(hindi) The Most Important Thing: Uncommon Sense for the Thoughtful Investor

(hindi) The Most Important Thing: Uncommon Sense for the Thoughtful Investor

इंट्रोडक्शन

क्या आप  इंवेस्टिंग  की फील्ड में अभी नए-नए है?

या फिर इस फील्ड में काफी लंबे समय से होने के बावजूद अभी तक आपको अच्छे रीज्ल्ट  नहीं  मिल पाए है?

इससे पहले कि हम  इंवेस्टिंग  की फील्ड में “मोस्ट इम्पोर्टेंट थिंग” की चर्चा करे, आप पहले ये समझ लो कि यहाँ हम किसी एक आईडिया या कांसेप्ट की बात  नहीं  कर रहे है. “मोस्ट इम्पोर्टेंट थिंग” उन bricks यानी ईंटो की तरह है जिन्हें हम  इकट्ठा  करके  इंवेस्टिंग  की फील्ड में एक बेहद मजबूत दिवार बनाने के लिए इस्तेमाल करेंगे.

इंवेस्टिंग  कोई आसान काम  नहीं  है इसलिए ये मत समझिए कि ये किताब आपको  इंवेस्टिंग  पर कोई  short -कट या कोई जादुई ट्रिक बताने वाली है जो आपको रात-रात सक्सेस दिला दे. बल्कि इस किताब का मेन गोल है आपको ये शो करना कि  इंवेस्टिंग  बेहद कॉम्प्लेक्स सब्जेक्ट है और कैसे आप उन चेलेंजेस को पार कर सकते है जो  इंवेस्टिंग  के दौरान पेश आती है.

इस किताब में आपको वो सारी फंडामेंटल जानकारीयाँ दी जाएँगी जो  इंवेस्टिंग  शुरू करने से पहले आपको मालूम होनी चाहिए.

इसे पढ़कर आप ये भी सीखोगे कि एक ग्रेट  इंवेस्टर  इस फील्ड में सक्सेस पाने के लिए किस तरह का माइंडसेट लेकर चलता है.

साथ ही इस किताब में आप ये भी पढोगे कि सक्सेसफुल  इंवेस्टिंग  की राह में एक ही बड़ा दुश्मन है, जो है रिस्क.

रिस्क के बारे में हम किताब में डिटेल में चर्चा करेंगे ताकि आप समझ जाओ कि रिस्क कितने टाइप के होते है, उन्हें कैसे पहचाने और कैसे उन्हें  कंट्रोल  किया जाए.

आप ये भी पढोगे कि ये रिस्क आते कहाँ से है और इनके पीछे कौन-कौन से मुख्य कारण है.

‘द मोस्ट इम्पोर्टेन्ट थिंग’ कोई गोल्डन रेसिपी नहीं है जिसे इंवेस्टर  यूज़ करके तुंरत सक्सेसफुल बन जाएगा. ये किताब आपको सही डिसीजन लेने में मदद करेगी और साथी ही आपको उन खतरों से भी सावधान करेगी जिनके जाल में बहुत से लोग फंस जाते है.

SECOND- LEVEL THINKING

किसी भी रीजनेबल  इंवेस्टमेंट  अप्रोच की सबसे अहम पहचान है  इंवेस्टर  का एडाप्टिव और इंट्यूटिव होना, नाकि रोबोटिक और फिक्स्ड होना. क्योंकि  इंवेस्टिंग  में हमेशा एक गोल रखो कि आपको बाकियों से बेहतर बनना है, ये  नहीं  कि आप भी बाकियों की तरह सेम लेवल पर रहो और उसी में खुश रहो.

तकरीबन सारे  इंवेस्ट र्स पढ़े-लिखे लोग होते है इसलिए अपनी अलग पहचान बनाने का कोई तरीका ढूंढो. खुद की अलग पहचान होने के भी अपने फायदे होते है, कुछ ऐसा करो जो बाकि ना कर रहे हो, जो करो औरो से हटकर करो. आपका बिहेव भी डिफरेंट होना चाहिए.

