(hindi) THE POWER OF HABIT By Charles Duhigg

(hindi) THE POWER OF HABIT By Charles Duhigg

इंट्रोडक्शन

अगर आप सोचते है कि आप अपनी बुरी आदते कभी नहीं बदल सकते, आप निराश होकर सारी उम्मीद खो चुके है तो एक बार एक  समरी  पढ़कर देखिए, ये आपकी आँखे खोल देगी.

इस  समरी  से आप सीखोगे कि हैबिट कैसे काम करती है और कैसे हम अपनी लाइफ में हैबिट लूप को अप्लाई कर सकते है.

इस  समरी  में आपको ऐसे  लोगों  की कहानियाँ पढने को मिलेंगी जिनकी कुछ बुरी आदते थी जो वो चाह कर भी नहीं छोड़ पा रहे थे, पर अपनी विलपॉवर से उन्होंने अपनी लाइफ ही बदल कर रख दी. ना सिर्फ उन्होंने बुरी आदते छोड़ी बल्कि अच्छी आदते अपना कर आज एक बेहतर  ज़िंदगी जी रहे है.

तो अभी बहुत देर नहीं हुई है, आप भी अपनी बुरी आदतों से छुटकारा पा सकते है. It
तो आइये शुरुवात करते है एक नई जर्नी की जहाँ आप अपने ही नए अवतार से मिलेंगे.

The Habit Cure

लिसा एलन 34 साल की है. उसे 16 साल की उम्र से ही शराब और सिगरेट की लत लग गई थी. इसके साथ ही लिसा को एक और प्रोब्लम भी थी, वो  ज़िंदगी भर अपने मोटापे से परेशान रही. ऊपर से उस के सिर पर $10000 से भी ज्यादा का उधार था जो उसे चुकाना था. और मुसीबत ये है कि उसकी कोई नौकरी साल भर से ज्यादा  नहीं  टिकती थी.

लेकिन आज जो औरत  researchers  के सामने बैठी है, एकदम अलग है. ये लिसा एकदम स्लिम-फिट और ख़ुशी से चहकती नजर आ रही है. उसकी टाँगे किसी रनर की तरह एकदम टोंड है. अगर उसकी पुरानी फोटो से तुलना करे तो वो अपनी उम्र से दस साल छोटी लगती है. आज लिसा के सिर पर कोई उधारी  नहीं  है, उसने शराब और सिगरेट पीना छोड़ दिया है और वो तीन सालो से एक ग्राफिक डिजाईन फ़र्म में जॉब कर रही है.

“आखिरी बार तुमने कब सिगरेट पी थी?’ एक  researcher  ने लिसा से पूछा तो उसने जवाब दिया” कोई चार साल हो गए होंगे, मैंने 60 पाउंड वेट लूज़ किया है और उसके बाद एक मैराथन भी पूरी की है. इतना ही नहीं वो मास्टर की डिग्री के लिए पढाई भी कर रही है और उसने खुद का एक घर भी खरीदा है. कुल मिलाकर लिसा की  ज़िंदगी में बहुत सारी  पॉजिटिव  चीज़े हुई है और हो रही है.

पिछले तीन सालो से साईकोलोजिस्ट, न्यूरोलोजिस्ट और बाकि एक्सपर्ट्स ने लिसा के साथ 23 और  लोगों  को भी स्टडी किया. इन  लोगों  में कोई शराबी था तो कोई चेन स्मोकर तो कोई अपने मोटापे से परेशान था और किसी को  शॉपिंग  की लत लगी हुई थी. नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ़ हेल्थ ने इस  रिसर्च को फंड किया था.

लिसा और बाकि  लोगों  में एक चीज़ कॉमन थी, वो ये कि उन सबने बहुत कम वक्त में अपनी बुरी आदत से छुटकारा पाया था और एक्सपर्ट्स यही जानना चाहते थे कि आखिर इसके पीछे राज क्या है.

researchers ने उन सबके डेली रूटीन को मोनिटर करने के लिए सबके घर में कैमरे लगवा दिए. सबको एमआरआई ब्रेन स्कैन से भी गुजरना पड़ा क्योंकि सबको सिगरेट,शराब और खाने की लत लगी थी.

“मुझे पता है, तुम ये कहानी कई बार पहले भी सुना चुके हो पर प्लीज़ क्या फिर से बताओगे कि तुमने सिगरेट की लत कैसे छोड़ी?  researcher  ने पूछा ओर लिसा फिर से एक बार अपनी कहानी सुनाने लगी.

