(Hindi) Feeling Good : The New Mood Therapy

(Hindi) Feeling Good : The New Mood Therapy

इंट्रोडक्शन(Introduction)


क्या आपको कभी ऐसा लगता है कि मैं काफ़ी नहीं हूँ, that आई एम नोट गुड एनफ ? क्या आपको ऐसा लगता है कि लाइफ में आगे बढ़ने के लिए आप में कोई इच्छा, कोई चाहत ही नहीं बची? क्या आपके मन में भी ऐसे थॉट्स का सिलसिला लगा रहता है जो मन को निराशा से भर देते हैं?

जब ये नेगेटिव थॉट्स लंबे समय तक हमारे मन में चलते रहते हैं तो हमारे मेंटल स्टेट और मन की शांति को डिस्टर्ब कर देते हैं. आपको लगता होगा कि काम को कल पर टालने की आदत तो आम बात है जो हर इंसान कभी ना कभी करता ही है. लेकिन जब आप गौर करेंगे तब आपको एहसास होगा कि असल में आप डिप्रेस्ड हैं.

इस बुक के माध्यम से आप खुद को बेहतर तरीके से समझना सीखेंगे. आप ये समझना सीख जाएँगे कि क्या आप डिप्रेशन से घिरे हैं या नहीं ? अगर हाँ, तो वो डिप्रेशन किस हद तक आगे बढ़ चुका है.

आप डिप्रेशन को ठीक करने के एक नए मेथड Cognitive Therapy के बारे में जानेंगे. इस थेरपी के ज़रिए आप ख़ुद को अच्छा महसूस करवाने की शुरुआत कर सकते हैं.

घबराइए मत, डिप्रेशन को ठीक करने के लिए आपको घंटों किसी थेरपी सेशन या कड़वी दवाइयों या किसी और चीज़ की ज़रुरत नहीं है. ये थेरपी अपने ही विचारों यानी कि थॉट्स को बदलने के बारे में है. जब आप पॉजिटिव थॉट्स से अपने मन को भरने लगेंगे तो धीरे धीरे  आपकी मेंटल हेल्थ अच्छी होती चली जाएगी.

अगर आप डिप्रेशन को गहराई से समझना चाहते हैं, अगर आप ख़ुद को ठीक करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेना चाहते हैं तो ये बुक आपके लिए बिलकुल परफेक्ट है. ये ऐसे नॉलेज और टेक्निक्स से भरी हुई है जिसकी आपको तलाश है. यहाँ तक कि इसमें कुछ ऐसे टेस्ट भी दिए गए हैं जिनकी मदद से आप अपनी इम्प्रूवमेंट ख़ुद मॉनिटर कर सकते हैं.

तो समय आ गया है जब आप ख़ुद अपना ध्यान रखना शुरू करें और वो भी सिर्फ़ अपने नज़रिए और सोच को बदल कर.

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अ ब्रेकथ्रू इन द ट्रीटमेंट ऑफ़ मूड डिसऑर्डर्स(A Breakthrough in the Treatment of Mood Disorders)

डिप्रेशन एक ऐसा शब्द है जो आजकल अक्सर हमें सुनने मिल जाता है. ये एक मेंटल कंडीशन है जिसकी चपेट में कई लोग आ चुके हैं. एक बात जिस पर हम ध्यान नहीं देते वो ये है कि हम अक्सर इसे अनदेखा कर देते हैं जो आगे चल कर बहुत ख़तरनाक रूप ले सकता है क्योंकि डिप्रेशन अगर वक़्त पर संभाला ना जाए तो इंसान को आत्महत्या के दरवाज़े तक ले जाता है. इसे भूल कर भी नज़रंदाज़ ना करें.

लंबे समय से इसे ट्रीट करने के लिए साइकोथेरेपी और दवाइयों का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन हाल ही में साइकोलोजिस्टस ने इससे भी ज़्यादा असरदार तरीके के बारे में पता  लगाया है जिसे “Cognitive Therapy” कहते हैं.

