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The Go-Giver (Marathi)

The Go-Giver (Marathi)

“आपण ही समरी का वाचली पाहिजे?

खुप कष्ट करूनही तुम्हाला हवे तसे यश मिळत नाही आहे का? तुम्हाला असाधारण (एक्स्ट्राऑर्डिनरी) यश मिळवायचे आहे का?  जर तुमचे उत्तर होय असेल, तर हे पुस्तक तुमच्यासाठी आहे. गो-गिव्हर मध्ये खुप छान कथा आहेत, ज्यामधून तुम्ही बरेच धडे शिकू शकता. तुम्ही शिकाल की, जेव्हा तुम्ही एखाद्याला  मन भरुन काहितरी देता, तेव्हा तुम्हाला यश देखील अगदी घवघवीत मिळते. म्हणून गो-गेटर बनु नका. गो-गिवर व्हा आणि तुमचे आयुष्य कसे बदलून जाईल तुम्हाला कळणार पण नाही.

 

हे पुस्तक कोणी वाचावे?

सेल्स, इंश्योरेन्स किंवा रिअल इस्टेट एजंट्स, नियमित कर्मचारी, मैनेजर्स, बिज़नेस ओनर्स, अशा सर्व प्रोफेशनच्या लोकांनी हे पुस्तक वाचायलाच हवे.

 

लेखका बद्दल माहिती:

बॉब बर्ग एक बेस्ट सेल्लिंग पुस्तकाचे लेखक आणि लोकप्रिय कीनोट स्पीकर आहेत. 30 वर्षांहून अधिक काळ ते कंपनींना आणि सेल्स लीडर्सना घेण्यापेक्षा कसे जास्त द्यायचे आणि बदल्यात जास्त पैसे कसे कमवायचे हे शिकवतात. अजुन पण, बॉब आपल्या वर्कशॉप, पॉडकास्ट्स, ब्लॉग्स आणि स्पीकिंग इवेंट्सद्वारे अनेक लोकांच्या आयुष्यांना स्पर्श करुन, त्यांना प्रभावित करुन त्यांचे आयुष्य बदलत आहेत. जॉन डेव्हिड मॅन एक थॉट लीडर आणि लेखक आहेत. त्यांच्या पुस्तकांसाठी त्यांना अनेक पुरस्कार मिळाले आहेत. जगभरात त्यांच्या पुस्तकांच्या 3 मिलियनहून अधिक प्रती विकल्या गेल्या आहेत आणि त्या पुस्तकांचे सुमारे 35 भाषांमध्ये अनुवाद केले आहेत.

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(Hindi) THE DREAM OF SWARAJYA PART 2

(Hindi) THE DREAM OF SWARAJYA PART 2

“पिछले पार्ट में आपने सुना की शिवाजी ने इन किलों पर कब्ज़ा कर लिया, आदिल शाह के सबसे जाँबाज़ सेनापति अफज़ल शाह को अपनी दूरदर्शिता से मार गिराया और अब आगे….

स्वराज पाने का निश्चय तो हो चुका  था पर अभी करने को बहुत काम बाकि था.  शिवाजी महाराज अपने वफादार सरदारों के साथ मिलकर अपने सपने को सच का जामा पहनाने में जुट गये. पर सबसे पहले उन्हें जाकर माता जीजाबाई का आशीर्वाद लेना था. इससे पहले कि वो लोग किसी से अपने ईरादे ज़ाहिर करते, उन्हें कुछ जरूरी कदम उठाने थे. 

रास्ता एकदम साफ नज़र आ रहा था, सबका एक ही लक्ष्य था, गुलामी की ज़ंजीरो को तोड़ फेंकना. लेकिन उन्हें ये  नहीं  पता था कि उनका पहला कदम क्या होगा. इसलिए सब लोग इसी बात पर विचार-विमर्श करने के लिए रोहिदेश्वर के मन्दिर में जमा हुए थे. 

अब हालात कुछ इस तरह थे कि पुणे की जागीर शिवाजी राजे के नाम थी क्योंकि ये जागीर उनके पिता शाहजी राजे की थी, जो उन्होंने अपने प्यारे पुत्र शिवाजी को विरासत में दी थी. हालाँकि आस-पास के जितने भी किले और गढ़ थे, उन पर आदिलशाह का कब्ज़ा था. इन किलों पर फतह पाने से पहले वहाँ के ईलाको पर अपनी पैठ बनाने की जरूरत थी. शिवाजी और उनके सिपहसालारों इस बात पर सहमत हुए कि अगर उन्हें अपनी स्तिथि मजबूत बनानी है तो सबसे पहले इन सभी किलों को फतह करना होगा.

इसलिए एक चीज़ साफ थी, स्वराज की लड़ाई में पहला कदम था किसी एक किले को आदिलशाह के कब्जे से छुड़ाना, पर सवाल ये था कि सबसे पहले वो किस किले पर कब्जा करे? तो इस समस्या को हल किया शिवाजी के सबसे भरोसेमंद सरदार तानाजी ने. उनके दिमाग में एक शानदार योजना थी. उन्होंने सुझाव दिया कि जिस किले पर वो लोग अभी बैठे है, क्यों ना पहले उसी पर कब्ज़ा किया जाए! रोहिदेश्वर का किला आदिलशाही की हुकूमत के अंदर आता था और उस किले पर ज्यादा पहरेदारी भी  नहीं  थी, इसलिए इस पर हमला करके आसानी से अपने कब्जे में लिया जा सकता था. 

शिवाजी राजे ने किले पर फतह पाने की योजना बनानी शुरू की. किलेदार, जिस पर किले की रखवाली का जिम्मा था, बिल्कुल भी चौकन्ना  नहीं  था. हालांकि इन मज़बूत किलो को जीतना कोई हंसी-खेल भी नहीं था. इसलिए आदिलशाह किसी भी हमले की शंका से पूरी तरह से निश्चिन्त था. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई इन किलों पर हमला भी कर सकता है. रोहिदेश्वर का किला एकदम खंडहर हो चुका था.

