Why Should You Read This Summary?
जब रजिया के दो-तीन बच्चे होकर मर गये और उम्र ढल चली, तो रामू का प्रेम उससे कुछ कम होने लगा और दूसरी शादी की धुन सवार हुई। आये दिन रजिया से बकझक होने लगी। रामू एक-न-एक बहाना खोजकर रजिया पर बिगड़ता और उसे मारता और अन्त में वह नई पत्नी ले ही आया। इसका नाम था दासी। चम्पई रंग था, बड़ी-बडी आंखें, जवानी की उम्र। पीली, कुंशागी रजिया भला इस जवान लड़की के सामने क्या जांचती! फिर भी वह जाते हुए मालिकपन को, जितने दिन हो सके अपने अधिकार में रखना चाहती थी। घर के हिलते हुए छप्पर को सम्हालने की कोशिश कर रही थी। इस घर को उसने मर-मरकर बनाया है। उसे सहज ही में नहीं छोड़ सकती थी । वह इतनी नासमझ नहीं है कि घर छोड़कर चली जाय और दासी राज करे।
एक दिन रजिया ने रामू से कहा—“मेरे पास साड़ी नहीं है, जाकर ला दो”।
रामु उसके एक दिन पहले दासी के लिए अच्छी-सी चुंदरी लाया था। रजिया की मांग सुनकर बोला—“मेरे पास अभी रूपया नहीं है”।
रजिया को साड़ी की उतनी चाह न थी जितनी रामू और दसिया की ख़ुशी में बाधा डालने की। बोली—“रूपये नहीं थे, तो कल अपनी चहेती के लिए चुंदरी क्यों लाये? चुंदरी के बदले उसी दाम में दो साड़ियां लाते, तो एक मेरे काम न आ जाती?”
रामू ने कहा—“मेरी इच्छा, जो चाहूंगा, करूंगा, तू बोलने वाली कौन है? अभी उसके खाने-खेलने के दिन है। तू चाहती है, उसे अभी से घर गृहस्थी की चिन्ता में डाल दूं। यह मुझसे न होगा। तुझे ओढने-पहनने की इच्छा है तो काम कर, भगवान ने क्या हाथ-पैर नहीं दिये। पहले तो देर रात उठकर काम धंघे में लग जाती थी। अब उसकी जलन में दिन तक पड़ी रहती है। तो रूपये क्या आकाश से गिरेंगे? मैं तेरे लिए अपनी जान थोड़े ही दे दूंगा”।
रजिया ने कहा—“तो क्या मैं उसकी नौकरानी हूं कि वह रानी की तरह पड़ी रहे और मैं घर का सारा काम करती रहूं? इतने दिनों छाती फाड़कर काम किया, उसका यह फल मिला, तो अब मेरी बला काम करने आती है”।
‘मैं जैसे रखूंगा, वैसे ही तुझे रहना पड़ेगा।’
‘मेरी इच्छा होगी रहूंगी, नहीं तो अलग हो जाऊंगी।’
‘जो तेरी इचछा हो, कर, मेरा गला छोड़।’
‘अच्छी बात है। आज से तेरा गला छोड़ती हूं। समझ लूंगी विधवा हो गई।’
रामु दिल में इतना तो समझता था कि यह गृहस्थी रजिया की बनाई हुई हैं, चाहे उसके रूप में उसके विलास के लिए आकर्षण न हो। मुमकिन था, कुछ देर के बाद वह जाकर रजिया को मना लेता, पर दासी भी कूटनीति में माहिर थी। उसने गम्र लोहे पर चोट जमाना शूरू कीं। बोली—“आज देवी जी किस बात पर बिगड़ रही थी?”
रामु ने उदास मन से कहा—“तेरी चुंदरी के पीछे रजिया महाभारत मचाये हुए है। अब कहती है, अलग रहूंगी। मैंने कह दिया, तेरी जो इच्छा हो कर”।
दसिया ने ऑखें मटकाकर कहा—“यह सब नखरे है कि तुम जाकर हाथ-पांव जोड़ो, मनाओ और कुछ नहीं। तुम चुपचाप बैठे रहो। दो-चार दिन में अपने आप ही गरमी उतर जायेगी। तुम कुछ बोलना नहीं, उसका मिजाज और आसमान पर चढ़ जायगा”।
रामू ने गम्भीर भाव से कहा—“दासी, तुम जानती हो, वह कितनी घमंडी है। वह मुंह से जो बात कहती है, उसे करके छोड़ती है”।
रजिया को भी रामू से ऐसी नाशुक्री की आशा न थी। वह जब पहले की-सी सुन्दर नहीं, इसलिए रामू को अब उससे प्रेम नहीं है। आदमी के चरित्र में यह कोई असाधारण बात न थी, लेकिन रामू उससे अलग रहेगा, इसका उसे विश्वास न हो रहा था। यह घर उसी ने पैसा-पैसा जोड़ेकर बनवाया था । गृहस्थी भी उसी की जोड़ी हुई है। अनाज का लेन-देन उसी ने शुरू किया। इस घर में आकर उसने कौन-कौन सी तकलीफ़ नहीं झेली, इसीलिए ना कि उम्र के कारण थक जाने पर एक टुकड़ा चैन से खायगी और पड़ी रहेगी, और आज वह इतनी बेरहमी से दूध की मक्खी की तरह निकालकर फेंक दी गई! रामू ने इतना भी नहीं कहा—“तू अलग नहीं रहने पायेगी। मैं या खुद मर जाऊंगा या तुझे मार डालूंगा, पर तुझे अलग न होने दूंगा।
तुझसे मेरी शादी हुई है, कोई हंसी-मज़ाक नहीं है”। तो जब रामू को उसकी परवाह नहीं है, तो वह रामू की क्यों परवाह करे। क्या सभी औरतों के पति बैठे होते हैं। सभी के मां-बाप, बेटे-पोते होते हैं। आज उसके लड़के जिंदा होते, तो मजाल थी कि यह नई पत्नी लाते, और मेरी यह दुर्गति करते? इस बेरहम को मेरे ऊपर इतनी भी दया न आई?
औरत के मन की मजबूरी इस अत्याचार से विद्रोह करने लगी। वही आग जो मोटी लकड़ी को छू भी नहीं कर सकती, फूस को जलाकर भस्म कर देती है।
Puri Kahaani Sune....