लिसा छुट्टियों में घूमने कायरो, ईजिप्ट गई हुई थी. इसके कुछ महीने पहले की बात है, लिसा का हजबैंड एक दिन काम से घर लौटा और आते ही लिसा से बोला कि उसे डिवोर्स चाहिए. क्योंकि उसे किसी और लडकी से प्यार हो गया था. सुनकर लिसा के पैरो तले जमीन खिसक गई. उसे यकीन नहीं हुआ पर सच्चाई उसके सामने थी, उसका पति जो किसी दूसरी औरत को चाहता था अब लिसा के साथ एक पल भी नहीं रहना चाहता था. लिसा बुरी तरह से टूट गई, अपने गम को भुलाने के लिए उसने शराब और सिगरेट का सहारा लिया पर फिर भी उसके दिल को चैन  नहीं  पड़ा.

लिसा ने अपने पति और उसकी गर्लफ्रेंड का पीछा  नहीं  छोड़ा, वो जहाँ-जहाँ जाते लिसा उन्हें फोलो करती. वो अपने पति की गर्लफ़ंड को आधी रात को फोन करती और फोन रख देती. फिर एक रात लिसा नशे की हालत अपने पति की गर्लफ्रेंड के घर पहुँच गई, उसने वहां खूब तमाशा किया. वो उस लडकी को उल्टा-सीधा बोल रही थी और जोर-जोर से दरवाजा पीट रही थी, लिसा ने गुस्से में उसका घर तक जलाने की धमकी दे डाली थी.

ये उसकी  ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन था. उसने खुद को पहले कभी इतना मायूस और अकेला महसूस  नहीं  किया था. फिर अचानक उसे याद आया कि वो हमेशा से ही पिरामिड्स देखने ईजिप्ट जाना चाहती थी. अभी उसके क्रेडिट कार्ड की लिमिट बची थी तो लिसा ने ट्रिप पर जाने का फैसला कर लिया.

कैरो पहुँचने के बाद पहली सुबह की बात है, पास ही में एक मस्जिद से आती अज़ान की आवाज़ से लिसा की नींद टूट गई थी. उसके होटल का कमरा अँधेरे में डूबा था. जेट लेग की वजह से उसका सिर दुःख रहा था. लिसा को सिगरेट की तलब महूसस हुई, उसने अँधेरे में लेटे-लेटे ही एक सिगरेट जलाई पर ये क्या? उसे प्लास्टिक के जलने की बदबू आ रही थी.

असल में जिसे वो मार्लबरो का सिगरेट समझ कर जला रही थी वो एक पेन था. वो बुरी तरह चिढ गई थी. पिछले कुछ महीनों से वो बेहद परेशान, नाराज़ और गुस्से में थी. उसे कभी खुद पर शर्म आती तो कभी नाउम्मीदगी की फीलिंग होती. वो रातो को उठकर घंटो रोती और बेहिसाब उल्टा-सीधा खाती थी.

एक तो उसके पास कोई नौकरी  नहीं  थी ऊपर से दिन ब दिन उसका वजन बढ़ रहा था. एक तरह से उसकी  ज़िंदगी बर्बादी के कगार पर खड़ी थी. यहाँ तक कि उससे एक सिगरेट तक  नहीं  जल पाती थी.

कुछ महीने यूं ही गुजर गये फिर एक दिन लिसा ने एक फैसला किया. वो बिस्तर से उठी, शावर लिया और होटल से बाहर निकली. उसने स्फिंक्स जाने के लिए एक टैक्सी ली जहाँ गिज़ा का पिरामिड है और दूर-दूर तक रेगिस्तान फैला हुआ है.

लिसा ने सोच लिया था कि वो अपनी  ज़िंदगी इस तरह बर्बाद  नहीं  होंगे देगी, उसे जीने का कोई मकसद ढूंढना ही होगा. कोई ऐसा मकसद जो उसकी लाइफ को डायरेक्शन दे. उसने खुद से वादा किया कि अगले साल वो फिर ईजिप्ट आएगी और डेजर्ट में ट्रेकिंग पर जायेगी. चाहे कुछ भी हो जाए, वो अपना गोल पूरा करके रहेगी.