ये तो आप जानते ही है कि इन्वेस्टिग दिमाग लगाने का खेल है, दूसरों से ज्यादा एफिशिएंट होने का खेल है. आपनी सोच में कुछ अलग बात होनी चाहिए,  इंवेस्टिंग  में दो टाइप की थिंकिंग चलती है, फर्स्ट लेवल थिंकिंग और सेकंड लेवल थिंकिंग.

फर्स्ट लेवल थिंकर्स हमेशा आसान और सिंपल जवाब तलाशते है, वही सेकंड लेवल थिंकर्स जानते है कि  इंवेस्टमेंट  सिंपल तो बिल्कुल भी  नहीं  है. ,

लोग आपको क्या डिफरेंट चीज़े बताएँगे, ये उनके एजेंडा पर डिपेंड करता है, जैसे एक्जाम्पल के लिए ब्रोकरेज फर्म आपको ये यकीन दिलाने की कोशिश करेंगे कि सिर्फ $10 पर  transaction पर भी लोग  इंवेस्ट  कर सकते है, यानी  इंवेस्टमेंट  इतनी सिंपल चीज़ है कि हर कोई  इंवेस्टर  बन सकता है.

अब वही म्यूचल फंड मैनेजर्स आपको ये यकीन दिलाएंगे कि  इंवेस्टिंग  बड़ी कोम्प्लिकेट चीज़ है और वो इसके एक्सपर्ट्स है इसलिए उनकी सलाह के बिना आप  इंवेस्टमेंट  कर ही नहीं सकते, इसलिए अपने पैसे भी उन्हें दे दो और उन्हें फ़ीस भी दो.

फर्स्ट लेवल और सेकंड लेवल थिंकर्स कैसे काम करते है, इसे और डिटेल में जानने के लिए हम एक एक्जाम्पल के जरिये समझने की कोशिश करेंगे.

जब भी कोई अच्छी कंपनी अच्छी  परफॉरमेंस  देना स्टार्ट करती है और पोपुलर होने लगती है, तो फर्स्ट लेवल थिंकर्स यही सोचोंगे कि चलो इस कंपनी के स्टॉक्स खरीद लेते है क्योंकि ये काफी प्रॉफिटेबल  इंवेस्टमेंट  लग रही है.

हालाँकि सेकंड लेवल थिंकर्स डिफरेंट वे में सोचेंगे, वो सोचेंगे कि क्योंकि हर कोई इस कंपनी के स्टॉक्स खरीद रहा है तो कॉम्पटीशन भी बढ़ जाएगा और स्टॉक्स वैल्यू भी आज नहीं तो कल गिर ही जायेगी. और यही बेस्ट टाइम होगा जब स्टॉक्स खरीदे जाए.

जब किसी कंपनी की ग्रोथ लो होती है और इन्फ्लेशन लगातार बढ़ रही हो तो फर्स्ट लेवल थिंकर्स  loss  ये सोचकर अपने स्टॉक्स बेचना चाहेंगे कि कहीं उन्हें  loss  ना हो जाए. जबकि सेकंड लेवल थिंकर्स इसके अपोजिट कम प्राइस में एसेट्स खरीदते रहेंगे चाहे बेशक मार्किट में हर कोई पेनिक कर रहा हो.

फर्स्ट लेवल थिंकर्स स्ट्रेटफॉरवर्ड और आईडियलिस्टिक होते है, ये वो लोग होते है जो हमेशा  इंवेस्टिंग  करते वक्त मेजोरोटी की तरफ देखते है, यानी जो सब कर रहे है, वही ये भी करते है. ये खुद कोई रीसर्च नहीं करते बल्कि बड़ी जल्दी दूसरो की ओपिनियन और प्रेडिक्शन पर भरोसा कर लेते है.

यहाँ एक चीज़ हम शेयर करेंगे, अगर आप भीड़ में अलग पहचान बनाते हो और हाएस्ट रिटर्न्स अचीव कर रहे हो तो आपको कभी भी दूसरो की देखा-देखी सेम चीज़  नहीं  करनी चाहिए. क्योंकि सेकंड लेवल थिंकर्स यही करते है, वो हमेशा पहले सिचुएशन को एनालाईज़ करते है और उसके बाद कुछ भी डिसाइड करने से पहले दिमाग में एक बड़ी पिक्चर रखकर सोचते है.

