तुम्ही बॉटम मध्ये आहात तर ज़िग ज़िगलर चे असे मत आहे की तुम्हाला टॉप वर पोहोचण्यासाठी फक्त स्टेप शिकणे गरजेचे आहे आणि त्या स्टेप्स आहेत सेल्फी इमेज, रेलेशनशिप, गोल्स, तुमचे विचार, वर्क आणि इच्छा. या स्टेप्स ला स्वीकारले तर आनंद, पैसे, चांगल्या हेल्थ चे दरवाजे तुमच्यासाठी उघडे होतील.

याने काही फरक पडत नाही की, तुम्ही कोण आहात आणि तुम्ही कुठून आला आहात. तुमच्याकडे त्या सगळ्या क्वालिटीज़ आहेत ज्यांचा उपयोग करून तुम्ही तुमच्या आयुष्यात अजून बेस्ट देऊ शकता. मित्रांनो, जर तुम्ही पुढे जाण्याची इच्छा ठेवत असाल, तर हे पुस्तक तुमच्यासाठीच आहे.

 

हे पुस्तक कोणी वाचायला हवे?

एम्प्लॉईज़, पेरेंट्स, टीचर्स, मैनेजर्स, एथलीट्स तसेच त्या प्रत्येकानं ज्याला आपल्या आयुष्यात काहितरी जास्त / मोठं काहितरी अचिव करायचे आहे.

 

लेखकाबद्दल: 

ज़िग ज़िगलर हे एक मोटिवेशनल स्पीकर,ऑथर आणि सेल्समैन आहेत. त्यांनी स्वतःची 30 पेक्षा जास्त पुस्तके प्रकाशित केली आहेत. जिग जिगलर हे एक एक्सपर्ट सेल्समेन आहेत. त्यांनी पूर्ण अमेरिका मध्ये सेल्सपर्सन साठी अनेक लेक्चर आणि सेमिनार दिले आहेत.

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