(Hindi) The Upside of Irrationality

(Hindi) The Upside of Irrationality

इंट्रोडक्शन

डैन ने अपनी बुक ' प्रेडिक्टिबली इर्रेशनल' में डिसकस किया हैं कि हम कंस्यूमर्स (consumers) के तौर पर बेवकूफी भरा डिसिशन लेते हैं. वहीं दूसरी तरफ, अपने बुक 'अपसाइड ऑफ  इर्रेशनेलिटी ' में, उन्होंने बिना सोचे समझे लिए हमारे इन फैसलों के पॉजिटिव साइड के बारे में बताया हैं.

इस समरी में आप जानेंगे कि कैसे हम कम सैलरी पर ज़्यादा काम करना चाहते हैं, कैसे हम मुफ्त में चीज़ें हासिल करने के बजाय उसे अपनी कोशिश से हासिल करना चाहते हैं. आप सीखेंगे कि कैसे हम अपने काम में अपना पर्सनल टच देना पसंद करते हैं और जितना हो सकें हम बदला, यानि रिवेंज लेने से बचना चाहते हैं.

Behavioral economics  के फील्ड में डैन  एरिएली और उनके कलीग्स हमारे इंसान होने के बारे में स्टडी करते हैं, जैसे कि कैसे हम ऐसे डिसीज़न ले लेते हैं जिसकी हमें समझ नहीं होती. लेकिन यही  इर्रेशनेलिटी  ही तो इस स्टडी को इंटरेस्टिंग बनाती है .

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कम के लिए ज़्यादा कीमत चुकाना

मान लीजिए कि जैसे आप एक लैब के मोटे और खुश चूहे हैं. एक दिन, रिसर्चर आपको अपने कम्फर्टेबल बॉक्स से बाहर निकालता हैं  और आपको एक भूलभुलैया वाले नए बॉक्स में डाल देता हैं. आदत से मजबूर आप अपने आसपास के माहौल को जानना चाहेंगे, आप अपनी मूंछों के साथ यहाँ-वहाँ घूमते हैं और सूँघते हैं. आप नोटिस करते हैं कि भूलभुलैया के कुछ हिस्से सफेद हैं और कुछ काले हैं. जब आप काले हिस्से के ऊपर से गुज़रते हैं, तो आपको एक इलेक्ट्रिक शॉक लगता हैं .

हर दिन, आपको एक अलग ही भूलभुलैया में डाला जाता हैं. रंग और पैटर्न भी रोज बदलते हैं. आप हर दिन सीखते हैं कि कौन सा कोना शॉक देता हैं और कौन सा नहीं. कभी-कभी लाल   दीवार में शॉक लगता हैं, तो कभी पोल्का डॉट वाली   दीवार में. तो आपको क्या लगता हैं, आप कितनी अच्छी तरह से घूमना सीख लेंगे?

लगभग दो सौ साल पहले, दो साइकोलॉजिस्ट, रॉबर्ट यरकेस और जॉन डोडसन ने स्टडी किया था कि क्या इलेक्ट्रिक शॉक बढ़ाने से लैब के चूहे जल्दी सीखेंगे? मतलब, अगर हम चूहों को ज़्यादा मोटीवेट करते हैं, तो क्या उनका परफॉरमेंस बेहतर होगा?
यरकेस और डोडसन ने पाया कि अगर इलेक्ट्रिक शॉक के झटके कमजोर हो, तो चूहों को इससे ज़्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था और वो low परफॉरमेंस दे रहे थे. लेकिन अगर medium शॉक दिया गया, तो वे जल्दी सीख कर प्रोग्रेस दिखा रहे थे. इसलिए हमें लगेगा कि जब शॉक को तेज़ कर दिया जाए, तो चूहे बस कुछ ही वक्त में भूलभुलैया को पार कर देंगे. वे अपना बेस्ट परफॉरमेंस देंगे. पर ये सच नहीं हैं .