उसे अपना ये आईडिया काफी क्रेज़ी लगा, एक तो वो ओवरवेट थी और ऊपर से उसके पास पैसे नहीं थे. पर उसने खुद को  चैलेंज  कर लिया था और अब वो इस  चैलेंज  को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकती थी, लिसा ने सोचा सबसे पहले तो उसे सिगरेट छोडनी होगी.

ठीक इसके एक साल बाद ही, लिसा और छेह  लोगों  का एक कारवां ईजिप्ट के डेजर्ट में ट्रेकिंग पर रवाना था. लिसा ने जो वादा खुद से किया था, उसे पूरा कर दिखाया.

जिस पल लिसा ने स्मोकिंग छोड़ने का फैसला किया था, उसी पल से उसकी  ज़िंदगी बदल गई. फिर अगले छह महीनों में लिसा ने सिगरेट की लत छोड़ने के लिए जॉगिंग करनी शुरू की. उसने अपनी बिंज ईटिंग पर काबू पाने के लिए हेल्दी डाईट का सहारा लिया. वो टाइम से सोती और टाइम से उठती थी. नींद पूरी होने की वजह से उसकी प्रोडक्टीविटी में भी ईज़ाफा हुआ. वो एक भी पैसा फालतू खर्च करने के बजाए फ्यूचर के लिए सेविंग कर रही थी. लिसा ने मैराथन ज्वाइन किया, वापस स्कूल गई और एक नया घर भी खरीदा.

Researchers  ने लिसा के ब्रेन में ओल्ड पैटर्न्स देखे. ओल्ड हैबिट अभी तक थी पर पहले से कमजोर थी. उसके ब्रेन में न्यू न्यूरल पैटर्न्स बन गए थे जो काफी स्ट्रोंग थे और उसकी नई अच्छी आदतों से उसे कनेक्ट करते थे. लिसा रिसर्च एक्सपर्ट्स की फेवरेट सब्जेक्ट थी क्योंकि उसके ब्रेन स्कैन्स बड़े क्लियर थे यानी एक तरह से लिसा ने अपने ब्रेन को रीवायर ही कर लिया था.

How Habits Work

1933 में यूजीन पौली नाम का एक आदमी सैन डिएगो की एक लेबोरेट्री में आया. वो छेह फुट से भी लंबा और उम्रदराज़ आदमी था और एक ब्ल्यू बटन डाउन शर्ट पहने हुए था. उसके बाल रुई जैसे सफेद थे और शायद  आर्थराईटिस  की वजह से धीरे-धीरे चल रहा था. मेडिकल लिटरेचर में ऐसे लोगों  को ई. पी. बोला जाता है.

एक साल पहले की बात है, एक दिन यूजीन की तबियत अचानक खराब हो गई. उसे उल्टीयाँ आ रही थी और पेट में भयंकर दर्द महूसस हो रहा था. बार-बार उल्टीयाँ करने से उसे डीहाईड्रेशन हो गया था. उसकी वाइफ उसे  हॉस्पिटल  लेकर आई. उस वक्त यूजीन को तेज़ बुखार था. तेज़ बुखार की वजह से उसकी दिमागी हालत भी ठीक  नहीं  थी. नर्स ने जब उसकी बाजू में आईवी लगाने की कोशिश की तो वो एकदम एग्रेसिव होकर लाते मारने लगा.

उसकी हालत देखते हुए डॉक्टर ने उसे बेहोश कर दिया था. बेहोशी की हालत में डॉक्टर ने उसकी पीठ पर दो vertebrae (रीढ़ का जोड़) के बीच में सूईं चुभो कर कुछ फ्लूइड जैसा निकाला और देखते ही समझ गया कि यूजीन को क्या प्रोब्लम है. आमतौर पर इंसान के ब्रेन और स्पाइनल के बीच पाया जाने वाला फ्लूइड एकदम क्लियर होता है और तेज़ी से फ्लो करता है जैसे कोई सिल्क का धागा सुई से निकलता है पर यूजीन की बॉडी से जो फ्लूइड निकला था एकदम अलग था, जो देखने में गंदा और चिपचिपा सा था.

जांच करने पर पाया गया कि यूजीन को viral encephalitis  हुआ है. ये एक तरह का वायरस होता है जिससे बॉडी में कोल्ड सोर्स, माइल्ड इन्फेक्शन, फीवर और ब्लिस्टर्स हो जाते है. वैसे तो ये हार्मलेस माना जाता है पर अगर ब्रेन तक पहुँच जाए तो वायरस जानलेवा साबित होता है.

