(Hindi) Kalpana Chawla

(Hindi) Kalpana Chawla

कुछ लोगों की किस्मत में, अपनी जिंदगी में बहुत बड़ा काम करना लिखा होता है. वे इतने बड़े काम कर जाते हैं कि हम सोच भी नहीं सकते. लेकिन यह कौन से लोग हैं जिन्होंने अपनी इतनी महान किस्मत लिखी?

यह वही लोग होते हैं जो कुछ अनोखा करने का सपना देखने की हिम्मत करते हैं. ऐसे लोग हमेशा कुछ बड़ा हासिल करने की कोशिश करते रहते हैं और तब तक कोशिश करते हैं जब तक वे कामयाब ना हो जाए. यह खास कहानियों वाले आम लोग हैं और इनकी कहानियां खास इसलिए है क्योंकि उन्होंने उसे ऐसा बनाया है.

एक बात जो हमेशा से ‘cool’ रही है ,वो है आउटर स्पेस यानि अंतरिक्ष में जाने का आईडिया. जिस प्लानेट अर्थ, जिस धरती पर आप और हम रह रहे हैं, उससे बाहर निकल कर स्पेस पर जाने के ख्याल ने लोगों को अपने सपनों को हासिल करने के लिए हमेशा इंस्पायर किया हैं. और, जो लोग इस अंतरिक्ष का सफर करते हैं, उनकी ही तो कहानियां बनती हैं .
आज हम एक ऐसे ही इंस्पिरेशनल औरत के बारे में बात करने जा रहे हैं जो आउटर स्पेस गई थी. इससे उन्होंने लाखों लोगों के सामने एक मिसाल कायम की जिससे लोग खुद पर भरोसा करने और नामुमकिन को मुमकिन करने के लिए इंस्पायर होते है.
आइए, स्पेस पर जाने वाली इंडियन ओरिजिन की पहली महिला कल्पना चावला की कहानी सुनते हैं. कल्पना चावला का जन्म भारत के  शहर करनाल में हुआ था, जो आज हरियाणा में पड़ता है. लेकिन, जब कल्पना चावला का जन्म 17 March 1962 को हुआ था तब करनाल पंजाब का हिस्सा था. उनकी मां और पिताजी का नाम बनारसी लाल चावला और संज्योती चावला हैं. वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी. कल्पना से पहले उनकी दो बहनें और एक भाई थे. जब कल्पना का जन्म हुआ, तो प्यार से उनका नाम ‘मोंटू’ रखा गया. हालांकि जब वो 3 साल की थी तो उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘कल्पना’ कर लिया. कल्पना’ का मतलब हैं ‘imagination’ ‘ख्याल’ और तब से यह उनका ऑफिशियल नाम बन गया था.
कल्पना की फैमिली ,उनके चाचा की फैमिली के साथ करनाल के उनके घर पर रहते थे . उन्होंने अपना बचपन इसी घर में बिताया, जिसे वे ‘पुराना घर’ बुलाती थी. यह वही जगह है जहां से वो आसमान की ओर ताकती थी और हैरान होती थी. वो रात को आसमान में दिखने वाले तारों के रहस्य से भरी दुनिया को देखकर गुम हो जाती.
कल्पना की फ़ैमिली उन्हें स्कूल में जल्दी डालना चाहते थे. उनका एडमिशन आसानी से हो जाए इसलिए उन्होंने कल्पना का birth year 1962 के बजाय 1961 बताया था. वो primary और secondary पढ़ाई के लिए टैगोर बाल निकेतन स्कूल गई थीं.
जब कल्पना अपनी टीन ऐज के शुरुवाती सालों में थी, तब उनकी फ़ैमिली कुंजपुरा रोड के एक बेहतर और बड़े घर में रहने लगी . अब, इस सड़क को रुडयार्ड किपलिंग ने अपने किताब 'किम' की वजह से मशहूर किया.
उनके पिता एक बिज़नसमैन थे, जिन्होंने काफी मुश्किलें झेली थी लेकिन फिर भी, उन्होंने अपने फ़ैमिली के लिए एक लगभग ऐशोआराम की ज़िंदगी दी.
उन्होंने सिर्फ पांच साल तक की ही पढ़ाई की थी, वैसे कम पढ़ाई लिखाई करना उन दिनों आम बात होती थी. देश के पार्टीशन के कारण उन्हें काफी कुछ भुगतना पड़ा था. लेकिन, वो गरीबी से उबर गए और अपने फ़ैमिली को एक बेहतरीन लाइफस्टाइल दी .उन्होंने यह सब अपने दम पर हासिल किया था, क्योकिं उनके अंदर कुछ कर गुज़रने की आग थी. हम देख सकते हैं कि उनकी बेटी में भी वही आग थी जिसने उनके अंतरिक्ष में जाने के सपने को सच बनाया था.
कल्पना के पिताजी एक बिजनेसमैन थे, इसलिए वो अक्सर अपने फ़ैमिली की देखभाल करने के लिए उनके साथ नहीं होते थे. उसकी माँ भी कल्पना की दादी की देखभाल में बिज़ी रहती थी. वो धर्म में विश्वास रखने वाली और समझदार औरत थी. उन्होंने हमेशा अपने बच्चों के सपनों और इच्छाओं का साथ दिया.