इससे चूहों का परफॉरमेंस सबसे बुरा था. वे शॉक से घबरा गए थे और वे बस शॉक के बारे में ही सोच पा रहे थे. चूहें डर के मारे सहम गए और वे भूलभुलैया के अगले स्टेज में नहीं जा सके.

“ओवरमोटिवेटेड” का एक कांसेप्ट होता हैं. ये कांसेप्ट इंसानों पर भी अप्लाई होता हैं. एग्जाम्पल के लिए, अगर आप एम्पलॉईस को मैक्सिमम सैलरी देते हैं, फिर भी उनका परफॉरमेंस मैक्सिमम नहीं होगा. अगर आप उन पर ज़रूरत से ज़्यादा प्रेशर डालेंगे तो उन चूहों की तरह ही सहम जाएंगे.

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आइए, इंडिया के Madurai में डैन  एरिएली और उनके कलीग्स द्वारा किए गए इस सोशल एक्सपेरिमेंट के बारे में जानते हैं. इसमें  ये देखना था कि अगर पार्टिसिपेंट्स को ज़्यादा बोनस और इन्सेन्टिव दिया जाए, तो क्या वे ज़्यादा मोटिवेटेड होंगे और बेहतर परफॉरमेंस देंगे. लेकिन इस स्टडी ने साबित किया कि ये सच नहीं हैं .

डैन और उनके कलीग्स ने पार्टिसिपेंट्स के लिए 6 अलग-अलग माइंड गेम्स चुने. इसमें भूलभुलैया, डार्ट बॉल, और लास्ट तीन नंबरों को याद करना शामिल था. उन्होंने कुछ ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को इस एक्सपेरिमेंट को ऑर्गनाइज़ करने के लिए बुलाया था.
रमेश, सेकंड इयर ग्रेजुएशन का स्टूडेंट था. उसने कम्युनिटी सेंटर में इन गेम्स को ऑर्गनाइज़ करने का फैसला किया. उसने वॉलिंटियर्स से कहा- “हम यहां कुछ मजेदार गेम्स खेलेंगे. क्या आप इस एक्सपेरिमेंट का हिस्सा बनना चाहेंगे? अगर आप खेलते हैं तो आप कुछ पैसे भी कमा सकते हैं.”

और इसलिए, पहला पार्टिसिपेंट शामिल हुआ और उसका नाम नितिन था. फिर, उन्होंने ये डिसाइड करने के लिए एक डाइस फेंका कि नितिन को कितने पैसे मिलने चाहिए. डाइस पर चार आया जिसका मतलब था मिड-लेवल की पेमेंट. नितिन मैक्सिमम 240 रुपये तक जीत सकता था.
रमेश ने समझाया कि हर खेल के लिए मीडियम लेवल परफॉर्मेंस और हाई लेवल परफॉर्मेंस होता हैं. नितिन को हर मिड-लेवल परफॉर्मेंस के लिए 20 रुपये और हर हाई-लेवल परफॉर्मेंस के लिए 40 रुपये मिलेंगे. और, अगर उसका परफॉर्मेंस लौ लेवल का रहा, तो उसे कुछ नहीं मिलेगा.

अब नितिन साइमन नाम का गेम खेलना शुरू करता हैं. वहाँ चार बटन थे, हरेक को दबाने पर वो जल उठते थे और एक अलग आवाज़ निकलती थी. नितिन को इन बटन्स से निकलते आवाज़ और लाइट के पैटर्न को समझना था. सबसे पहले एक बटन जलता था फिर दूसरा, तीसरा और चौथा. नितिन को इनके सीक्वेंस को याद करना था.

