by Napoleon Hill
एक इंसान, जिसने थॉमस अल्वा एडियन के साथ बिज़नेस पार्टनरशिप करने की सोची।
हमारे विचारों में अनलिमिटेड पॉवर होती है। अगर इन विचारों में पर्पस और मजबूत इरादे जुड़े हुए हों तो आप अमीर बन सकते है और वह सब कुछ हासिल कर सकते है, जो आपने सोचा है।
एडविन सी. बर्न्स ने यह खोज निकाला कि कैसे विचार यानी थॉट की पॉवर से अमीर बना जा सकता है। इस खोज में सक्सेस पहली कोशिश में हासिल नहीं हुई, बल्कि धीरे-धीरे हासिल हुई। इस महान रहस्य की खोज की शुरुआत, बर्न्स की उस इच्छा से हुई, जो उन्हें महान एडिशन का बिज़नेस पार्टनर बनाने के लिए चैन से सोने नहीं दे रही थी । बर्न्स की उस विल पॉवर की सबसे बड़ी बात यह थी कि वह क्लियर थी कि उन्हें एडिसन के साथ काम करना है, ना कि एडिशन के ऑफिस में काम करना है। आप बर्न्स की कहानी को ध्यान से सुनें, उनकी सोच हकीकत में कैसे बदली? फिर आपको वे 3 रूल बेहतर समझ में आएँगे, जो आपको अमीर बनाते हैं।
जब बर्न्स के मन में यह विचार कौंधा, तब वह इस हालत में नहीं थे कि वह इस पर कोई कदम उठा सके।
उनके रास्ते में दो चुनौतियाँ थी, पहली यह कि एडिशन से उनकी कभी मुलाकात नहीं हुई थी, ना ही एडिशन उन्हें जानते थे। दूसरा यह, उनके पास रेल का भाड़ा देने का इतना पैसा नहीं था कि वह ऑरेंज, न्यू जेर्सी तक पहुँच सके। ये चुनौतियाँ इतनी बड़ी थी कि ज़्यादातर लोगों के कांफिडेंस को डगमगा दे और उनकी सोच यहीं पर दम तोड़ दे।
लेकिन उनके इरादे इतने कमजोर नहीं थे। उन्होंने ठान ली थी। उन्होंने हार नहीं मानी, बल्कि बिना टिकेट मालगाड़ी से सफ़र करके ईस्ट ऑरेंज पहुँच गए।
उन्होंने एडिशन के लेबोरेटरी में खुद का परिचय दिया, और कहा कि वह इस इन्वेंटर के साथ बिज़नेस करने आए थे। काफी समय के बाद एडिशन ने इस पहली मुलाकात का खुलासा कुछ इस तरह किया था, वह मेरे सामने एक आम टूरिस्ट की तरह खड़ा था, लेकिन उसके चेहरे का तेज देखकर यह पता चल गया था कि वह जिस कारण से यहाँ आया है, उसके लिए पक्का इरादा कर के आया है । इतने साल के एक्सपीरियंस में मुझे यह नॉलेज हो गया था कि अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो सारी कायनात तुम्हे उससे मिलाने की कोशिश में जुट जाती है। मैंने भी उसके मजबूत इरादों को भाँपकर उसे एक मौका दे दिया था और उसने इस बात को पूरी तरह से दिमाग में बैठा लिया था कि उसे इस सक्सेस को पाकर ही रहना है। धीरे-धीरे उसके काम ने भी यह साबित कर दिया कि मैंने उसे मौका देकर कोई गलती नहीं की थी। उस नौजवान बर्न्स ने उस वक्त एडिशन से क्या कहा यह उतना इम्पोर्टेन्ट नहीं था, जितना कि उन्होंने इस बारे में सोचा कि उन्हें एडिशन के साथ में काम करना है। इस बात पर एडिशन ने भी अपनी सहमति जताई थी।
अगर थॉट के पॉवर की यह बात हर रीडर तक पहुँच जाए तो उन्हें पूरी किताब पढ़ने की कोई जरुरत नहीं है।
बर्न्स अपने पहले ही इंटरव्यू के बाद एडिशन के बिज़नेस पार्टनर नहीं बन गए थे। बल्कि उन्हें एडिशन के ऑफिस में बहुत ही कम सैलरी में काम करने का मौका दिया गया था। यह काम ऐसा था, जो एडिशन के लिए ज़्यादा काम का नहीं था पर बर्न्स के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट था। इस मौके ने बर्न्स को अपने होने वाले पार्टनर को अपने बिज़नेस स्किल दिखाने का मौका दिया था। उनके होने वाले पार्टनर वहाँ उनके काम को परख सकते थे।
कई महीने बीत चुके थे, पर ऐसा कुछ भी ख़ास नहीं हो रहा था जिससे बर्न्स अपने उस गोल तक पहुँच सके, जो उन्होंने अपने दिलो-दिमाग में संजो रखा है। पर उनके मन में कुछ ना कुछ ऐसा चल रहा था, जिसका रिजल्ट बाद में निकला। पर तब तक वह subconsciously एडिशन के बिज़नेस पार्टनर बनने के अपने विचार पर और ज़ोर देकर सोचने लगे थे।