इसकी हिफाजत करने वाले सिपाही एकदम ढीले-ढाले थे. वर्षो पुरानी दीवारे जगह-जगह से टूट रही थी. अगर ये किला शिवाजी के कब्जे में आता तो वो इसकी मरम्मत करवाके इसकी हालत सुधारते पर उससे पहले तो इसे जीतना था. 

शिवाजी के पास अभी एक छोटी सी सिपाहियों की टुकड़ी थी. करीब पन्द्रह सौ मावलास उनके साथ थे. और सबसे बड़ी बात, उनके पास पर्याप्त हथियार और गोला-बारूद भी नहीं थे. उन्हें अभी अपनी सेना के लिए तलवार, भाले और ढाल का इंतजाम करना था. इन सब चीजों का इंतजाम करने के साथ-साथ शिवाजी अपने सैनिको के साथ हर रोज़ युद्ध का अभ्यास भी किया करते थे. उन्हें आने वाले युद्धों की तैयारी करनी थी. वो अपने सिपाहियों के साथ जाकर ईलाके के चप्पे-चप्पे की जानकारी लेते. वहां लाल महल में किसी को समझ  नहीं  आ रहा था इन सब तैयारियों के पीछे क्या वजह है. 

हमले की पूरी तैयारी के बाद शिवाजी ने फैसला किया कि वो लोग पौं फटने के साथ ही रोहिदेश्वर के किले की तरफ कूच करेंगे. वो जानते थे कि उस वक्त सिपाही या तो सोये होंगे या हमले के खतरे से बिल्कुल बेखबर होंगे. शिवाजी राजे और उनके सैनिको ने  मिलकर किले के पहरेदारो और किलेदार पर धावा बोल दिया. किलेदार को बंदी बना लिया गया. रोहिदेश्वर का किला अब शिवाजी और उनकी सेना के कब्ज़े में था और ये था स्वराज की दिशा में उठाया गया उनका पहला कदम. 

Puri Kahaani Sune…

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(Hindi) Dhaporsankh

(Hindi) Dhaporsankh

“मुरादाबाद में मेरे एक पुराने दोस्त हैं, जिन्हें दिल में तो मैं एक रत्न समझता हूँ पर पुकारता हूँ  ढपोरशंख और वह बुरा भी नहीं मानते। भगवान ने उन्हें जितना बड़ा दिल दिया है, उसका आधा दिमाग दिया होता, तो आज वह कुछ और होते! उन्हें हमेशा खाली हाथ ही देखा; मगर किसी के सामने कभी हाथ फैलाते नहीं देखा। हम और वह बहुत दिनों तक साथ पढ़े हैं, अच्छा खासा अपनापन है; पर यह जानते हुए भी कि मेरे लिए सौ-पचास रुपये से उनकी मदद करना कोई बड़ी बात नहीं और मैं बड़ी खुशी से करूँगा, कभी मुझसे एक पैसे का उधार नहीं लिया।

अगर प्यार से बच्चों को दो-चार रुपये दे देता हूँ, तो बिदा होते समय उसकी दुगनी रकम के मुरादाबादी बर्तन लादने पड़ते हैं। इसलिए मैंने यह नियम बना लिया कि जब उनके पास जाता हूँ, तो एक-दो दिन में जितनी बड़ी-से-बड़ी चपत दे सकता हूँ, देता हूँ। मौसम में जो महँगी-से-महँगी चीज होती है, वही खाता हूँ और माँग-माँगकर खाता हूँ। मगर दिल के ऐसे बेशर्म हैं, कि अगर एक बार भी उधर से निकल जाऊँ और उससे न मिलूँ तो बुरी तरह डाँट बताते हैं। इधर दो-तीन साल से मुलाकात न हुई थी। जी देखने को चाहता था।

मई में नैनीताल जाते हुए उनसे मिलने के लिए उतर पड़ा। छोटा-सा घर है, छोटा-सा परिवार, छोटा-सा कद। दरवाजे पर आवाज़ दी- “” ढपोरशंख !”” 

तुरन्त बाहर निकल आये और गले से लिपट गये। तांगे पर से मेरे ट्रंक को उतारकर कंधों पर रखा, बिस्तर बगल में दबाया और घर में चले गये। कहता हूँ, बिस्तर मुझे दे दो मगर कौन सुनता है। अंदर कदम रखा तो देवीजी के दर्शन हुए। छोटे बच्चे ने आकर प्रणाम किया। बस यही परिवार है। कमरे में गया तो देखा चिट्ठियों का एक दफ्तर फैला हुआ है। चिट्ठियों को संभाल कर रखने की तो इनकी आदत नहीं? इतने चिट्ठियां किसकी हैं? आश्चर्य से पूछा- “”यह क्या कूड़ा फैला रखा है जी, समेटो।””

देवीजी मुसकराकर बोलीं- “”क़ूड़ा न कहिए, एक-एक चिट्ठी साहित्य का रत्न है। आप तो इधर आये नहीं। इनके एक नये दोस्त पैदा हो गये हैं। यह उन्हीं की चिट्ठियां हैं।””

 ढपोरशंख  ने अपनी छोटी छोटी आँखें सिकोड़कर कहा- “”तुम उसके नाम से क्यों इतना जलती हो, मेरी समझ में नहीं आता? अगर तुम्हारे दो-चार सौ रुपये उस पर आते हैं, तो उनका देनदार मैं हूँ। वह भी अभी जीता-जागता है। किसी को बेईमान क्यों समझती हो? यह क्यों नहीं समझतीं कि उसे अभी सुविधा नहीं है और फिर दो-चार सौ रुपये एक दोस्त के हाथों डूब ही जायें, तो क्यों रोओ। माना हम गरीब हैं, दो-चार सौ रुपये हमारे लिए दो-चार लाख से कम नहीं; लेकिन खाया तो एक दोस्त ने!””

