Why Should You Read This Summary?
SHREE BHGAVAD GEETA ADHYAY-15
सार- इस अध्याय में श्रीकृष्ण संसार की तुलना उल्टे पेड़ के साथ करते हैं, इसकी जड़ें ऊपर की ओर हैं . इस पेड़ का बीज परमात्मा हैं, इसका मुख्य तना हैं ब्रह्माजी जिन्होंने दुनिया बनाई, इसके पत्ते वेद हैं जो संसार रुपी पेड़ की रक्षा करते हैं, इसकी शाखाएँ तीनों गुणों से पोषित होती हैं जो नीचे की ओर फ़ैली हुई हैं. इस पेड़ को देखा नहीं जा सकता, ना इसके ओर छोर का पता लगाया जा सकता है. ये इतना सूक्ष्म है कि केवल संसार से मन हटाकर, उससे मोह ख़त्म कर वैराग्य के अस्त्र से इस पेड़ को काटा जा सकता है और इसमें सफ़ल हो जाने के बाद मनुष्य परम को लौटकर संसार में नहीं आना पड़ता. इसके लिए मनुष्य को उनकी शरण लेनी होगी जिनसे संसार का ये पेड़ निकला है क्योंकि केवल वे ही जो अहंकार, मोह से मुक्त हैं, जो इच्छाओं और सुख-दुख जैसे विपरीत जोड़ों से मुक्त हैं. जो मनुष्य भगवान के प्रति समर्पित हैं, वे ही उस शाश्वत धाम को प्राप्त कर सकते हैं। न सूर्य, न चन्द्रमा, न अग्नि उस परम धाम को प्रकाशित कर सकते हैं। वहां पहुंचने के बाद कभी वापसी नहीं होती।
जीव या आत्मा परमात्मा का एक छोटा सा अंश है। शरीर धारण करने के बाद आत्मा मन और इंद्रियों के माध्यम से संसार से संपर्क करती है और प्रकृति की ओर आकर्षित भी होती है। जीव इन्द्रियों और मन के द्वारा इन्द्रिय विषयों का भोग करता है. शरीर छोड़ते समय वह अपने साथ सारे संस्कार, वासनाएँ, इच्छाएँ, विकार आदि ले जाता है ठीक वैसे ही जैसे बहती हुई हवा अपने साथ गंध को एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाती है। भगवान् कहते हैं कि उनकी शक्ति के कारण ही धरती टिकी हुई है और चल रही है. उनकी शक्ति से ही सूर्य, चंद्र रौशनी और गर्माहट दे पाते हैं, पेड़ पौधे उगते हैं, शरीर में जो जठारअग्नि पाचन का काम करती है वो भी उनके कारण होता है, वही सबके अंदर आत्मा के रूप में वास करते हैं, वही वेदों के रचियता हैं, वेदों को पढ़कर उन्हें ही पाने की कोशिश की जाती है.
इस संसार में दो तरह पुरुष हैं – क्षर यानी नाशवान प्रकृति और अक्षर यानी अविनाशी आत्मा। लेकिन परमात्मा इन दोनों से अति परे और उत्तम हैं क्योंकि वो कभी प्रकृति की ओर आकर्षित नहीं होते, उसकी माया में नहीं फँसते इसलिए वो पुरुषोत्तम हैं, सबसे श्रेष्ठ हैं और तीनों लोकों में व्याप्त हैं। जो उन्हें इस रूप में जान लेता है, वह सर्वज्ञ हो जाता है और उनकी हर प्रकार से पूजा करता है।
इस अध्याय में मुख्य शिक्षा यह है कि परमात्मा ही संसार में अलग-अलग नामों और रूपों में मौजूद हैं, फ़िर चाहे वो ब्रह्मांड की कोई भी वस्तु क्यों ना हो। सूर्य, चंद्रमा और सितारों सहित सभी ग्रह उनकी शक्ति या एनर्जी के अंश मात्र के कारण चमकते हैं। वो ही मनुष्य में भौतिक, मानसिक और बौद्धिक स्तरों पर चेतना के रूप में वास करते हैं। जो मनुष्य उन्हें पुरुषोत्तम के रूप में जानता है, वही असली ज्ञानी है। जो इस गुप्त ज्ञान को समझ लेता है वह बुद्धिमान हो जाता है। संसार में उसके सभी संदेह और कष्ट अपने आप ख़त्म हो जाते हैं और वह सभी कर्तव्यों का उचित पालन करने वाला बन जाता है।