इसकी शुरुआत 1950 में हुई थी. इसरेवोल्यूशन के पीछे डॉ. एल्बर्टएलिस और डॉ. आरोनटी. बेक हैं. उसके बाद कई सालों तक इस थेरेपी पर और रिसर्च की गई और इसे ज़ोरों शोरों से पेशेंट्स के इलाज़ के लिए अपनाया जाने लगा.

ये थेरपी बड़ी जल्दी आपका मूड बदलने में मदद करती है. ये एक ज़बरदस्त थेरपी है जो आपको ख़ुद को और अपने मूड को अच्छे से समझने में और उसे कंट्रोल करने में मदद करती है.

इस थेरपी के असर को स्टडी करने के लिए पेनसिलवेनिया में साइकोलोजिस्ट के एक ग्रुप ने एक एक्सपेरिमेंट किया. उन्होंने Cognitive Therapy और Drug Therapy के रिजल्ट को compare करने का फ़ैसला किया.

इसके लिए उन्होंने 40 से ज़्यादा पेशेंट्स को चुना. ये पेशेंट्स सीवियर डिप्रेशन से जूझ रहे थे. वो इतने निराश और उदास थे कि उन्हें लगता था जैसे उनकी जिंदगी ख़त्म हो चुकी है और उनके लिए अब कुछ नहीं बचा. उनमें से कुछ ने तो कई बार आत्महत्या करने के बारे में भी सोचा था. इन सबको दो ग्रुप में डिवाइड किया गया. पहले ग्रुप को Cognitive Therapy दी गई और दूसरे को Drug Therapy.

12 हफ़्तों तक उन्हें observe किया गया. उन्हें कई अलग अलग डॉक्टर्स ने चेक किया ताकि वो सही नतीजे पर पहुँच सकें.

इस एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट ने सबको हैरान और चकित कर दिया. इसने साबित कर दिया कि Cognitive Therapy उतना ही असरदार था जितना कि एंटी depressant दवाइयां और कई केस में तो ये दवाइयों से कई गुना ज़्यादा असरदार साबित हुआ. इतना ही नहीं, इसका असर बड़ी तेज़ी और जल्दी से सामने आया जो कि दवाइयों के माध्यम से नहीं आ पाया था.

लंबे समय से डिप्रेशन का कोई मरीज़ अगर Drug Therapy ट्राय करता है तो उसे कई दूसरे साइड इफेक्ट्स का सामना भी करना पड़ता है. लेकिन Cognitive Therapy से आप इम्प्रूवमेंट बिलकुल सामने देख सकते हैं क्योंकि ये सिर्फ़ पेशेंट के माइंड पर फोकस करता है और तो और इसका कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है. ये आपके बॉडी का नहीं बल्कि आपके थॉट्स का इलाज करता है इसलिए ये इतना इफेक्टिव है कि मन के साथ-साथ इसका बॉडी पर भी असर होता है.

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हाउ टू डायग्नोज़ योर मूड्स : द फर्स्ट स्टेप इन द क्योर (How to Diagnose your Moods: the First Step in the Cure)

अगर आप इस सोच में डूबे हैं कि आप डिप्रेशन का शिकार हैं या नहीं तो इसके लिए एक सिंपल टेस्ट है जिसे आप ख़ुद कर सकते हैं. इस टेस्ट का नाम है BDC.

इसे Burns Depression Checklist कहा जाता है. एक पेपर पर कुछ सवाल पूछे जाते हैं और जवाब चुनने के लिए मल्टीप्ल चॉइस आंसर दिए जाते हैं. ये सवाल बड़े आसान होते हैं लेकिन सटीक तरीके से आपकी प्रॉब्लम को पकड़ सकते हैं.