देवीजी जितनी सुंदर थीं, उतनी ही जबान की तेज थीं।
बोलीं- “”अगर ऐसों का ही नाम दोस्त है, तो मैं नहीं जानती की  दुश्मन किसे कहते हैं।””

 ढपोरशंख  ने मेरी तरफ देखकर, मानो मुझसे हामी भराने के लिए कहा-
“”औरतों का दिल बहुत ही छोटा होता है।””

देवीजी औरतों की यह बेइज्जती कैसे सह सकती थीं, आँखें तरेरकर बोलीं- “”यह क्यों नहीं कहते, कि उल्लू बनाकर ले गया, ऊपर से हेकड़ी जताते हो! दाल गिर जाने पर तुम्हें भी सूखा अच्छा लगे, तो कोई आश्चर्य नहीं। मैं जानती हूँ, रुपया हाथ का मैल है। यह भी समझती हूँ कि जिसके भाग्य का जितना होता है, उतना वह खाता है। मगर यह मैं कभी न मानूँगी, कि वह अच्छा इंसान था और आदर्शवादी था और यह था, वह था। साफ-साफ क्यों नहीं कहते, लंपट था, दगाबाज था! बस, मेरा तुमसे कोई झगड़ा नहीं।””

 ढपोरशंख  ने गर्म होकर कहा- “”मैं यह नहीं मान सकता।””

देवीजी भी गर्म होकर बोलीं- “”तुम्हें मानना पड़ेगा। महाशयजी आ गये हैं। मैं इन्हें पंच चुनती  हूँ। अगर यह कह देंगे, कि अच्छाई का पुतला था, आदर्शवादी था, वीरात्मा था, तो मैं मान लूँगी और फिर उसका नाम न लूँगी और अगर इनका फैसला मेरे हक में हुआ, तो लाला, तुम्हें इनको अपना बहनोई कहना पड़ेगा!””

मैंने पूछा- “”मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है, आप किसका जिक्र कर रही हैं? वह कौन था?””

देवीजी ने आँखें नचाकर कहा- “”इन्हीं से पूछो, कौन था? इनका बहनोई था!””

 ढपोरशंख  ने शर्माकर कहा- “”अजी, एक साहित्य-सेवी था क़रुणाकर जोशी। बेचारा मुसीबत का मारा यहाँ आ पड़ा था! उस समय तो यह भी भैया-भैया करती थीं, हलवा बना-बनाकर खिलाती थीं, उसकी दुःख  भरी कहानी सुनकर आँसू बहाती थीं और आज वह दगाबाज, लंपट है और झूठा है?””

देवीजी ने कहा- “”वह तुम्हारी खातिर थी। मैं समझती थी, लेख लिखते हो, भाषण देते हो, साहित्य के जानकार बनते हो, कुछ तो आदमी पहचानते होगे। पर अब मालूम हो गया, कि कलम घिसना और बात है, मनुष्य की नाड़ी पहचानना और बात।””

मैं इस जोशी का मामला सुनने के लिए उत्सुक हो उठा  ढपोरशंख  तो अपना पचड़ा सुनाने को तैयार थे; मगर देवीजी ने कहा- “”ख़ाने-पीने से निपटकर पंचायत बैठे।”” 

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) Mamta

(Hindi) Mamta

“बाबू रामरक्षादास दिल्ली के एक संपन्न क्षत्रिय थे, बहुत ही ठाठ-बाट से रहने वाले। बड़े-बड़े अमीर उनके यहाँ रोज आते थे। वे आये हुओं का आदर-सत्कार इतने अच्छे ढंग से करते थे कि इस बात की धूम सारे मुहल्ले में थी। रोज उनके दरवाजे पर किसी न किसी बहाने से दोस्त इकट्ठा हो जाते, टेनिस खेलते, ताश खेलते, हारमोनियम की मीठी आवाजों से जी बहलाते, चाय-पानी से दिल खुश करते, इससे ज्यादा और क्या चाहिए? जाति की ऐसी अमूल्य सेवा कोई छोटी बात नहीं है।

नीची जातियों के सुधार के लिये दिल्ली में एक सोसायटी थी। बाबू साहब उसके सेक्रेटरी थे, और इस काम को असाधारण जोश  से पूरा करते थे। जब उनका बूढ़ा कहार बीमार हुआ और क्रिश्चियन मिशन के डाक्टरों ने उसका ईलाज किया, जब उसकी विधवा औरत ने गुजारे की कोई उम्मीद न देखकर क्रिश्चियन-समाज का सहारा लिया, तब इन दोनों मौकों पर बाबू साहब ने दुख के रेजल्यूशन पास किये। दुनिया जानती है कि सेक्रेटरी का काम सभाऍं करना और रेजल्यूशन बनाना है। इससे ज्यादा वह कुछ नहीं कर सकता।

मिस्टर रामरक्षा का जातीय उत्साह यहीं  तक न था। वे सामाजिक कुप्रथाओं और अंधविश्वास  के बड़े दुश्मन थे। होली के दिनों में जब मुहल्ले में चमार और कहार शराब से मतवाले होकर फाग गाते और डफली  बजाते हुए निकलते, तो उन्हें बड़ा दुख होता। जाति की इस मूर्खता पर उनकी ऑंखों में ऑंसू भर आते और वे अक्सर इस कुरीति का ईलाज अपने हंटर से किया करते।

उनके हंटर में जाति की भलाई की उमंग उनकी बातों से भी ज्यादा थी। यह उनकी तारीफ के लायक कोशिश थी, जिन्होंने मुख्य होली के दिन दिल्ली में हलचल मचा दी, फाग गाने के अपराध में हजारों आदमी पुलिस के पंजे में आ गये। सैकड़ों घरों में होली के दिन मुहर्रम का-सा दुख फैल गया। इधर उनके दरवाजे पर हजारों आदमी, औरतें अपना दुखड़ा रो रहे थे। उधर बाबू साहब के दोस्त अपने दयालु दोस्त के अच्छे काम की तारीफ करते। बाबू साहब दिन-भर में इतने रंग बदलते थे कि उस पर “”पेरिस”” की परियों को भी जलन हो सकती थी।

कई बैंकों में उनके हिस्से थे। कई दुकानें थीं; लेकिन बाबू साहब को इतना समय न था कि उनकी  देखभाल करते। अतिथि-सत्कार एक पवित्र धर्म है। ये सच्ची देश की अच्छाई की उमंग से कहा करते थे- “”अतिथि-सत्कार शुरु से भारत के रहने वालों का एक मुख्य और तारीफ के लायक गुण रहा है। आने वालों का आदर-सम्मान करनें में हम सबसे आगे हैं। हम इससे दुनिया में इंसान कहलाने लायक बनते हैं। हम सब कुछ खो बैठे हैं, लेकिन जिस दिन हममें यह गुण न बचेगा; वो  दिन हिंदू-जाति के लिए शर्म, अपमान और मौत का दिन होगा।