वायरल एन्केफ्लाइटस ब्रेन में जाने के बाद ब्रेन के डेलिकेट टिश्यू को खाने लगता है, एक तरह से बोले तो ये हमारे विचार और सपनों को खाने लगता है.

अब क्यूंकि यूजीन के ब्रेन का कुछ हिस्सा वायरस पहले से खा  चुका था जिसे डॉक्टर्स  दोबारा रीपेयर  नहीं  कर सकते थे पर उन्होंने वायरस को पूरे ब्रेन में फैलने से रोकने के लिए यूजीन को काफी बड़ी मात्रा में एंटीवायरल ड्रग दे दी थी.

यूजीन दस दिनों तक कोमा में  ज़िंदगी और मौत के बीच झूलता रहा, फिर धीरे-धीरे दवाईयों ने असर दिखाया और उसका फीवर उतर गया. वायरस भी बॉडी में जैसे गायब हो गया था. यूजीन जब कोमा से निकला तो उसकी दिमागी हालत काफी कमजोर लग रही थी पर वो जिंदा और सही-सलामत था यही सबसे बड़ी हैरानी की बात थी.

डॉक्टर्स ने उस पर कुछ और टेस्ट भी किये, वैसे फिजिकल यूजीन एकदम फिट था, अपने हाथ-पैर हिला सकता था, लाईट और साउंड पर रीस्पोंड भी कर रहा था. पर उसके ब्रेन स्कैन से पता चला कि वायरस  उसके ब्रेन सेंटर का एक ओवल टिश्यू खा  चुका है और जहाँ पहले क्रेनियम और स्पाइनल कॉलम मिलते थे, अब वहां सिर्फ एक खाली जगह नज़र आ रही थी.

डॉक्टर ने यूजीन को वाइफ को बोला कि उन्हें इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि यूजीन अब पहले वाला इन्सान  नहीं  रहा.
डॉक्टर ने यूजीन की वाइफ को बोला “मुझे  नहीं  लगता, मैंने किसी को भी इस तरह मौत के मुंह से वापस आते देखा हो. मै आपको झूठी उम्मीद  नहीं  देना चाहता, पर ये केस हमारे लिए भी एकदम अनोखा है”

फिर कुछ हफ्तों बाद ही यूजीन को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई और उसे रीहेबीलेशन ट्रीटमेंट दी जाने लगी. उसे हफ्ता, दिन, महीना कुछ भी याद  नहीं  रहता था. डॉक्टर्स चाहे जितनी बार उसे अपना परिचय दे दे, यूजीन को उनके नाम याद  नहीं  रहते थे.

घर वापस आकर यूजीन अपने ही दोस्तों को नहीं पहचान पाया. कई बार तो वो सुबह उठता, किचन में जाता और बेकन और अंडे पकाने लगता और फिर बेडरूम में आकर रेडियो चला देता. फिर चालीस मिनट बाद वो फिर से सेम रुटीन  रिपीट  करने लगता. उठता, बेकन पकाता, वापस कमरे में आकर रेडियो चला देता.

यूजीन मेमोरी loss स्पेशलिस्ट का फेवरेट सब्जेक्ट बन गया था. इन एक्सपर्ट्स में से एक थे यूनीवरसिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया, सैन डिएगो के लैरी स्कवायर.  स्क्वॉयर 30 सालों से न्यूरो ऐनाटॉमी ऑफ़ मेमोरी की स्टडी कर रहे थे.  स्क्वॉयर ने observe किया कि यूजीन को नई बाते याद  नहीं  रहती है. जब उसे उसके ग्रैंडचिल्ड्रन की फ़ोटोज़ दिखाई गई तो वो उन्हें पहचान  नहीं  पाया. यहाँ तक कि उसे ये भी याद  नहीं  था कि उसे कोई बिमारी हुई है जिसके चलते वो  हॉस्पिटल  में रहा था.

स्क्वॉयर ने ये भी गौर किया कि यूजीन अपने घर में एक कमरे से दुसरे में आसानी से आ-जा रहा था पर जब उससे पुछा गया कि उसे घर की जानकारी कैसे याद रही तो वो कुछ भी जवाब  नहीं  दे पाया. जैसे कि उसे याद था कि किचेन कहाँ और और बाथरूम कहाँ पर पर लेकिन उसे याद कैसे रहा, ये एक पहेली थी. पर  स्क्वॉयर ने यूजीन से जब अपने घर का नक्शा बनाने को बोला तो वो बना  नहीं  पाया.

