रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आ गई। कितना ख़ूबसूरत और सुहाना एहसास था। पेड़ों पर अजीब सी हरियाली थी, खेतों में रौनक, आसमान पर दिल लुभाने वाली लालिमा छायी थी। आज का सूरज तो देखो, कितना प्यारा, कितना ठंडा है, जैसे दुनिया को ईद की मुबारक दे रहा हो। गॉंव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियॉँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, तो वो पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, तो वो उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जा रहा है। सब जल्दी-जल्दी बैलों को चारा-पानी दे रहे हैं। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर कई आदमियों से मिलना-जुलना, दोपहर के पहले लौटना नामुमकिन है।