अगर नितिन को लगातार 6 बटन के सीक्वेंस याद रहें, तो ये एक अच्छा परफॉर्मेंस होगा. वो 20 रुपये कमाएगा. अगर उसे 8 बटन याद रहें, तो वो हाई लेवल परफॉर्मेंस हैं और उसे 40 रूपए मिलेंगे.
सबसे पहले, नीला बटन जला जिसे नितिन ने सही पकड़ा. दूसरा, नीला फिर पीला जला. ये बिलकुल मुश्किल नहीं था. दूसरा सीक्वेंस था नीला-पीला-हरा. वो भी नितिन ने सही बताया.

पांचवें राउंड में नितिन को 7 बटन याद रहें और छठे राउंड में उसे 8 बटनों का सीक्वेंस याद रहा. नितिन खुशी-खुशी 40 रुपये लेकर घर चला गया.
आइए नितिन के एक्सपीरियंस को  अनुपम नाम के एक दूसरे पार्टिसिपेंट से कम्पेयर करें. जब उसने डाइस फेंका, तो  अनुपम को 5 नंबर मिले, जिसका मतलब था कि उसे हाई लेवल का प्राइज दिया जाएगा. अच्छे लेवल के परफॉरमेंस के लिए उसे 200 रुपये मिलेंगे. हाई लेवल परफॉरमेंस के लिए उन्हें उसे 400 रुपये मिलेंगे. और, अगर  अनुपम ने सभी छह मैचों में अच्छा परफॉरमेंस किया, तो उसके पास 2400 होंगे. ये उसके पांच महीने के सैलरी के बराबर हैं !

अनुपम ने जो पहला गेम खेला वो लेबरिंथ था. छोटी सी बॉल भूलभुलैया में कहां जाएगी, इसे कंट्रोल करने के लिए अनुपम ने दो नॉब का इस्तेमाल किया. अगर बॉल सातवें गड्डे से गुज़र कर जाती हैं तो ये अच्छा परफॉरमेंस होगा और  अनुपम 200 रुपये जीत जाएगा. अगर बॉल नौवें गड्डे से होकर जाती हैं तो उसे 400 रुपये मिलेंगे.
अनुपम ने खुद से कहा, “ये बहुत ज़रूरी हैं. मुझे कामयाब होना हैं.” लेकिन वो पहली कोशिश में ही फेल हो गया. उसके हाथ कांप रहे थे. और वो बहुत बौखला गया था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसके सिर पर बंदूक तान रहा हो.  अनुपम फोकस नहीं कर सका. उसने लेबिरिंथ में और अगले दो गेम्स में भी खराब परफॉरमेंस किया.

अनुपम ने साइमन गेम भी खेला, वो जिसमें नितिन ने पहले 40 रुपए जीते थे. इसमें,  अनुपम लगातार सात रंग के सीक्वेंस को याद रख पाया था. लेकिन वो आठवां सीक्वेंस नहीं बता पाया. उसका मिड-लेवल परफॉर्मेंस रहा और उसे 200 रुपये दिए गए.
सिर्फ दो गेम बचे थे. ज़्यादा पैसा जीतने के लिए ये उसके आखिरी मौके थे.  अनुपम ने एक ब्रेक लेने का फैसला किया क्योंकि वो बहुत प्रेशर महसूस कर रहा था. उसने ब्रीथिंग एक्सरसाइज़ करने कोशिश की और थोड़ी देर के लिए रिलैक्स किया.

अफ़सोस,  अनुपम आखिरी दो मैचों में बुरी तरह नाकाम रहा. उसे अब भी 200 रुपये मिलेंगे, लेकिन फिर भी वो बहुत निराश महसूस हुआ था. उसके 2400 रुपये जीतने का मौका खत्म हो गया था.
मोटिवेशन और रिवॉर्ड बढ़ाने से परफॉरमेंस भी हाई लेवल का हो जाएगा, ऐसा नहीं हैं. मिड-लेवल कंपनसेशन देना बेहतर हैं ताकि किसी शख्स या टीम पर प्रेशर न पड़े और वे काम पर फोकस रख सकें.

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