(Hindi) Google

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सर्गे ब्रिन और लैरी पेज- गूगल के फाउंडर (Sergey Brin & Larry Page – the founders of google)

गूगल दुनिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला वेब बेस्ड सर्च  इंजन  ही नहीं है बल्कि ये एक मल्टीनेशनल टेक जाएंट है जो आज बड़े पैमाने पर कई इंटरनेट प्रोडक्ट और सर्विस जैसे गूगल क्रोम, गूगल एड, यूट्यूब, गूगल मैप जैसी कई सर्विसेस का ओनर भी है. गूगल दुनिया की सबसे बड़ी चार टेक कंपनीयों में से एक माना जाता है जिसका टेक इंडस्ट्री के एक बड़े पार्ट पर कब्ज़ा है जैसे अमेज़न, फेसबुक और एप्पल.

लैरी पेज ने सबसे पहले popularity के बेसिस पर वेब पेज बनाने के बारे में सोचा। उस वक्त लैरी पेज स्टैंडफोर्ड  यूनिवर्सिटी  में कंप्यूटर साइंस में पी. एच. डी. कर रहे थे. असल में लैरी ने गूगल सर्च  इंजन  अपने क्लासमेट सर्गे ब्रिन के साथ मिलकर एक रिसर्च प्रोजेक्ट के तौर पर बनाया था. आपने देखा होगा कि आज ज्यादातर लोग इंटरनेट के इस्तेमाल के साथ ही गूगल यूज़ करना शुरू कर देते है.

लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा कि वो जीनियस था कौन  जिसके दिमाग में सबसे पहले गूगल का आईडिया आया? ये दोनों ब्रिलिएंट पी. एच. डी. स्टूडेंट आज दुनिया के सबसे अमीर  लोगों  में गिने जाते है. अगर आप इस बारे में और जानना चाहते है तो आइए, पढ़ते है उस जोड़े की कहानी जिन्होंने इंटरनेट के शुरुवाती दिनों में गूगल क्रिएट किया था.

लैरी पेज का शुरूआती जीवन (Early years of Larry page)
लॉरेंस पेज मिशिगन शहर में जन्मे थे, उनके पिता डॉक्टर कार्ल विक्टर पेज मिशिगन स्टेट  यूनिवर्सिटी  में  कंप्यूटर साइंस और आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के प्रोफेसर थे. उनकी मदर ग्लोरिया भी कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की टीचर थी. इसलिए लैरी को बचपन से ही कंप्यूटर और टेक्नोलोजी के बारे में जानने और समझने का मौका मिल गया था क्योंकि उनके घर में कई फर्स्ट जेनेरेशन पर्सनल कंप्यूटर थे और कई टेक मैगज़ीन भी आती थी. इसलिए कोई हैरानी की बात  नहीं

अगर पेज के बड़े भाई, कार्ल पेज जूनियर, आज एक जाने-माने इंटरनेट एंटप्रेन्योर है. पेज ने मिशिगन  यूनिवर्सिटी  से पढाई की थी. वो अपने कॉलेज के सोलर कार टीम का पार्ट थे जो सस्टेनेबल vehicle  टेक्नोलोजी एक्सप्लोर कर रही थी, जिसके बारे में पेज आज भी काफी पैशनेट है. उन्होंने कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बैचलर की डिग्री ली और उसके बाद जल्द ही पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए स्टैंडफोर्ड  यूनिवर्सिटी  में दाखिला ले लिया.

जब वो स्टैंडफोर्ड में थे तो उन्ही दिनों उन्होंने एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया था जिसकी वजह से गूगल का जन्म हुआ. इस प्रोजेक्ट में उन्हें इंटरनेट और वेबसाइट के बीच लिंक करने वाले पैटर्न को ऐनालाईज़ करना था. इस प्रोजेक्ट में उन्होंने अपने क्लासमेट सर्गे ब्रिन की हेल्प ली जो उन्ही की तरह स्टैंडफोर्ड के साइंस ग्रेजुएट थे.