इसके स्कोर के हिसाब से आप जान सकते हैं कि आप ख़ुश हैं, नार्मल हैं या फ़िर डिप्रेस्ड हैं. ये आपको ये भी बताती है कि आप डिप्रेशन के किस स्टेज पर हैं यानी माइल्ड(हल्का फुल्का) डिप्रेशन, मॉडरेटडिप्रेशन यानि ना ज़्यादा ना कम या फ़िर एक्सट्रीम डिप्रेशन.

ये टेस्ट आपकी इम्प्रूवमेंट को भी मॉनिटर करने में मदद करता है. आप सोच रहे होंगे कि ख़ुद एक इंसान का अपना डिप्रेशन ठीक करने की कोशिश करना खतरनाक और जानलेवा हो सकता है, है ना? लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है क्योंकि किसी भी मेंटल कंडीशन में इस बात को स्वीकार करना कि आपको मदद की ज़रुरत है और आप इस बीमारी को ठीक करना चाहते हैं, ट्रीटमेंट की ओर पहला कदम उठाना होता है.

आइए अब इसके स्कोर को समझते हैं. अगर BDC में आपका स्कोर 0 से 5 के बीच आता है तो इसका मतलब है कि आप एक ख़ुशहाल इंसान हैं और आपको किसी ट्रीटमेंट की ज़रुरत नहीं है. 6 से 10 का स्कोर भी नार्मल मेंटल स्टेट दिखाता है जिसका मतलब है कि हो सकता है कि आप थोड़ा उदास हैं या लो फील करते हैं लेकिन डिप्रेस्ड नहीं हैं.

11 से 25 के बीच का स्कोर मतलब डिप्रेशन की शुरुआत हो चुकी है. इस स्टेज पर ये बहुत माइल्ड होता है लेकिन अगर ये लंबे समय तक बना रहा तो खतरनाक रूप ले सकता है. पहले पहले आप सेल्फ-हेल्प बुक्स की मदद से ख़ुद को ठीक करने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन अगर आपको कोई प्रोग्रेस ना दिखे तब आपको डॉक्टर की मदद ज़रूर लेनी चाहिए.

अगर आपका स्कोर 25 से 50 तक है तो आपका डिप्रेशन मॉडरेट है. लेकिन यहाँ मामला थोडा सीरियस हो जाता है इसलिए इसे हलके में ना लें. इस स्टेज के डिप्रेशन में कई बार हिंसात्मक वयवहार सामने आया है जैसे ख़ुद को या दूसरों को चोट पहुंचाना, हद से ज़्यादा गुस्सा करना, चीज़ें तोड़ फोड़ करना. अगर आपकी माइल्ड डिप्रेशन दो हफ़्तों से ज़्यादा बनी रहे तो आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

जब ये स्कोर 50 से ज़्यादा हो तो आप ख़तरे में हैं. इसका मतलब है कि आप बहुत ज़्यादा डिप्रेस्ड हैं या यूं कह सकते हैं कि डिप्रेशन की लास्ट स्टेज पर हैं और आपको डॉक्टर्स के मदद की सख्त ज़रुरत है. लेकिन घबराइए मत. अक्सर देखा गया है कि ऐसे केसेस में डिप्रेशन बड़ी जल्दी और आसानी से ठीक हो जाता है बशर्ते आपको सही इलाज मिले.

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अंडरस्टैंडिंग योर मूड्स : यू फीलद वे यू थिंक (Understanding your Moods: You Feel the Way You Think)

कई लोगों का मानना है कि डिप्रेशन का सीधा संबंध इस बात से है कि हम कैसा फील कर रहे हैं लेकिन ये कंडीशन इससे कुछ अलग ही है. आपका ब्रेन इस डिप्रेशन की जड़ है. आप जैसा सोचते हैं उसका सीधा असर पड़ता है कि आप कैसा महसूस करते हैं.