कल्पना और उनके दो भाई-बहनों की देखभाल उनकी सबसे बड़ी बहन सुनीता करती थी. कल्पना अपनी इस बहन के बहुत करीब थीं, और उन दोनों के बिच गहरा रिश्ता था. इसलिए कल्पना का बचपन बहुत ही अच्छा रहा. इसने कल्पना को एक मज़बूत फाउंडेशन दी जिसकी वजह से वो अपने लाइफ को लेकर राय बना पाई और अपने टैलेंट को समझ पाई. बचपन से ही, वो अपने एम्बीशन्स, अपने सपनों, को पाने के लिए अपनी सारी काबिलियत और अपना पूरा ज़ोर लगा देती थी.

जब वो छोटी थी, तो वो पुष्पक एयरोप्लेन को अपने सर के ऊपर से उड़ान भरते हुए देखती थी, जिसने उसके मन में भी उड़ने की इच्छा की चिंगारी जगाई थी. वो अपने 11th और 12th की पढ़ाई के लिए दयाल सिंह कॉलेज और डी.ए.वी कॉलेज फॉर वीमेन गई थी.

उन दिनों का ट्रेंड यह था कि जिन लड़कियों ने यह प्राइमरी एजुकेशन पूरी कर ली है, उनकी शादी कर दी जाती थी. उनके पिताजी के मन में भी यही सोच थी. हालाँकि, कल्पना के मन में अपने लिए कुछ और ही प्लान्स थे. वो एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करना चाहती थी. शुरु-शुरू में उनके पिताजी इस बात के लिए तैयार नहीं हुए थे.

हालाँकि, कल्पना की माँ और बहन सुनीता उनके पीछे मजबूती से खड़ी रहीं और उनके पिताजी को इसके लिए मना लिया. इनकी वजह से वो अपने सपनों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ पाई. और इसलिए उन्होंने ऐसे कॉलेजों की तलाश शुरू कर दी जो इस कोर्स को पढ़ाते थे. लेकिन, अफ़सोस, एयरोनॉटिकल  इंजीनियरिंग अपने आप में एक अलग फील्ड था, और हर कॉलेज एक क्वालिटी कोर्स नहीं देती थी.

इसलिए, उन्होंने और उनके फैमिली ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के लिए पूछताछ की. लेकिन उन्हें कहा गया कि लड़कियाँ इस फील्ड में नहीं आती और वे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के लिए कोशिश करे तो बेहतर होगा. हालांकि, कल्पना इससे बिलकुल निराश नहीं हुई और वे अपने फैसले पर टिकी रही. और इसलिए, वो उन पहली चार लड़कियों में से एक थीं, जिन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और वो एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के लिए अप्लाई करने वाली पहली लड़की बनी.

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करनाल में, एक एयरपोर्ट और फ्लाइंग क्लब था जो उस वक्त के हिसाब से अनोखी बात थी. कल्पना ने वहाँ डेमोंस्ट्रेशन फ्लाइट के लिए अपने पिताजी को मना लिया. उसके बाद, वो अक्सर बुक  स्टोर्स में एविएशन सेक्टर की किताबों के लिए जाती रही.