Exposure to computers and technology from a young age

लैरी पेज एक ऐसे इंसान के बेटे थे जो कंप्यूटर की खोज या उसका रास्ता बनाने वाले माने जाते थे. इंटरनेट के शुरुवाती दौर से ही लैरी के दोनों पेरेंट्स कंप्यूटर को लेकर पैशनेट थे और यही वजह थी कि उनके घर में कई सारे फर्स्ट जेनरेशन कंप्यूटर रखे हुए थे.

अब इसमें हैरानी की कोई बात  नहीं  कि ऐसे माहौल में रहते हुए लैरी बचपन से ही टेक्नोलज़ी और कंप्यूटर की तरफ अट्रेक्ट होने लगे थे. घर के माहौल ने उन्हें लाइफ में सही डायरेक्शन भी दी जिसने उनके अंदर कंप्यूटर के लिए गहरी दिलचस्पी पैदा कर दी थी. यही कारण था कि उन्होंने अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई  के लिए सब्जेक्ट के तौर पर कंप्यूटर साइंस चूज़ किया था .

wired.com को दिए एक इंटरव्यू में पेज ने बताया कि “ उनका बचपन से ही एक इन्वेंटर बनने का सपना था और वो नए-नए गैजेट बनाकर दुनिया को बदलना चाहते है”. बाद में मिशिगन  यूनिवर्सिटी  में जब वो एक अंडर ग्रेजुएट स्टूडेंट थे, तो वहां एक स्टूडेंट लीडरशिप प्रोग्राम” LeaderShape, से बड़े मोटिवेट हुए जिसकी टैगलाइन थी “a healthy disregard for the impossible.” जिसका मतलब है “हम नामुमकिन शब्द को नहीं मानते”.

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(गूगल के शुरुवाती दिन ) The beginning years of Google

इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब आने के कुछ ही दिनों इसने टेलीकम्यूनिकेशन की दुनिया में कदम रखा जब पेज अपने वेब बेस्ड सर्च  इंजन  पर काम कर रहे थे. वैसे उन दिनों वेब एक्सप्लोर करने के लिए पहले से कई और सर्च  इंजन  मौजूद थे लेकिन ये उतने एफिशिएंट  नहीं  थे. ये सर्च इंजन यूजर के वेब पेज पर उसकी क्वेरी से मैच करते वेब पेज डिस्प्ले कर देते थे, और होता ये था कि कई सारे ऐसे वेब पेज़ेस आ जाते थे जिनका यूजर की क्वेरी से कोई लेना-देना  नहीं  होता था.

पेज का आईडिया था कि एक ऐसा मेथड क्रिएट किया जाए जिससे ये पता चल सके कि एक दिए हुए पेज से लिंक्ड कितनी सारी वेबसाईट अवलेबल है. पेज जानते थे कि दूसरी वेबसाइट से नंबर ऑफ़ लिंक्स पर बेस्ड वेब पेज को रैंक से रखना ज्यादा सही रहेगा, ताकि पता चल सके कि वो वेब पेज यूजर की सर्च क्वेरी से कितना मिलता –जुलता है. तो इस तरह पेज ने अपने इस आईडिया को बेस बनाकर एक  algorithm  पर काम करना शुरू कर दिया. इस प्रोजेक्ट में उनकी मदद के लिए उनके साथ सर्गे ब्रिन भी थे जो उनके क्लासमेट और एक डेटा माईनिंग एक्सपर्ट थे.

पेज और सर्गे ने मिलकर एक “ पेजरैंक”  algorithm  क्रिएट किया और इसी के बेस पर दोनों ने अपने रिसर्च पेपर लिखे थे, पहला “Dynamic Data Mining: A New Architecture for Data with High Dimensionality” और उसके बाद “The Anatomy of a Large-Scale Hypertextual Web Search Engine”.