साइकोलोजिस्ट ने यह सही कहा है “जब कोई विचार दिमाग पर हावी हो जाए, तो वह हकीकत में आपके सामने आ जाता है।' बर्न्स पूरी तरह एडिशन के साथ काम करने के लिए तैयार थे और वह तब तक अडिग खड़े रहे, जब तक उन्होंने वह हासिल नहीं कर लिया, जिसे वह इतने समय से खोज रहे थे।
उन्होंने कभी इस बात पर विचार नहीं किया कि इतना परेशान होने की क्या जरुरत है, कुछ नहीं तो चलो सेल्समैन की जॉब असानी से मिल जायेगी। बल्कि उन्होंने यह विचार किया, मैं यहाँ पर एडिशन के साथ बिज़नेस करने के लिए आया हूँ। मैं तब तक पीछे नहीं हटूँगा, जब तक मैं इस मकसद में जीत नहीं जाता, चाहे बची हुई सारी जिंदगी यहीं पर गुजारनी पड़े। यह सच है कि अगर आप एक पर्पस को लेकर पूरी जिंदगी जीते है तो आप एक अलग ही कहानी लिख सकते हैं।
शायद उस समय बर्न्स को यह बात पता नहीं थी, लेकिन उनकी मजबूत विल पॉवर और पक्के इरादे ने बड़ी-से-बड़ी बाधाओ को पार करके उन्हें वह मौका दिला दिया था जिसकी वह तलाश कर रहे थे। मौकों की एक खास बात होती है, ये बिल्कुल अलग अंदाज में हमारे सामने आते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं जैसा आपने सोचा होता है, उससे बिल्कुल अलग दिशा से भी ये मौके आने लगते हैं । ऐसा कह सकते है कि मौकों की यह चालाकी होती है कि वे पिछले दरवाजे से आते है और कई बार तो दुर्भाग्य और कुछ पलों की हार के रूप में भी सामने आ जाते है। शायद यही कारण है कि ज़्यादातर लोग इन मौकों को पहचानने में चूक जाते है।
उस समय एडिशन ने एक नई डिवाइस खोजी थी, जिसका नाम “एडिशन डिस्टार्टिंग मशीन” था। बाद में उसे “एडिफोन” नाम से भी जाना गया। एडिशन के सेल्समेन उस मशीन के लिए ज़्यादा excited नहीं थे। उन्हें ऐसा लग रहा था कि इसे बेचने के लिए उन्हें कुछ ज़्यादा ही मेहनत करनी पड़ेगी । बर्न्स को इसी मौके की तो तलाश थी। उन्होंने इस मौके का फ़ायदा उठाया और तुरंत उस मशीन को बेचने की अपनी इच्छा जाहिर की। यह वह मशीन थी, जिसके लिए दुनिया में सिर्फ दो ही लोग excited थे, एक बर्न्स और दूसरा उस मशीन को बनाने वाला। उन्होंने इतने बेहतरीन तरीके से इस मशीन को बेचा कि एडिशन ने बर्न्स को उस मशीन को पूरे देश के मार्केट में डिलीवर करने का कॉन्ट्रैक्ट ही दे दिया। इस बिज़नेस की सक्सेस ने इसे एक नया स्लोगन दे दिया “Made by Edison and installed by Barnes” (एडिशन ने बनाया और बर्न्स ने लगाया) यह बिज़नेस डील इतनी सक्सेसफुल हुई कि इसने बर्न्स को बहुत अमीर बना दिया। पर इससे ज़्यादा उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर आप ठान लें तो आप भी अमीर बन सकते है।
असल में बर्न्स ने कितना पैसा कमाया, इसकी सही जानकारी तो नहीं है पर यह अनुमान है कि उस समय उन्होंने 20 से 30 लाख डॉलर कमाए थे। जो भी यह अमाउंट रहा हो, यह उस नॉलेज के सामने फीकी पड़ जाती है, जिन रूल्स की मदद से बर्न्स ने वह हासिल किया था, जो वह असल में चाहते थे।
बर्न्स ने तब यह सोच लिया था कि उन्हें एडिसन के साथ पार्टनरशिप करनी है, जब उनके पास इसकी शुरुआत करने के लिए कुछ भी नहीं था सिवाय इसके कि वह इस थॉट को और मज़बूती के साथ सोचे और इस पर पूरे इरादे के साथ अमल करे, जब तक वह उसे हासिल न कर ले।
उनके पास बिलकुल भी पैसा नहीं था। वह ज़्यादा पढ़े लिखे भी नहीं थे। यहाँ तक कि उनके पास कोई पावर भी नहीं थी। पर उनके पास हिम्मत थी, विश्वास था और विल पॉवर थी कि वह जीत सकते हैं। इन सभी ताकतों के साथ वह उस महान इन्वेंटर का दायाँ हाथ बन बैठे।
आइए अब उस इंसान की कहानी पढ़ते है, जिनके पास अमीर बनने के कई मौक़ा थे, पर उन्होंने अपने गोल से सिर्फ़ तीन फीट की दूरी पर काम करना बंद कर दिया।
सोना, सिर्फ तीन फीट दूर था
थोड़ी हार के कारण कोशिश करना छोड़ देना, फेलियर का सबसे आम कारण होता है। हर किसी को कभी-न-कभी इस गलती का एहसास जरूर होता है।