मिस्टर रामरक्षा जातीय जरूरतों से भी बेपरवाह न थे। वे सामाजिक और राजनीतिक कामों में पूरी तरह से साथ देते थे। यहाँ तक कि हर साल दो, बल्कि कभी-कभी तीन भाषण जरूर तैयार कर लेते। भाषणों की भाषा बिलकुल सही, ओजस्वी और हर तरह से सुंदर होती थी। मौजूद  लोग और दोस्त उनके एक-एक शब्द पर तारीफ भरे शब्द कहते , तालियाँ बजाते, यहाँ तक कि बाबू साहब को भाषण जारी रखना मुश्किल हो जाता। भाषण खत्म होने पर उनके दोस्त उन्हें गोद में उठा लेते और आश्चर्यचकित होकर कहते- “”तेरी भाषा में जादू है!”” 

सारांश यह कि बाबू साहब का जातीय प्यार और मेहनत सिर्फ बनावटी, बेमददगार और फैशनेबल था। अगर उन्होंने किसी अच्छे काम में भाग लिया था, तो वह सम्मिलित कुटुम्ब का विरोध था। अपने पिता के बाद वे अपनी विधवा माँ से अलग हो गए थे। इस जातीय सेवा में उनकी पत्नी खास मददगार थी। विधवा माँ अपने बेटे और बहू के साथ नहीं रह सकती थी। इससे बहू की आजादी में बाधा पड़ने से मन और दिमाग कमजोर हो जाता है। बहू को जलाना और कुढ़ाना सास की आदत है। इसलिए बाबू रामरक्षा अपनी माँ से अलग हो गये थे।

इसमें शक नहीं कि उन्होंने ममता के क़र्ज़ का सोच के दस हजार रुपये अपनी माँ के नाम जमा कर दिये थे, कि उसके ब्याज से उनका गुजारा होता रहे; लेकिन बेटे के व्यवहार से माँ का दिल ऐसा टूटा कि वह दिल्ली छोड़कर अयोध्या चली गई । तब से वहीं रहती हैं। बाबू साहब कभी-कभी मिसेज रामरक्षा से छिपकर उनसे  मिलने अयोध्या जाया करते थे, लेकिन वह दिल्ली आने का कभी नाम न लेतीं थीं । हाँ, अगर हालचाल की खबर लेने वाली चिट्ठी पहुँचने में कुछ देर हो जाती, तो मजबूर होकर खबर पूछ देती थीं।

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) The Most Important Thing: Uncommon Sense for the Thoughtful Investor

(Hindi) The Most Important Thing: Uncommon Sense for the Thoughtful Investor

“स्टॉक मार्केट पर अब तक कई सारी किताबें पब्लिश हुई है जो हमे काफी कुछ जानकारी देती है पर कोई भी किताब हमे स्टॉक मार्किट के बारे में इतने सिंपल टर्म्स में नहीं बताती जैसे कि  हावर्ड  मार्क्स बताते है. ज्यादातर लोग स्टॉक मार्किट के बारे में बात करते हुए ऐसी भाषा का प्रयोग करते है जो आसानी से समझ  नहीं  आती या फिर ऐसे कॉम्प्लीकेटेड वर्ड्स यूज़ करते है जो  लोगों  ने पहले सुने भी नहीं होते, इससे लोग स्टॉक मार्किट को लेकर और ज्यादा कंफ्यूज़ हो जाते है. 

इसीलिए  हावर्ड  मार्क्स ने अपनी ये किताब” द मोस्ट इम्पोर्टेंट थिंग’ लिखी जिसमे उन्होंने  इंवेस्टिंग  के सारे फंडामेंटल कॉन्सेप्ट्स एक्सप्लोर किये है. ये किताब बड़ी ही सिंपल लेंगुएज में लिखी गई है इसलिए इसमें दिए सारे कॉन्सेप्ट्स ईजिली समझ आ जाते है, जो लोग स्टॉक मार्किट में किस्मत आजमाने चाहते है पर इस फील्ड की उन्हें कोई नॉलेज नहीं है तो उनके लिए ये किताब एक बेस्ट गाईड है. यही  नहीं  ये उन  इंवेस्ट र्स के भी बेहद काम आएगी जो फिर से  इंवेस्टिंग  के बेसिक्स सीखना चाहते है. 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए ? Who should read this summary?
●     इंवेस्ट र्स Investors
●    एंटप्रेन्योर्स Entrepreneurs
●    बिजनेस स्टूडेंट्स Business students
●    एसपाईरिंग  इंवेस्ट र्स Aspiring investors

ऑथर के बारे में About the Author
 हावर्ड  मार्क्स ओकट्री कैपिटल मैनेजमेंट के चेयरमेन और को-फाउंडर है जोकि $77 बिलियन वर्थ की एक  इंवेस्टमेंट  फर्म है.  हावर्ड  ने व्हार्टन स्कूल से फाईनेंस में डिग्री ली है और यूनीवरसिटी ऑफ़ शिकागो से अकाउंटिंग और मार्केटिंग में एमबीए किया है. उनकी ये किताब” द मोस्ट इम्पोर्टेंट थिंग इल्यूमिनेटेड” 2013 में पब्लिश हुई थी जोकि मार्क की 2011 में पब्लिश किताब का ही एक अपडेटेड वर्ज़न है. 

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When Breath Becomes Air (Marathi)

When Breath Becomes Air (Marathi)

“कर्करोगासारख्या प्राणघातक आजाराशी झगडणाऱ्या व्यक्तीला शेवटच्या क्षणी काय वाटतं असेल? त्याच्या मनात कोणते विचार येत असतील? त्याला हे शेवटचे क्षण त्याचा जवळच्या लोकांसोबत कसे घालवायचे असतील? या सगळ्या प्रश्नांची उत्तरे केवळ मृत्यूच्या दारात असलेल्या व्यक्तीद्वारेच दिली जाऊ शकतात.