एक सेकंड लेवल थिंकर को बेस्ट डिसक्राइब करे तो हम यही बोलेंगे कि वो औरो से अलग होता है और बैटर होता है. कई लोग सोचते है कि कोई भी ग्रेट और पॉवरफुल  इंवेस्टर  बन सकता है लेकिन ऐसा  नहीं  है, एक ग्रेट और सक्सेसफुल  इंवेस्टर  बनने की काबिलियत हर किसी में  नहीं  होती.

और कई सारे  लोगों  को ये भी गलतफहमी है कि हर कोई सक्सेसफूली  इंवेस्टिंग  कर सकता है और  इंवेस्टिंग  बाएं हाथ का खेल है. और  इंवेस्टिंग  में  loss  होने का सबसे बड़ा रीजन भी यही माइंडसेट है. जब तक लोग  इंवेस्टिंग  को सिंपल और ईजी समझते रहेंगे, सेकंड लेवल थिंकर्स औरों से ज्यादा प्रॉफिट गेन करते रहेंगे.

इंवेस्टिंग  से पहले एनालाईज करो और समझो. अपनी सफलता के लिए आपको खुद को मेहनत करनी होगी. वो करो जो कोई ना कर रहा हो, जो सब करते है वो भेडचाल है और भेडचाल से कभी सफलता  नहीं  मिलती.

UNDERSTANDING RISK

इंवेस्टिंग  में सक्सेस पाने के बेस्ट तरीका है एकदम सही-सही फ्यूचर प्रेडिक्ट कर पाना, हालाँकि किसी के पास भी ऐसी सुपरपॉवर  नहीं  होती. इसीलिए तो फ्यूचर हमेशा अनसर्टेन रहता है, कोई दावे से  नहीं  कह सकता कि कल क्या होगा, और इसी को हम रिस्क कहते है.

अगर आप  इंवेस्टिंग  का मन बना रहे हो तो आपको मार्किट में कई ऐसे हाई पोटेंशियल स्टॉक्स मिलेंगे लेकिन अगर आप सिर्फ इसी एक चीज़ पर फोकस करते हुए अपने इंट्यूशन और फर्स्ट लेवल थिंकिंग यूज़ करते हुए  इंवेस्ट  करोगे तो इस बात का पूरा chance है कि बगैर रिस्क फैक्टर के बारे में सोचते हुए आप उस स्टॉक पर पैसा लगाने को तैयार हो जाओगे.

अगर आप सिर्फ अपने अंदाजे और प्रेडिक्शन पर डिपेंड रहते हो और आपको ये  नहीं  पता कि रिस्क कैसे मैनेज करना है तो ये समझ लो कि आप  इंवेस्टिंग  में कभी प्रॉफिट  नहीं  कमा सकते उल्टा आप  loss  में जा सकते हो.

इंवेस्टिंग  के बारे में एक बड़ी फेमस अफवाह ये है कि हाई रिस्क का मतलब हाई रिटर्न्स होगा और लो रिस्क में लो रिटर्न्स मिलेगा. इसी गलतफहमी के चलते कई सारे लोग बड़े प्रॉफिट के चक्कर में बड़ा रिस्क लेने को तैयार हो जाते है. पर यही मेन रीजन भी है जिसकी वजह से सेकंड लेवल थिंकर्स बाजी पलट देते है, ज्यादातर फर्स्ट लेवल थिंकर्स रिस्क फैक्टर्स पर ना तो ज्यादा ध्यान देते है और ना ही उन्हें रिस्क मैनेज करना आता है.

यहाँ तक सिंपल ट्रिक है, जो आप अप्लाई कर सकते हो, अगर हाई रिस्क वाली  इंवेस्टमेंट हाई रिटर्न दे रही है तो इसका मतलब इस टाइप की  इंवेस्टमेंट बिल्कुल भी रिस्की  नहीं  है.

हाई रिस्क  इंवेस्टमेंट  वो  इंवेस्टमेंट  होती है जहाँ रिटर्न्स का भरोसा  नहीं  होता, जहाँ रीजल्ट पहले से प्रेडिक्ट करना मुश्किल है. बेशक इस तरह की  इंवेस्ट मेंट्स के हाई होने के चांसेस ज्यादा रहते है पर उतना ही जल्दी ये डाउन भी हो जाते है, और सबसे डिसअपोइन्टिंग तो ये है कि कभी-कभी इसमें कुछ भी हाथ  नहीं  आता.