आर यू डर्बी, जो बाद में देश के सक्सेसफुल insurance एजेंट बने, वह अपने अंकल की कहानी बताते है कि उस समय लोग सोने (gold) के पीछे पागल थे, तब उनके अंकल पर भी औरों की तरह सोने का भूत सवार हो गया था और वह वेस्ट की तरफ सोना खोजने और अमीर बनने निकल पड़े। शायद उन्होंने कभी यह नहीं सुना था कि हमारा दिमाग सोने का सबसे बड़ा manufacturer है ना कि जमीन। वह खुदाई करने के लिए निकल पड़े। बेशक यह मुश्किल था लेकिन वो ठान कर गए थे ।
कई हफ्तों की मजदूरी के बाद, उन्हें एक चमचमाता हुआ मेटल दिखाई दिया। उन्हें इस मेटल को बाहर निकालने के लिए मशीन की जरुरत पड़ी। जिसके लिए वह तुरंत अपने घर वीलियम्सबर्ग, मेरीलैंड वापस आ गए।
अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को इस कामयाबी के बारे में बताया। उनकी बातो ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था और सभी ने मिलकर पैसा इकट्ठा किया और उस मशीन को खरीदकर, उसी खान में भेज दिया। डर्बी और उसके अंकल फिर से उसी खान में काम करने पहुँच गए।
जब उस चमचमाती मेटल के पहले बैच को गलाने और उसे pure करने के लिए भेजा गया तो उसका रिजल्ट देखकर उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि colorado की सबसे बड़ी खान उनके पास ही है।
उनकी उम्मीदे तूफान की तरह दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी। तभी अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उस सोने की खान से सोना गायब ही हो गया। वे दुखी और निराशा के चरम पर पहुँच गए। उन्हें उस खान में कहीं सोना दिखा ही नहीं। उन्होंने सोने के सिरे (टिप) को ढूँढने की कोशिश की लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा.
अंत में उन्होंने उस मशीन को बेच देने का फ़ैसला ले लिया। वो एक कबाड़ी को कुछ सौ डॉलर में उस मशीन को बेचकर घर वापस आ गए। आपने सुना होगा कि कुछ कबाड़ी सच में बेवकूफ होते है पर वह आदमी उनमे से नहीं था। उसने दिमाग लगाया और एक माइनिंग इंजीनियर को वो खान दिखाने के लिए बुलाया। उसने यह देखकर अनुमान लगाया कि सोने का सिरा सिर्फ तीन फीट नीचे पाया जा सकता है, जहाँ पर डर्बी और उसके अंकल ने खुदाई रोक दी थी और हकीकत में हुआ भी वही!
वह कबाड़ी उस खान से निकले मेटल की वजह से करोड़पति बन गया था क्योंकि वह जानता था कि किसी काम को छोड़ने के पहले किसी एक्सपर्ट की राय लेना जरुरी होता है। उस मशीन की खरीदने के लिए रिश्तेदारों और पड़ोसियों से पैसा लिया गया था जिसका पेमेंट डर्बी ने किया था क्योंकि उन लोगो को उस नौजवान पर विश्वास था। डर्बी को उस मशीन का पैसा चुकाने में कई साल लग गए।
इतना नुक्सान होने के बाद वह इस गम से तब निकल पाए, जब वह एक insurance कंपनी में एजेंट बने और उन्हें पता लगा कि थॉट की पॉवर के दम पर सोना बनाया जा सकता है।
वह उस घटना को भूले नहीं थे, जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। उन्होंने असीम दौलत हासिल करने से सिर्फ़ तीन फीट की दूरी पर कोशिश करना छोड़ दिया था।
डर्बी को उस एक्सपीरियंस से बहुत फ़ायदा हुआ, उन्हें पता चल गया था कि किसी की 'ना' का मतलब 'ना' ही हो यह जरुरी नहीं है। उन्होंने अपने काम को बीच में छोड़ने की आदत को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दिया और यह तय कर लिया कि उन्हें कोशिश तब तक करनी है, जब तक सोना ना मिल जाए यानी जब तक इंसान “हाँ” ना कह दे।
सक्सेस का रास्ता कुछ पलों के फेलियर से होकर गुजरता है। ज़्यादातर लोग काम को बीच में ही एक फेलियर के बाद छोड़ देते है। उन्हें पता होना चाहिए कि फेलियर सिर्फ कुछ देर का इंतज़ार है, हार नहीं।
अमेरिका के लगभग 500 सक्सेसफुल लोगों ने यह स्वीकार किया है कि उन्हें सक्सेस तब मिली, जब हार उनके बिल्कुल करीब थी।
फेलियर इस मामले में बहुत चालाक होती है। वह लोगो के मन भटकाने के लिए अकसर तभी आती है, जब सक्सेस बहुत क़रीब होती है।