“”व्हेन ब्रीथ बिकम्स एयर”” या पुस्तकात अशाच प्रकारच्या भावनिक प्रश्नांची उत्तरे शोधण्याचा प्रयत्न केला गेला आहे.

 

पुस्तकाविषयी:

ही एक रियल स्टोरी आहे. या पुस्तकात इमोशंस आणि ट्रेजेडीची मिश्रित कथा तुम्हाला पाहायला मिळेल जी प्रत्येक वाचकाच्या हृदयाला स्पर्श करेल.

 

हे पुस्तक कोणी वाचायला हवे?

जर तुम्ही तुमच्या लाईफ मधल्या छोट्या मोठ्या संकटांना घाबरत असाल, तर हे पुस्तक तुम्ही नक्कीच वाचायला हवे. या पुस्तकाच्या लेखकांनी त्यांच्या जीवनाच्या सगळ्यात कठीण काळातील / मृत्यूच्या दारात असताना स्वतःच्या अनुभवांचे कथन केले आहे. 

 

लेखकाबद्दल:

पॉल सुधीर अरुण कलानिथी यांचा जन्म 1 अप्रैल, 1977 मध्ये झाला होता. ते एक इंडो-अमेरिकन न्यूरोसर्जन आणि राइटर होते. ज्यांनी त्यांच्या शेवटच्या श्वासापर्यंत लंग कॅन्सर सोबत लढाई केली. ही खरंच दुर्दैवी घटना आहे की त्यांच्या सारख्या एका कमी वयाच्या टॅलेंटेड न्यूरोसर्जन ला या जगाला निरोप द्यावा लागला. पण त्यांच्या पुस्तकांमधून ते आजदेखील अजरामर आहेत.

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You Can Heal Your Life (Marathi)

You Can Heal Your Life (Marathi)

“आपल्या सगळ्यांच्याच आयुष्यात असे प्रसंग किंवा अशी वेळ येतंच असते, जेव्हा आपल्याला खूप खचल्या सारखे वाटते, कुठलीही आशा राहतं नाही. जेव्हा आपल्याला कोणतीच गोष्ट मोटीवेट करू शकतं नाही तेव्हा आपल्यातील उत्साह संपायला लागतो.

अशा वेळी असं वाटतं ना, कोणतीतरी यावं आणि मदतीचा हात द्यावा. पण असं खरंच होतं का? कधी कधी आपल्याला एकट्याने या गोष्टींना सामोरे जावे लागते कारण तेव्हा कोणीही आपल्या मदतीसाठी येत नाही. तेव्हा आपणच आपली मदत करत असतो.

हो ना? तुम्हाला सेल्फ हेल्प फिलोसफी आणि होलिस्टिक हेल्थ चे बेसिक टेनेट्स शिकायचे असतील तर याचा बेस्ट वे आहे “”यू केन हील योर लाइफ”” हे पुस्तक! तुम्हाला यात अनेक नवीन गोष्टी शिकायला मिळतील.

 

पुस्तकाविषयी:

आपल्या अनेक प्रोब्लम्स चे महत्वाचे कारण आहे डाईफंक्शनल बीलीफ्स. जे आपल्याला एका लिमिटेड वे मध्ये विचार करण्यास भाग पाडते आणि यामुळे आपण आऊट ऑफ द बॉक्स विचार करू शकत नाही.

आपण खूप वेळा आपल्या चुकांसाठी स्वतःला माफ करू शकत नाही आणि पुन्हा पुन्हा त्याच गोष्टी चा विचार करून आपण रिग्रेट करत राहतो आणि यामुळे आपल्या मनात निगेटिव थिंकिंग यायला लागते. अशाच अनेक गोष्टींची चर्चा आणि त्यांचे उपाय या पुस्तकात सांगितले आहेत.

 

ही समरी कोणी वाचायला हवी?

या पुस्तकाचे काही माइंड ब्लोविंग रीवीलिश्न्स आपले विचार आणि आपला दृष्टिकोन बदलण्यात खूप मदत करतात. यामुळे हे पुस्तक सगळ्यांनीच वाचले पाहिजे. या पुस्तकाचा समावेश त्या पुस्तकांमध्ये होईल, जे तुम्हाला लाइफ चेंजिंग आयडियाज देतात आणि तुमची पर्सनॅलिटीला पॉझिटिव्ह वे मध्ये अफेक्ट करतात.

 

लेखकाविषयी:

8 ऑक्टोंबर 1926 ला अमेरिका मध्ये जन्मास आलेल्या “”लूजी हे”” एक अमेरीकन मोटिवेशनल ऑथर आणि “”हे हॉउस”” च्या फाउंडर होत्या. त्यांच्या लाईफ मध्ये त्यांनी अनेक सेल्फ हेल्प बुक्स लिहिल्या पण एक पब्लिश्ड ऑथर बनवायच्या आधी त्यांनी खूप स्ट्रगल केला.

त्यांच्या बालपणात त्यांना अब्यूज्मेंट आणि वायोलेंस चा सामना करावा लागला तर मोठेपणी त्यांना पैशासाठी अनेक छोटे मोठे काम करावी लागली. “”वाईट परिस्थिती मध्ये देखील कशा पद्धतीने एखाद्या माणसाने पुढे जायला हवे”” याचे एक उत्तम उदाहरण म्हणजे आपल्या लेखिका.