वो जे.आर.डी टाटा को रेस्पेक्ट करती थीं. टाटा, इंडिया के पायनियर एविएटर और बिजनेसमैन थे. इन्होंने ही एयर इंडिया की शुरुवात की थी. कल्पना ख़ास तौर पर इनकी ऊँची सोच, हाई स्टैंडर्ड और किसी भी तरह के illegal और corrupt प्रैक्टिस से दूर रहने के हौसले से काफी इम्प्रेस्ड थी.

इतना ही नहीं, कल्पना को नेचर से भी बहुत प्यार और लगाव था. वे कुंजपुरा रोड वाले अपने घर के सामने बने खूबसूरत गार्डन की देखभाल करती. यह कुछ ऐसा था जिसमें वे और उनकी बहन सुनीता, दोनों को एक समान इंटरेस्ट था. वे दोनों ही नेचर के बहुत करीब थे.

जब वे पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में थीं, तो कुछ वक्त में ही वे एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के फैकल्टी- प्रोफेसर वी.एस. मल्होत्रा और प्रोफेसर एस.सी. शर्मा के फेवरेट बन गई.
कल्पना ऐसी शख्स थी जो किसी भी तरह के अन्याय या गलत व्यवहार के आगे नहीं झुकती थी. जब वो कॉलेज में फ्रेशर थी, तो उन्हें बताया गया कि सीनियर्स अक्सर जूनियर्स को परेशान करते हैं. जब उनके  सीनियर्स ने उनसे अपनी बात मनवानी चाही, तो उन्होंने मना कर दिया और उनसे पूछा, 'तुम क्या करोगे? मुझे मारोगे?' उस दिन के बाद किसी ने उन्हें परेशान नहीं किया. उन्होंने भी अपनी सिक्योरिटी को हल्के में नहीं लिया और पर्सनल प्रोटेक्शन के लिए कराटे की ट्रेनिंग ली.

और आखिर में, उन्होंने 1982 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बैचलर्स की डिग्री के साथ ग्रेजुएशन पूरी की. उन्हें फ़ौरन बैंगलोर के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने जॉब की ऑफर दी. लेकिन, उन्होंने इस जॉब ऑफर को ठुकरा दिया क्योंकि उनके दिमाग में कुछ दूसरे ही प्लान्स थे.
वो एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स करना चाहती थी. इसलिए, उन्होंने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन, वो जानती थी कि अगर उन्हें मास्टर्स करना है तो उन्हें अमेरिका जाना होगा. क्योंकि उन दिनों इंडिया अपने पैरों पर खड़ा हो रहा था और मास्टर्स के लिए अच्छे इंस्टिट्यूट नहीं थे. और इसलिए, जब वो पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर थीं, तो उन्होंने अमेरिका के अलग-अलग यूनिवर्सिटीज़ में मास्टर्स के लिए अप्लाई करना शुरू कर दिया.
उनके पास अपने प्रोफेसरों से बेहतरीन सिफारिशें थीं, और उनका ट्रैक रिकॉर्ड भी शानदार था. इसलिए, उनके एप्लीकेशन को एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग प्रोग्राम के लिए कई जाने-माने यूनिवर्सिटीज़ ने आसानी से मान लिया, जैसे कि  आर्लिंग्टन  में  टेक्सस  यूनिवर्सिटी, जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यूयॉर्क में  रेंस्लेयर  पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट (Rensselaer Polytechnic Institute).

उन्होंने  टेक्सस  यूनिवर्सिटी को चुनने का फैसला किया क्योंकि वे उनके फर्स्ट ईयर से ही असिस्टमेनशिप देने को तैयार थे. इसका मतलब था कि वे यूनिवर्सिटी में काम भी कर सकती थी और सीखने के साथ-साथ कुछ पैसे भी कमा सकती थी. कल्पना को पैसों की कद्र थी इसलिए, वो नहीं चाहती थी कि उनके माँ-पिताजी ज़रूरत से ज़्यादा उन पर खर्च करें. इस इनकम से उन्हें काफी मदद मिलने वाली थी.