यूजीन अपनी याददाश्त भूल  चुका था पर उसकी हैबिट्स  नहीं  भूली थी, वो अपनी आदतों की वजह से ही किचेन और बाथरूम तक चला जाता था. उसे ये भी पता था कि पड़ोस में कहाँ घूमना है और जब वो बाहर घूमने जाता तो वापस भी खुद आ जाता था. उससे जब पुछा गया कि उसे ये कैसे किया तो यूजीन एक्सप्लेन  नहीं  कर पाया कि वो ये कैसे कर लेता है.

यूजीन का डेली रूटीन कुछ इस तरह था: वो सुबह उठता, फ्रंट गेट से बाहर जाता, पास-पड़ोस में घूमने जाता और घर लौटते हुए रास्ते से कोई पत्थर का टुकड़ा लेकर आता. घर आकर वो टीवी के सामने सोफे पर बैठ जाता और हिस्ट्री चैनल देखता. ये यूज़ीन की डेली रुटीन लाइफ थी.

उसकी याददाश्त चली गई पर उसकी आदते  नहीं  गई थी. अपनी इसी आदत के चलते यूजीन पास-पडोस में घूम-घामकर बड़े आराम से घर लौट आता था.

ह्यूमन ब्रेन किसी प्याज़ की तरह है, कई परतों से बना हुआ. इसकी आउटसाइड लेयर में कॉम्प्लेक्स थिंकिंग प्रोसेस होता है. लेकिन ब्रेन के अंदर गहराई में ब्रेन स्टेम के पास जो जगह होती है, वहां हमारे प्रिमिटिव स्ट्रक्चर स्टोर होते है जो हमारे ऑटोमेटिक बिहेवियर जैसे सांस लेना या भोजन निगलना जैसे एक्शन को कण्ट्रोल करते है. हम चाहे याद रखे ना रखे पर ये हैबिट्स कभी नहीं छूटती चाहे हमारी याददाश्त क्यों ना चली जाये.

ह्यूमन स्कल यानी खोपड़ी के बीचो-बीच करीब गोल्फ बाल के साइज का एक टिश्यू होता है जो मैमल्स, फिश या रेपटाइल के दिमाग में भी पाया जाता है, इसे  basal ganglia बोलते है, यही वो जगह है जहाँ हमारी हैबिट स्टोर होती है.

साइंटिस्ट्स ने ये पाया कि हमारे अंदर हैबिट इसलिए डेवलप होती है क्योंकि ब्रेन हमेशा एनर्जी बचाने के तरीके ढूंढता है. ये किसी भी रूटीन को हैबिट में बदल देता है ताकि हमारा ब्रेन बाकि कॉम्प्लेक्स टास्क पर फोकस कर सके.

अब जैसे एक्जाम्पल के लिए चलना, जूतों के फीते बाँधना, कपड़े पहनना या दांत ब्रश करना जैसे कामो में हमे ज्यादा सोचना  नहीं  पड़ता. ऐसे कामो को करते वक्त हमारे हाथ-पैर ऑटोमेटिकली काम करते है. क्योंकि ये काम हमारी हैबिट में शामिल है. हम इन्हें ऑटो पायलट मोड में करते है, एक तरह से कहे तो हमारा ब्रेन सारी हैबिट्स की chunking करता है यानी उसे जरूरी और गैर जरूरी कामो में बाँट लेता है, ताकि जो काम हमारी हैबिट में शामिल है, उसमे ब्रेन को ज्यादा मेहनत करने की जरूरत ना पड़े और ब्रेन अपनी एनर्जी मुश्किल काम जैसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग या मैथ प्रोब्लम्स सोल्व करने के लिए बचा कर रखता है.

हमारा बेसल गैन्ग्लिया (basal ganglia) तब फुल एक्टिव होता है जब हम अपने दांत ब्रश कर रहे होते है या शू लेस बाँध रहे होते है. अपनी इन ऑटोमेटिक हैबिट्स की वजह से ही हम डिसीजन मेकिंग या हायर लेवल थिंकिंग कर पाते है.

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