जब आप लगातार नेगेटिव बातें सोचते रहते हैं तो अचानक डिप्रेशन के अटैक आने लगते हैं. आपको ऐसा लगता होगा कि ये सब तो लाइफ का एक हिस्सा है या आज मेरा मूड ही ख़राब है. लेकिन जब आप थोड़ा रुक कर ख़ुद को समझने की कोशिश करेंगे तब आपको पता चलेगा  कि हर फ़साद की जड़ हमारे थॉट्स ही होते हैं.

तो अब हम जान गए हैं कि डिप्रेशन का कारण नेगेटिव थिंकिंग है. इस बुक में दस cognitive डिसऑर्डर या थिंकिंग डिसऑर्डर बताए गए हैं. आपको ध्यान से समझना है कि इनमें से कौन सा आपकी डिप्रेशन का कारण है क्योंकि जब हम प्रॉब्लम का कारण जान जाते हैं तो उसका निवारण भी आसानी से मिल जाता है.

पहला है, बहुत ज़्यादा या बिलकुल नहीं सोचना. ये तब होता है जब कोई अपनी पर्सनालिटी या अचीवमेंट को एक्सट्रीम तरीकों से जज करने लगता है जैसे,जो लोग परफेक्शनिस्ट होते हैं , अगर उन्हें किसी टेस्ट में A की जगह B स्कोर मिल जाए तो वो मान लेते हैं कि वो फ़ेल हो गए हैं.

दूसरा है, मेंटल फ़िल्टर. कभी कभी जब एक इंसान डिप्रेस होता है तो वो किसी एक नेगेटिव चीज़ को पकड़ कर बैठ जाता है. वो बाकि के पॉजिटिव चीज़ों को नहीं देखता. ये तो बिलकुल वैसा हुआ जैसे आपने एक ऐसा यूनिक चश्मा पहन रखा हो जो आपको जिंदगी के हर पहलू का सिर्फ़ नेगेटिव हिस्सा ही दिखाता है.

कुछ लोग तो हद ही कर देते हैं. वो एक पॉजिटिव थॉट को भी नेगेटिव बना देते हैं. तो ये है तीसरा डिसऑर्डर, disqualifying द पॉजिटिव. आइए इसे एक एक्जाम्पलसे समझते हैं. इसबुक के ऑथर डॉ. डेविड की एक पेशेंट थी जो काफ़ी डिप्रेस्ड थी. उसकी हालतइतनी बिगड़ चुकी थी कि उसे हॉस्पिटल में एडमिट करना पडा.

ऐना(Anna) को लगने लगा था कि वो दुनिया की सबसे बुरी इंसान थी. उसे लगता था कि सब उससे नफ़रत करते थे और वो जिंदगी में हमेशा के लिए अकेली रह जाएगी.उसे विश्वास हो गया था कि कोई उसकी परवाह नहीं करता और किसी को उससे प्यार नहीं है.

डॉ. डेविड ने उसे समझाने की कोशिश की कि हॉस्पिटल के दूसरे पेशेंट्स और स्टाफ उसे बहुत पसंद करते थे.लेकिन ऐना ने उनकी एक नहीं सुनी. वो कहती कि वो सब उसे इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वो नहीं जानते कि बाहर की असली दुनिया में वो कैसी है. बाहर की दुनिया में वो एक बहुत बुरी इंसान है और अगर वो इस बारे में जान गए तो वो भी उससे नफ़रत करने लगेंगे.

डॉ. डेविड ने उसेबार बार समझाया कि हॉस्पिटल के बाहर भी ऐसे कई लोग हैं जो उसे पसंद करते हैं. उसका परिवार है, दोस्त हैं जो उसकी बहुत परवाह करते हैं और वो सब उसके घर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं. लेकिन ऐना थी की सुनने को तैयार ही नहीं थी. उसके मन में ये बात बैठ गई थी कि वो किसी काम की नहीं है और किसी को उसकी ज़रुरत नहीं है.

उसके डिप्रेशन ने उसकी आँखों पर पर्दा डाल दिया था जिसके कारण वो सच को देखना ही नहीं चाहती थी.

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