इसलिए, जब वो जाने के लिए तैयार हुई, तो उनके साथ उनके भाई भी थे, जो उन्हें उनके घर और कॉलेज में सेटल करने में हेल्प के लिए थे. उनके भाई तब तक उनके साथ रहे जब तक वो खुद नए माहौल में और अपने नए घर में सेटल नहीं हो गई. और इसलिए, वो 1 September 1982 को U.S आ गई, ठीक उसी समय जब autumn सेमेस्टर शुरू होने वाला था. उन्होंने वहाँ अपने रूममेट्स के साथ खुद को आसानी से सेटल कर लिया था.

भले ही कल्पना का इंटरेस्ट उड़ने में था, लेकिन जब वो  आर्लिंग्टन  में थी तो उन्होंने ज्यादा फ्लाइट्स में उड़ान नहीं भरी थी क्योंकि वो अपनी पढ़ाई पर ज़्यादा फोकस करना चाहती थी. जब उनके पिताजी  आर्लिंग्टन  में उनसे मिलने आए थे, तो वो उन्हें एविएशन शो दिखाने ले गई, जो उन दिनों इंडिया में नहीं हुआ करता था. उन्होंने अपने लगभग सारे सब्जेक्ट्स में एक्सीलेंट A  ग्रेड के साथ अपने मास्टर की पढ़ाई पूरी की.

जब वो  आर्लिंग्टन  में थी, तब उन्होंने सिर्फ पढ़ाई नहीं की. उसने स्कूबा डाइविंग और स्विमिंग जैसे दूसरे इंटरेस्ट को भी अपनाया. जब वो स्विमिंग करना सिर्फ सीख ही रही थी, तो वो पूल के गहराई तक चली गई और एक्सपर्ट न होने की वजह से डूबने लगी. लेकिन फिर भी, उन्होंने खुद को शांत रखा और सिचुएशन से खुद को बाहर निकाला. इस घटना से पता चला कि वो किसी भी सिचुएशन से बाहर निकलने की काबिलियत रखती थी और कभी-कभी रिस्क लेने से भी नहीं चूकती थी. उन्हें लम्बे हाइकिंग पर जाना पसंद था, और भले ही टेक्सस में लम्बी दुरी तक पैदल चलने के लिए सही जगह ढूंढना मुश्किल था, फिर भी उन्होंने अपने लिए ऐसी जगह ढूंढ निकाली थी.
अपने मास्टर्स की पढ़ाई के लिए कल्पना की थीसिस का सब्जेक्ट था-'the evaluation of a cross-flow fan embedded within an airplane wing'. उन्होंने 1984 में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की. जब वो  आर्लिंग्टन  में थी, तो उन्हें 1984 में अपना ड्राइविंग लाइसेंस भी मिला. उन्हें ड्राइविंग करना कुछ ख़ास पसंद नहीं था, लेकिन उन्होंने एक पुरानी कार खरीदी ताकि वो आराम से यहां-वहां जा सके. उन्हें हाथ गंदे होने का भी डर नहीं था इसलिए वो अक्सर अपनी कार की रिपेयर खुद ही करती थी.

अब, यह वक्त उनके पीएच.डी का था. उन्होंने बोल्डर में, कोलोराडो यूनिवर्सिटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में एनरोल करने का फैसला लिया. यहाँ वे कंबस्चन( combustion) सब्जेक्ट और ज़ोर देना चाहती थी. इसलिए उन्होंने  आर्लिंग्टन  छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई के लिए बोल्डर चली गई.

लेकिन, जैसे ही उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया, उन्होंने महसूस किया कि उन्हें यह पसंद नहीं आ रहा था और यह वो नहीं था जो वो करना चाहती थी. इसलिए, उन्होंने 1985 में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की ओर वापस अपना रुख किया. उन्होंने अपनी पी.एच.डी 1988 में की और उनका सब्जेक्ट रहा  ''computational fluid dynamics project to calculate the forces acting on airfoil fitted with oscillating spoilers on its upper surface.’

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