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(Hindi) Rich Dad’s-THE BUSINESS SCHOOL For People Who Like Helping Other People

(Hindi) Rich Dad’s-THE BUSINESS SCHOOL For People Who Like Helping Other People

“अमीर बनने के कई सारे तरीके हो सकते है. आप चाहे तो कड़ी मेहनत करके पैसा कमाए या किसी अमीर से शादी कर ले या खुद का बिजनेस स्टार्ट कर सकते हो. लेकिन इस  समरी में आपको पैसे कमाने का एक नया तरीका सीखने को मिलेगा जो ना सिर्फ आपको बल्कि दूसरों को भी ग्रो करने और अमीर होने का मौका देगा. इस  समरी में आप इनकम टाइप्स, बिजनेस एजुकेशन टाइप्स, यहाँ तक कि ये भी पढ़ोगे कि आपको अमीर बनने के लिए किस तरह के लोगो से दोस्ती करनी चाहिए. नेटवर्किंग मार्केटिंग के बारे में सीखकर आप सीखेंगे कि लाइफ में ग्रो कैसे किया जाए और कैसे अपने अंदर कांफिडेंस डेवलप करके एक अमीर  इंसान बना जाए.  
ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए?
●    एंटप्रेन्योर
●    बिजनेस ओनर
●    जो लोग दूसरों की मदद करना पसंद करते हैं 
●    वो लोग जो अपने साथ-साथ दूसरो की जिंदगी में बदलाव लाने का क्लियर मिशन लेकर बैठे हैं 
●    एम्प्लोई
 

ऑथर के बारे में 
 रॉबर्ट  टी, कियोसाकी बेस्ट सेलिंग किताब  ‘रिच डैड, पूअर डैड’ के ऑथर है. साथ ही  रॉबर्ट  रिच डैड कंपनी के फाउंडर भी हैं. उनकी कंपनी किताबों और वीडियो के मीडियम से लोगो को पर्सनल फाईनेंस के बारे में एजुकेट करने का काम करती है.  रॉबर्ट  फ़ीनिक्स, एरिज़ोना में अपनी पत्नी किम कियोसाकी के साथ रहते हैं.  
 

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(Hindi) Demonstration

(Hindi) Demonstration

“महाशय गुरु प्रसादजी मजेदार इंसान हैं, गाने-बजाने के शौक़ीन हैं, खाने-खिलाने और सैर-तमाशे का भी शौक है; पर उसी मात्रा में मेहनत करने का शौक नहीं है। यों तो वह किसी के मोहताज नहीं हैं, भले आदमियों की तरह हैं, और हैं भी भले आदमी; मगर किसी काम में टिक नहीं सकते। गुड़ होकर भी उनमें स्वाद नहीं है। वह कोई ऐसा काम उठाना चाहते हैं, जिसमें चटपट करूँ का खजाना मिल जाय और वो हमेशा के लिए बेफिक्र हो जायँ। बैंक से छ महीने का  इंटरेस्ट चला आये, वो खायें और मजे से पड़े रहें। 

किसी ने सलाह दी नाटक-कम्पनी खोलो। उनके दिल में भी बात जम गई। दोस्तों को लिखा मैं ड्रामा की  कंपनी खोलने जा रहा हूँ, आप लोग ड्रामा  लिखना शुरू कीजिए। कंपनी का prospectus बना, कई महीने उसकी खूब बात हुई , कई बड़े-बड़े आदमियों ने हिस्से खरीदने के वादे किये। लेकिन न हिस्से बिके, न कंपनी खड़ी हुई। हाँ, इसी धुन में गुरु प्रसादजी ने एक नाटक की रचना कर डाली और यह फिक्र हुई कि इसे किसी कंपनी को दिया जाय। लेकिन यह तो मालूम ही था, कि कंपनीवाले एक ही चालाक लोग होते हैं। फिर हरेक कंपनी में उसका एक नाटककार भी होता है। वह कब चाहेगा कि उसकी कंपनी में किसी बाहरी आदमी का आना हो। वह इस रचना में तरह-तरह के ऐब निकालेगा और कंपनी के मालिक को भड़का देगा। इसलिए इंतजाम किया गया, कि मालिकों पर नाटक का कुछ ऐसा प्रभाव जमा दिया जाय कि नाटककार महोदय की कुछ दाल न गल सके। 

पाँच लोगों की एक कमेटी बनाई गई, उसमें सारा प्रोग्राम डिटेल के साथ तय किया गया और दूसरे दिन पाँच लोग गुरुप्रसादजी के साथ नाटक दिखाने चले। तांगे आ गये। हारमोनियम, तबला आदि सब उस पर रख दिये गये; क्योंकि नाटक का डिमॉन्सट्रेशन करना तय हुआ था। 

अचानक विनोद बिहारी ने कहा- “”यार, तांगे पर जाने में तो कुछ बेइज्जती होगी। मालिक सोचेगा, यह महाशय यों ही हैं। इस समय दस-पाँच रुपये का मुँह न देखना चाहिए। मैं तो अंग्रेजों की advertisement की कला का कायल हूँ कि रुपये में पंद्रह आने उसमें लगाकर बाकी एक आने में रोजगार करते हैं। कहीं से दो मोटरें मँगानी चाहिए।””

रसिकलाल बोले- “”लेकिन किराये की मोटरों से वह बात न पैदा होगी, जो आप चाहते हैं। किसी अमीर से दो मोटरें माँगनी चाहिए, मारिस हो या नये चाल की आस्टिन।””

बात सच्ची थी। कपड़ों से भीख मिलती है। सोचा जाने लगा कि किस अमीर से याचना की जाय। 

“”अजी, वह महा खूसट है। सबेरे उसका नाम ले लो तो दिन भर पानी न मिले।”” 

“”अच्छा सेठजी के पास चलें तो कैसा?”” 

“”मुँह धो रखिए, उसकी मोटरें अफसरों के लिए रिजर्व हैं, अपने लड़के तक को कभी बैठने नहीं देता, आपको दिये देता है।””

“”तो फिर कपूर साहब के पास चलें। अभी उन्होंने नई मोटर ली है।”” 

“”अजी, उसका नाम न लो। कोई-न-कोई बहाना करेगा, ड्राइवर नहीं है, मरम्मत में है।””

गुरुप्रसाद ने बेचैन होकर कहा- “”तुम लोगों ने तो बेकार का बखेड़ा कर दिया। तांगों पर चलने में क्या हर्ज था?””

विनोदबिहारी ने कहा- “”आप तो घास खा गये हैं। नाटक लिख लेना दूसरी बात है और मामले को पटाना दूसरी बात है। रुपये हाल सुना देगा, अपना-सा मुँह लेकर रह जाओगे।””

अमरनाथ ने कहा- “”मैं तो समझता हूँ, मोटर के लिए किसी राजा-अमीर की खुशामद करना बेकार है। तारीफ तो जब है कि पाँव-पाँव चलें और वहाँ ऐसा-ऐसा रंग जमायें कि मोटर से भी ज्यादा शान रहे।””

Puri Kahaani Sune..