पेज और ब्रिन ने एक सर्च  इंजन  के प्रोटोटाइप (प्रोटोटाइप मतलब शुरूआती मॉडल) पर काम किया जिसे उस वक्त उन्होंने ” बैकरब” नाम दिया था. इसके बारे में  लोगों  को पता चला और बैक रब को ज़बरदस्त रिव्यु मिलने लगे. दोनों अब तक बैकरब को डेवलप करने के लिए एक सर्वर नेटवर्क भी क्रिएट कर चुके थे जो उन्होंने लैरी पेज के होस्टल रूम में रखे कुछ सस्ते पर्सनल कंप्यूटर्स यूज़ करके बनाया था.

यहाँ तक कि दोनों ने अपने प्रोजेक्ट के लिए डिसकाउंटेड टेराड्राइव्स खरीदने के लिए अपने क्रेडिट कार्ड के मैक्सिमम लिमिट तक यूज़ किये. बैकरब पर काम करने के दौरान ही उन्होंने इसका नाम बदलकर गूगल रख दिया. ये नाम उन्हें सूझा था एक लार्ज नंबर से जिसे गूगोल (googol) कहते है—नंबर 1 के पीछे 100 जीरो—ये नाम उन्होंने एक बुक में पढ़ा था जिसका टाईटल था” मैथमेटिक्स एंड द इमेजिनेशन” और जिसके राईटर थे Edward Kasner और James Newman.

ये नाम इसलिए चूज़ किया गया क्योंकि ये इन्फोर्मेशन की उस अथाह गहराई को रीप्रेजेंट करता है जो गूगल अपने यूजर्स को प्रोवाइड करता है. गूगल का मिशन है “to organize the world’s information and make it universally accessible and useful.” जिसका मतलब है “दुनिया भर की इनफार्मेशन को इस तरह organize करना ताकि दुनिया के किसी कोने से भी इसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सके और लोगों के लिए useful बनाया जा सके”. (गूगल मिशन स्टेटमेंट)

गूगल को जो चीज़ यूनीक बनाती है वो है उसका  algorithm  पेजरैंक जिसे पेज और ब्रिन ने डेवलप किया था जो वेबसाईट को पोपुलेरिटी और relevance के हिसाब से रैंक करती है. और ये डिसाइड होता है उन वेब पेज के थ्रू जो ओरिजिनल साईट से लिंक्ड रहते है. ये सर्च रीज्ल्ट क्राईटेरिया वही सर्च रीज्ल्ट डिस्प्ले करेगा जो यूजर्स की एंटर की गई सर्च क्वेरी के साथ पूरी तरह से मैच कर जाए. शूरू-शुरू में जब उन्होंने अपने सर्च  इंजन  algorithm  का लाईसेंस लेने की कोशिश की तो कोई भी इस प्रोडक्ट को लेना  नहीं  चाहता था क्योंकि तब ये डेवलप हो ही रहा था. पेज और ब्रिन ने लेकिन हार  नहीं  मानी. वो गूगल में काम करते रहे, इसमें इम्प्रूवमेंट लाते रहे क्योंकि वो इसे एक प्रॉफिटेबल प्रोडक्ट बनाकर एक दिन पब्लिक कर देना चाहते थे.

2002 – (लैरी पेज ने गूगल को $3 बिलियन में याहू को बेचने से मना कर दिया ) Larry page refuses to sell Google for $3 billion to Yahoo

2002 में याहू एक बड़ी टेक जाएंट बनकर उभर रही थी, जो उस वक्त इंटरनेट की दुनिया में टॉप पर थी, ये उन्ही दिनों की बात है जब याहू का ध्यान गूगल के फ़ास्ट ग्रोईंग सर्च  इंजन  की तरफ गया. तो याहू ने गूगल को $3 बिलियन में खरीदने का ऑफर दे डाला, जो उस वक्त के हिसाब से किसी भी स्टार्ट-अप के लिए काफी बड़ी रकम थी. याहू के सीईओ टेरी सेमेल का मानना था कि उस वक्त गूगल को तो इतना रेवेन्यू भी नहीं मिल रहा था. याहू ने गूगल में पोटेंशियल देखी कि आने वाले वक्त में गूगल इंटरनेट की दुनिया में छा जाएगा. लेकिन इसके बावजूद पेज और ब्रिन क्विक मनी के लालच में  नहीं  पड़े.

