Why Should You Read This Summary?
अध्याय 14: गुणत्रयविभागयोग
ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति
श्लोक 1:
श्री भगवान् बोले, “हे अर्जुन! समस्त ज्ञानों में भी सर्वश्रेष्ठ इस परम-ज्ञान को मैं तेरे लिये फिर से कहता हूँ, जिसे जानकर सभी संत-मुनियों ने इस संसार से मुक्त होकर परम-सिद्धि को प्राप्त किया हैं. इस ज्ञान में स्थिर होकर वह मनुष्य मेरे जैसे स्वभाव को ही प्राप्त होता है, वह जीव न तो सृष्टि के प्रारम्भ में फिर से उत्पन्न होता है और न ही प्रलय के समय व्याकुल होता है।हे भरतवंशी! मेरी यह आठ तत्वों वाली जड़ प्रकृति ही समस्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली योनि (माता) है और मैं ही ब्रह्म (आत्मा) रूप में चेतन-रूपी बीज को स्थापित करता हूँ, इस जड़-चेतन के संयोग से सभी चर-अचर प्राणीयों का जन्म सम्भव होता है. हे कुन्तीपुत्र! समस्त योनियों में जो भी शरीर धारण करने वाले प्राणी उत्पन्न होते हैं, उन सभी को धारण करने वाली जड़ प्रकृति माता है और मैं ब्रह्म रूपी बीज को स्थापित करने वाला पिता हूँ”।
अर्थ –भगवान् कहते हैं कि जिस सत्य को अनुभव कर कई मुनि संसार से मुक्त हो गए हैं उस ज्ञान को वे दोबारा कहेंगे. इस ज्ञान को प्राप्त करने वाले सभी मनुष्य मुक्त हो जाते हैं, संसार के बंधन से छूट जाते हैं और परमात्मा को प्राप्त करते हैं इसलिए इसे सबसे ऊँचा और उत्तम ज्ञान कहा गया है. यहाँ मुनि का मतलब है जिस मनुष्य में शरीर के साथ अपनेपन का भाव नहीं रह जाता वो मुनि कहलाता है.
भगवान् कहते हैं कि इस ज्ञान को अनुभव करने वालों के मन से सभी संशय दूर हो जाते हैं और उनका मन ज्ञानस्वरूप हो जाता है जिसके कारण सृष्टि के आरंभ में उन्हें कर्म को भोगने के लिए शरीर धारण नहीं करना पड़ता क्योंकि उसका चित्त एकदम साफ़ हो जाता है जिसमें कोई संस्कार, कर्म, वासना बाकी नहीं रह जाते. प्रलय के समय संसार में हलचल होती है, हाहाकार मच जाता है, सभी प्राणी दुखी हो जाते हैं, डर जाते हैं और नष्ट भी हो जाते हैं. लेकिन ज्ञानी मनुष्य को दुःख नहीं होता, उसके मन में कोई हलचल नहीं होती. जब उसकी मौत भी होने वाली होती है तो वो बिलकुल शांत रहता है, घबराता नहीं है क्योंकि प्रकृति से संबंध रखने वाले जन्म-मरण, दुःख आदि से वो ऊपर उठ जाते हैं.
अब भगवान् बता रहे हैं कि सृष्टि में जीवन की शुरुआत कैसे हुई. जब परम आत्मा और मूल प्रकृति का संयोग हुआ तब जीवन की शुरुआत हुई. मूल प्रकृति को महत ब्रह्म कहते हैं. सभी चीज़ों का जन्म स्थान होने के कारण मूल प्रकृति योनी होती है. मूल प्रकृति से ही सृष्टि की शुरुआत होती है और प्रलय के समय सब कुछ इसी में लीन भी हो जाता है. परम आत्मा मूल प्रकृति में संकल्प का बीज डालते हैं यानी गहरी इच्छा व्यक्त करते हैं कि वो एक से अनेक हो जाएँ, इस सृष्टि में जीवन का जन्म हो, तब प्रकृति और पुरुष के संयोग से जीवों के शरीर का जन्म होता है. भगवान् ये भी बताते हैं कि प्रकृति उनकी इच्छा के बिना अपने आप कुछ नहीं कर सकती. इसलिए प्रकृति गर्भधारण करने वाली माँ है और बीज को स्थापित करने वाले परमात्मा पिता हैं.
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