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(Hindi) THE POWER OF HABIT By Charles Duhigg

(Hindi) THE POWER OF HABIT By Charles Duhigg

“शराब और सिगरेट पीना, ओवरईटिंग की हैबिट, बिंज  watching , इंटरनेट की एडिक्शन, नींद पूरी ना होना – क्या आप भी इनमे से किसी बुरी आदत के शिकार है? अगर है तो ये  समरी  एक बार जरूर पढ़िये. इस समरी में आपको अपनी बेड हैबिट छोड़कर उन्हें गुड हैबिट में बदलने का इफेक्टिव तरीका बताया जाएगा और आपको उन  लोगों  की रियल लाइफ कहानियाँ पढने को मिलेंगी जिन्होंने अपनी बेड हैबिट को गुड हैबिट में बदला है.
 
ये  समरी  किस-किसको पढनी चाहिए ?
•    वो लोग जो किसी बुरी आदत का शिकार है और उसे छोड़ना चाहता है. 
•    दोस्त या रिश्तेदारों को जो अपने करीबी  लोगों  की लाइफ सुधारना चाहते हैं और उनकी बुरी आदत छुड़वाना चाहते हैं. 

ऑथर के बारे में 
चार्ल्स  डुहिग एक बेस्ट सेलिंग ऑथर और एक अवार्ड विनिंग जर्नलिस्ट हैं. 2013 में उन्हें Explanatory रिपोर्टिंग के लिए पुलित्ज़र प्राइज भी मिल  चुका है. उन्होंने न्यू यॉर्क टाइम्स, लॉस्ट एंजेल्स टाइम्स और न्यू यॉर्क मैगज़ीन के लिए काम किया है. 

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Man’s Search for Meaning (Marathi)

Man’s Search for Meaning (Marathi)

“पुस्तकाविषयी: 

जर तुम्हाला वाटत असेल की तुम्ही तुमच्या जीवनाच्या सगळ्यात कठीण वेळेतून जात आहात तर हे पुस्तक तुम्ही नक्की वाचायला हवे. विक्टर फ्रैंकल ने वर्ल्ड वॉर मध्ये आपलं सगळं काही गमावल होत – परिवार, स्वतःची ओळख आणि प्रोफेशन देखील. त्यांच्याकडे जे काही उरलं होतं ते होतं केवळ त्यांच अंतर्मन.

फ्रेंकल तुम्हाला तुमच्या लाइफ चा मिनिंग कसा शोधायचा हे शिकवतील कारण जोपर्यंत तुम्ही जिवंत आहात तोपर्यंत कुठे ना कुठे तरी होप देखील जिवंत असतात.

 

हे पुस्तक कोणी वाचायला हवे?

त्या लोकांनी ज्यांनी आपल्या जवळच्या परिजनांना गमावले आहे, त्यांनी ज्यांच्या सोबत कोणती दुर्घटना झालेली असेल, त्यांनी ज्यांना जीवनामध्ये एका ध्येयाची गरज आहे.

 

लेखकाबद्दल: 

विक्टर फ्रैंकल एक साइकोथेरपिस्ट आणि एक न्यूरोलॉजिस्ट आहेत. ते एका मोठ्या संकटातून वाचले होते. ते लॉगोथेरापी और एक्सिस्टेंटिअल एनालिसिस स्कूल ऑफ़ थॉट चे फाउंडर आहेत. मैन'स सर्च फॉर मीनिंग त्यांच्या concentration कैंप मधील अनुभवांचे कथन आहे, तसेच त्यांनी कशाप्रकारे लॉज थेरेपी बनवली हे देखील यात सांगितले आहे.

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The 80/20 Principle (Marathi)

The 80/20 Principle (Marathi)

“पुस्तकाबद्दल: 

तुम्ही कधी विचार केला आहे का, काही कंपनीज दुसऱ्या कंपनीज पेक्षा जास्त पैसे का कमावतात? हा एक मिलियन डॉलर क्वेश्चन आहे, जो सर्वजण विचारतात. पण सगळेच उत्तर ऐकायला तयार नसतात. तुम्ही आहात का रेडी, त्यांच्या सक्सेसचे उत्तर ऐकायला? जर तुम्हाला याचे उत्तर हवे असेल तर हे पुस्तक नक्की वाचा.

 

हे पुस्तक कोणी वाचायला हवे?

या पुस्तकात तुम्हाला एका टॉप सक्सेसफुल बिझीनेसेसच्या रूल बद्दल शिकायला मिळेल आणि तुम्हाला हेे देखील समजेल की कसे त्यांनी स्वतः ला सक्सेसफुल बनवले. त्यामुळे प्रत्येक बिझनेस मॅन किंवा बिजनेस क्षेत्रात स्वतःला पाहू इच्छिणाऱ्या त्या स्टूडेंट्स ने हे पुस्तक वाचायला हवे.

 

लेखकाविषयी: 

रिचर्ड जॉन कोच यांचा जन्म 28 जुलै 1950 मध्ये झाला. ते एक ब्रिटिश व्यवस्थापन सल्लागार (मॅनेजमेंट कन्सल्टंट), उद्यम भांडवल गुंतवणूकदार (व्हेंचर कॅपिटल इन्वेस्टर) होते आणि त्यांनी आज पर्यंत मॅनेजमेंट मार्केटिंग आणि लाइफस्टाइल या विषयांवर अनेक पुस्तके लिहिली आहेत.

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The $100 Startup (Marathi)

The $100 Startup (Marathi)

“हे पुस्तकं मी का वाचायला हवं?

विचार करून पहा, तुम्ही एक असं जीवन जगत आहात ज्यात तुम्ही जे मनात येईल व जे तुम्हाला आवडेल ते करताहेत आणि त्यासाठी तुम्हाला पैसे  देखील मिळताहेत.  आता थोड इमॅजिन करा, तुम्ही असं काम करतं आहात, जे काम करण्याची तुम्ही आतुरतेने वाट पाहत होता.