सिर्फ तीन साल पहले तक वो गूगल को $750,000 में भी बेचने को तैयार थे लेकिन आज वो इसे एक ऐसे प्रोडक्ट में तब्दील कर चुके थे जो बेशकीमती था. आज इंटरनेट की दुनिया पर सिर्फ गूगल की मोनोपोली चलती है जबकि याहू जितनी तेज़ी से उभरा था, उतनी ही तेज़ी से नीचे गिरा और एंड में इसे वेरिज़ोन (Verizon) ने खरीद लिया और आज इसकी ई-मेल सर्विस कोई यूज़  नहीं  करता.

ये चीज़ हमे सिखाती है कि अपने प्रोडक्ट की वर्थ जानना और एक फ्यूचर विज़न रखना कितना इम्पोर्टेंट होता है. पेज और ब्रिन गूगल में इन्वेस्ट करते रहे. दोनों हमेशा इसे एक्सपैंड और डेवलप करने में बिजी रहते थे, इसलिए उन्होंने ऐसे बड़े ऑफर की भी परवाह  नहीं  की और गूगल को बेचने से मना कर दिया. क्योंकि उन्हें अपने प्रोडक्ट की पोटेंशियल मालूम थी और उनके इस राईट डिसीजन ने ही आज उन्हें मल्टी-बिलेनियर बना दिया.

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(शुरुवाती फंडिंग) Initial Funding

आखिरकार लैरी और ब्रिन की कड़ी मेहनत और कमिटमेंट रंग ले ही आई, क्योंकि उन्हें अपना पहला इन्वेस्टर मिल चूका था. Andy Bechtolsheim, सन माइक्रोसिस्टम के को-फाउंडर थे जिन्हें सिर्फ एक शोर्ट गूगल डेमो देखने के बाद ही टेक्नोलोजी पसंद आ गई थी.  उन्होंने पेज और ब्रिन से कहा” सारी डिटेल्स वगैरह डिस्कस करने के बजाए क्यों ना मैं तुम्हे सीधे चेक ही दे दूं?” (लैरी पेज- गूगल इंक के को-फाउंडर)

और उन्होंने गूगल इंक को $100,000 का चेक तब लिखकर दिया था जब गूगल एक लीगल फर्म के तौर पर अभी रजिस्टर्ड भी  नहीं  हुई थी. फिर जल्द ही सितम्बर 4, 1998 में गूगल बाकायदा एक रजिस्टर्ड कंपनी बनी. फंडिंग के शुरुवाती दौर में उन्होंने एक बार फिर से $900,000 तक फंड रेज़ कर लिया था. कुछ इन्वेस्टर्स जो इनके लिए फ़रिश्ता बनकर आये थे उनमे से थे टेक पायनियर अमेज़न. कॉम के फाउंडर जेफ़ बेज़ोस.

होस्टल के एक छोटे से कमरे से लेकर, गैराज और फिर कई टेम्पररी ऑफिस के बाद आखिरकार 1999 में  गूगल ने माउंटेन व्यू, कैलिफ़ोर्निया में कुछ बिल्डिंग लीज पर लेकर अपना खुद का ऑफिस खोला. तब से लेकर आज तक गूगल का हेडक्वार्टर इसी ऑफिस में है. आज इन सभी बिल्डिंग को मिलाकर गूगलप्लेक्स बोला जाता है और गूगलप्लेक्स अपने एम्प्लोईज़ को एक क्रिएटिव और अनोखे वर्क एनवायरमेंट में कई सारी एंटरटेनमेंट फेसिलिटी ऑफर करने के लिए ही जाना जाता है.

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