यहाँ हम आपको दो टाइप के रिस्क बताते है जो दो टाइप के  लोगों  के लिए है. पहले टाइप का रिस्क वो है जो आपको अफेक्ट करेगा और दूसरे टाइप का रिस्क बाकियों को तो अफेक्ट करेगा पर आपको बेनिफिट देगा.
चलो, इसे एक एक्जाम्पल से समझते है.

जब कोई कंपनी अपनी आउटस्टैंडिंग  परफॉरमेंस  की वजह से टॉप रेटेड की लिस्ट में आती है तो  इंवेस्टर  हाई प्राइस में भी  इंवेस्ट  करने को तैयार रहते है. अब क्योंकि ये  इंवेस्ट र्स हाई प्राइस के स्टॉक्स ले रहे है तो उन्हें लगता है कि उन्हें रिटर्न भी हाई मिलेगा.

इंवेस्ट र्स की ये भीड़ अपने हाई रिटर्न्स की उम्मीद में अपने  इंवेस्टमेंट  को लेकर पूरी कॉंफिडेंट रहती है, पर वो ये  नहीं  जानते कि मार्किट हमेशा एक जैसी नहीं रहती. चेंजेस और रिस्क हर जगह है खासकर जहाँ रिस्की एसेट्स हो. आपको हाई रिटर्न मिल सकते है पर वही लो रिटर्न्स के भी पूरे चांसेस है.

जहाँ एक ओर  इंवेस्ट र्स की ये भीड़ सोचती है कि हाई प्राइस में उन्हें हाई रिटर्न्स मिलेगा, वही सेकंड लेवल थिंकर्स इनसे एकदम अलग सोच रखते है. सेकंड लेवल थिंकर्स ये सोचकर चलते है कि हाई रिटर्न तभी मिलेंगे जब आप ऐसे स्टॉक्स में  इंवेस्ट  करते हो जिनकी वर्थ कम होती है.

कोई कंपनी पहले कैसा परफोर्म कर चुकी है उसके बेस पर उसका फ्यूचर आउटकम क्या होगा, ये दावे से नहीं कहा जा सकता, कई बार बड़ी और सक्सेसफुल कंपनीज़ भी जो आज हाई रिटर्न्स दे रही है, कुछ सालों बाद घाटे में जा सकती है, और जब कंपनी को इस तरह का घाटा उठाना पड़ता है तो सेकंड लेवल थिंकर्स सस्ते यूनिट लेना शुरू कर देते है जब फर्स्ट लेवल  इंवेस्ट र्स की भीड़ डर के मारे अपने शेयर्स बेच रही होती है.

रिस्क इनविजिबल है, इसे आप केलकुलेट नहीं कर सकते ना ही पहले से अंदाजा लगा सकते हो. यही चीज़ हम फ्यूचर के बारे में भी बोल सकते है, हम फ्यूचर को बदल तो  नहीं  सकते पर उसके लिए तैयार जरूर रह सकते है ऐसे ही हम रिस्क अवॉयड तो  नहीं  कर सकते पर उसे मैनेज करने का तरीका ढूंढ सकते है.

रिस्क को समझने के लिए आपको ओपिनियंस पर डिपेंड रहना पड़ता है और ये ओपीनियन तुक्काबाज़ी नहीं है बल्कि काफी एजुकेटेड और वेल रीसर्च्ड ओपिनियन है.

रिस्क  इंवेस्टिंग  का अहम हिस्सा है, आप इसे  इंवेस्टिंग  से अलग  नहीं  कर सकते. और ये बात जितना जल्दी समझ लो उतना अच्छा है, अगर आप इसे समझ  नहीं  पाए तो  इंवेस्टिंग  की फील्ड में आप कदम नहीं जमा सकते.

आपको ये समझना होगा कि रिस्क सिर्फ दो चीज़े कर सकता है, या तो ये आपको नुकसान पहुंचाएगा या फायदा और आपको ये श्योर करना होगा कि ये आपको सिर्फ और सिर्फ फायदा ही पहुंचाए.

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