ते काम म्हणजे तुम्हीच मालक आणि तुम्हीच काम करणारे. याला दुसऱ्या शब्दात सांगायचे झाले तर, तुम्ही असं काम करत आहात, जिथे तुम्हाला दुसऱ्यांसाठी काम करून त्यांना खूप जास्त प्रॉफिट कमवून देण्याची गरज नाही, कारण तुम्ही स्वतःसाठी आणि स्वतःला प्रॉफिट कमवून देण्यासाठी काम करताहेत.

मग, कस वाटलं ऐकून? Perfect ना? जर तुमचीही अशीच इच्छा असेल आणि तुम्ही असाच काहीतरी विचार करत असाल, तर हे पुस्तक तुमच्या साठीच लिहीले आहे.

(मित्रांनो)  खरं तर या पुस्तकात तुम्हाला असा कोणताच शॉर्टकट भेटणार नाही, जो तुम्हाला तातडीने पैसे कमविण्याचा सोपा  मार्ग सांगेल.  कारण असा कोणता मार्गच नाही जिथे तुम्ही काम न करता तुम्हाला सक्सेस मिळेल.. पण जर तुम्हाला काही उत्कृष्ट टिप्स हव्या असतील तर हे पुस्तक नक्की वाचा.

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(Hindi) Sawa Ser Gehun

(Hindi) Sawa Ser Gehun

“किसी गाँव में शंकर नाम का एक किसान रहता था। सीधा-सादा गरीब आदमी था, अपने काम-से-काम, न किसी के लेने में, न किसी के देने में। जुआ न जानता था, धोखाधड़ी की उसे छूत भी न लगी थी, ठगे जाने की चिन्ता न थी, ठगना न जानता था, खाना मिला, खा लिया, न मिला, चबेने पर काट दी, चबैना भी न मिला, तो पानी पी लिया और राम का नाम लेकर सो रहा। 

लेकिन जब कोई मेहमान दरवाजे पर आ जाता था तो उसे इस बेफिक्री को छोड़ना पड़ता था। खासकर जब साधु-महात्मा आते थे, तो उसे जरूर तौर पर दुनियादारी का सहारा लेना पड़ता था। खुद भूखा सो सकता था, पर साधु को कैसे भूखा सुलाता, भगवान् के भक्त जो ठहरे!

एक दिन शाम के समय एक महात्मा ने आकर उसके दरवाजे पर डेरा जमाया। तेजस्वी मूर्ति थी, पीताम्बर गले में, जटा सिर पर, पीतल का कमंडल हाथ में, खड़ाऊँ पैर में, चश्मा आँखों पर, पूरा पहनावा उन महात्माओं का-सा था जो अमीरों के बंगलों में तपस्या, हवा गाड़ियों पर मंदिरों की परिक्रमा और योग-सिध्दि पाने के लिए अच्छा खाना खाते हैं। घर में जौ का आटा था, वह उन्हें कैसे खिलाता। पुराने समय में जौ का चाहे जो कुछ महत्त्व रहा हो, पर अभी युग में जौ का खाना सिद्ध आदमियों के लिए अच्छा नहीं होता है। बड़ी चिन्ता हुई, महात्माजी को क्या खिलाऊँ।

आखिर तय किया कि कहीं से गेहूँ का आटा उधार लाऊँ, पर गाँव-भर में गेहूँ का आटा न मिला। गाँव में सब इंसान ही इंसान थे, देवता एक भी न था, इसलिए देवताओं के खाने का सामान कैसे मिलता। किस्मत से गाँव के पाँडे महाराज के यहाँ से थोड़ा-सा मिल गए। उनसे सवा सेर गेहूँ उधार लिया और पत्नी से कहा, कि पीस दे। महात्मा ने खाना खाया, लम्बी तानकर सोये। सुबह आशीर्वाद देकर अपनी राह ली।

पाँडे महाराज साल में दो बार खलिहानी लिया करते थे। शंकर ने दिल में कहा, 'सवा सेर गेहूँ इन्हें क्या लौटाऊँ, पाँच सेर के बदले कुछ ज्यादा खलिहानी दे दूँगा, यह भी समझ जायँगे, मैं भी समझ जाऊँगा।' 

चैत में जब पाँडेजी पहुँचे तो उन्हें साढ़े सात सेर के लगभग गेहूँ दे दिया और उधार उतर गया समझकर उसकी कोई बात न की। पाँडेजी ने फिर कभी न माँगा। सरल शंकर को क्या मालूम था कि यह सवा सेर गेहूँ चुकाने के लिए मुझे दूसरा जन्म लेना पड़ेगा।
सात साल गुजर गये। पाँडेजी पंडित से महाजन हुए, शंकर किसान से मजदूर हो गया। उसका छोटा भाई मंगल उससे अलग हो गया था। एक साथ रहकर दोनों किसान थे, अलग होकर मजदूर हो गये थे। शंकर ने चाहा कि दुश्मनी की आग भड़कने न पाये, लेकिन हालात ने उसे मजबूर कर दिया। 

जिस दिन अलग-अलग चूल्हे जले, वह फूट-फूटकर रोया। आज से भाई-भाई दुश्मन हो जायँगे, एक रोयेगा, दूसरा हँसेगा, एक के घर मातम होगा तो दूसरे के घर गुलगुले पकेंगे, प्यार का बंधन, खून का बंधन, दूध का बंधन आज टूटा जाता है। उसने भगीरथ की मेहनत से घर की इज्जत का पेड़ लगाया था, उसे अपने खून से सींचा था, उसको जड़ से उखड़ता देखकर उसके दिल के टुकड़े हुए जाते थे।

सात दिनों तक उसने खाने की सूरत तक न देखी। दिन-भर जेठ की धूप में काम करता और रात को मुँह लपेटकर सोया रहता। इस गहरे दुख और बड़ी तकलीफ ने खून को जला दिया, मांस और हड्डी को घुला दिया। बीमार पड़ा तो महीनों खाट से न उठा। अब गुजर-बसर कैसे हो?

Puri Kahaani Sune…

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